जुबिली न्यूज डेस्क
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक कथित हमले में चोट लगने के बाद बंगाल की राजनीति में तनाव बढ़ गया है। इस घटना से जितना तनाव टीएमसी को है, शायद उससे ज्यादा भाजपा को तनाव है। तभी तो भाजपा इस मामले की जांच की मांग कर रही है।
बंगाल में पिछले काफी समय से राजनीतिक हिंसा चरम पर है। भाजपा और टीएमसी के कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई आम बात हो गई है। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है।
इस बार टीएमसी प्रमुख व राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला हुआ है। इसलिए यह मामला सुर्खियां बटोर रहा है। ममता और उनकी पार्टी के तमाम नेता जहां इसे सुनियोजित साजिश के तहत किया गया हमला करार दिए हैं तो वहीं भाजपा, सीपीएम और कांग्रेस ने इस नौटंकी और पाखंड बताया है।
फिलहाल ममता पर हुए हमले को लेकर टीएमसी आक्रामक मोड में आ गई है। इसको लेकर वह भाजपा पर हमलावर है।
बंगाल में इस बार चुनावी संग्राम टीएमसी और भाजपा के बीच है। भाजपा ममता को कड़ी चुनौती पेश कर रही है। चुनाव में एक ओर जहां ममता बनर्जी अकेली खड़ी है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री समेत उनका पूरा कुनबा है।
ममता के चोट से भाजपा की चिंता बढऩा जायज है। इतिहास गवाह है कि ममता पर जब-जब हमला हुआ है, वह हमले के बाद और मजबूत हुई हैं। इसीलिए भाजपा चिंतित है कि इस चोट की वजह से कही ममता को सहानुभूति के रूप में वोट मिल जाए।
ममता ने अपने कार्यों से अपनी छवि एक जुझारू नेता के तौर पर बनाई है। चार दशक के अपने राजनीतिक करियर में चाहे उन पर हमले हुए हों या वह चोटिल हुईं हों, हर बार वह अपने सार्वजनिक जीवन में मजबूती से उभरकर सामने आई हैं।
ऐसी घटनाओं के बाद जब-जब ममता बनर्जी ने वापसी की है तो वह अपने विरोधियों पर और ज्यादा मजबूती से हमलावर हुईं हैं।
अपनी राजनीतिक सूझबूझ और कार्यकर्ताओं के समर्थन से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख की छवि एक निडर योद्धा के तौर पर बनी है।
साल 1990 में जब माकपा के एक युवा नेता ने उनके सिर पर वार किया था और उसके चलते उन्हें एक महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा था, तब भी वह बेहद मजबूत नेता के तौर पर उभरीं।
ऐसा ही कुछ 1993 में ममता के साथ हुआ था। जुलाई में जब वह युवा कांग्रेस नेता थीं, तब फोटो मतदाता पहचान पत्र की मांग को लेकर उस वक्त के सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग की ओर एक रैली का नेतृत्व कर रही थीं। इस दौरान पुलिस ने उनकी पिटाई की थी। घायल बनर्जी को कई हफ्तों तक अस्पताल में बिताना पड़ा था।
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इस बार अहम है लड़ाई
ममता बनर्जी अब तक के अपने राजनीतिक करियर में सबसे मुश्किल दौर का सामना कर रही है। भाजपा उन्हें कड़ी चुनौती पेश कर रही है।
2019 के लोकसभा चुनावों में कामयाबी के बाद ही भाजपा की निगाहें विधानसभा चुनावों पर लगी थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम नेता इस बार दौ सौ से ज्यादा सीटें जीत कर सरकार बनाने के दावे करते रहे हैं।
भाजपा ने अपना चुनावी नारा भी यही दिया है कि अबकी बार दो सौ पार, लेकिन अपने इस सपने को पूरा करने के लिए पार्टी ममता बनर्जी की पार्टी के दलबदलुओं का ही सहारा ले रही है। यही ममता बनर्जी की सबसे बड़ी परेशानी है। ममता की पार्टी में लंबे समय से भगदड़ मची हुई है। उनके कई खास नेता उनसे नाता तोड़ भाजपा खेमे में जा चुके हैं।
बीते दिसंबर में शाह की बांकुड़ा रैली के दौरान ममता बनर्जी के सबसे खास रहे शुभेंदु अधिकारी समेत करीब एक दर्जन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे।
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जो शुभेंदु हाल तक ममता का दाहिना हाथ माने जाते थे वे वहीं आज उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। साल 2016 में नंदीग्राम विधानसभा सीट से जीतने वाले शुभेंदु अधिकारी की वर्ष 2007 के उस नंदीग्राम आंदोलन में काफी अहम भूमिका रही है जहां से टीएमसी के सत्ता में पहुंचने का राह निकली थी।
वैसे भी अधिकारी परिवार का पूर्व मेदिनीपुर और आसपास के जिलों में काफी रसूख है। शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी और एक भाई दिब्येंदु अधिकारी अब भी टीएमसी के ही टिकट पर सांसद हैं। यही शुभेंदु ममता के खिलाफ नंदीग्राम सीट से चुनावी मैदान में हैं।
इस बार की लड़ाई अहम है, क्योंकि मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी ममता के ही नेताओं के सहारे चुनौती पेश कर रही है और लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के उनके रास्ते में रुकावट बन रही है।
नंदीग्राम में ममता का मुकाबला शुभेंदु अधिकारी से है। ममता के राजनीतिक कॅरियर में नंदीग्राम की अहम भूमिका है, क्योंकि साल 2007 में किसानों के जमीन अधिग्रहण के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन और पुलिस के साथ संघर्ष तथा हिंसा के बाद वह बड़ी नेता के तौर पर उभरी थीं।
और एक बार फिर वह नंदीग्राम से चुनाव लड़ रही है और चुनाव से पहले उन पर हमला हो गया है। वह चोट की वजह से अभी तक अस्पताल में है। उनके चोट से बीजेपी दर्द में आ गई है। तभी तो पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने गुरुवार को इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की और कहा कि यह देखना जरूरी है कि कहीं यह सहानुभूति वोट बटोरने के लिए ‘नाटक’ तो नहीं है क्योंकि राज्य के लोग पहले भी ऐसे नाटक देख चुके हैं।
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