Tuesday - 29 October 2024 - 8:33 PM

प्रवासी मजदूरों को लेकर कैसे बदला सुप्रीम कोर्ट का रुख

न्यूज़ डेस्क

नई दिल्ली। महामारी का प्रकोप झेल रहे प्रवासी मजदूरों को लेकर जहां सियासत गरमाई है तो वही कोर्ट से भी बहुत राहत की उम्मीदें अब टूटने लगी है। क्या देश के 20 जाने-माने वरिष्ठ वकीलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेज गए पत्र से कोर्ट का प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर रुख बदल गया?

क्या वकीलों के खत के बाद मजदूरों की दुर्दशा से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर अनिच्छा का रुख बदलते हुए अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्यों से 48 घंटे में जवाब मांगा? वकीलों ने अपने खत में सुप्रीम कोर्ट पर आपातकाल के दौर वाले रुख का प्रदर्शन करने का आरोप लगाया था।

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इन वकीलों के दस्तखत वाले खत को सीनियर ऐडवोकेट इंदिरा जय सिंह ने सोमवार की रात 10 बजकर 34 मिनट को सीजेआई को ई- मेल किया था। खत पर दस्तखत करने वाले 20 वकीलों में जय सिंह भी शामिल हैं।

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खत में वकीलों ने लिखा, ‘वास्तव में ऐसे तंग क्वॉर्टरों में रहने के लिए मजबूर इन गरीब मजदूरों के कोरोना संक्रमित होने का जोखिम बहुत ज्यादा हो गया। वहीं, सरकार के बयान साफ तौर पर तथ्यों से अलग हैं। कई रिपोर्ट्स इशारा करती हैं कि कई राज्यों में 90 प्रतिशत से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को सरकार की तरफ से कोई राशन नहीं मिला है और वे भोजन की कमी के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं।’

यही नहीं इन वकीलों ने अपने खत में आरोप लगाया था कि शुरुआती दौर में जब कोविड-19 के केस सिर्फ कुछ सैकड़े में थे तब सुप्रीम कोर्ट की दखल देने में नाकामी की वजह से मई में बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ। वकीलों ने कहा, ‘पिछले 6 हफ्तों से बिना किसी रोजगार या मजदूरी के एक तरह से कैद कर दिए जाने से ऊब चुके मजदूरों ने आखिरकार फैसला किया कि घरों को लौटने की कोशिश करना ही बेहतर होगा।

खास बात यह है कि तब तक देश में कोरोना संक्रमण के मामले 50 हजार को पार कर चुके थे और इन मजदूरों में से भी कई संक्रमित हो चुके थे। यहां तक कि इस चरण में भी सरकार ने शुरुआत में पैदल या ट्रकों से जा रहे मजदूरों की यात्रा/मूवमेंट को बाधित करने की सोची। बाद में सरकार बस और ट्रेनों (श्रमिक स्पेशल) के जरिए मजदूरों के मूवमेंट के लिए राजी हुई।’

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर सख्ती दिखाते हुए केंद्र और राज्यों को नोटिस दे जवाब मांगा था। इससे कुछ घंटे पहले ही सोमवार देर रात 20 वरिष्ठ वकीलों ने कोर्ट को इस मुद्दे पर खत लिखा था। कहीं इस खत ने तो प्रवासी मजदूरों के संकट पर कोर्ट के रुख को नहीं बदला?

इन वकीलों ने लिखा था …

पी. चिदंबरम, कपिल सिब्बल, सीयू सिंह, विकास सिंह, प्रशांत भूषण, इकबाल चागला, अस्पी चेनॉय, युसूफ मचाला और जनक द्वारका दास समेत 20 वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र के माध्यम से बताया था ‘कोर्ट के हस्तक्षेप करने में नाकामी (मार्च में) का नतीजा यह हुआ कि उस वक्त जब सिर्फ कुछ सौ ही कोरोना के मामले थे, तब लाखों मजदूर अपने-अपने गृहनगरों में जाने में असमर्थ हो गए। बिना किसी रोजगार या आजीविका और यहां तक कि भोजन के किसी निश्चित स्रोत के बिना ही उन्हें छोटे-छोटे दबड़ो जैसे कमरों या फुटपाथ पर रहने को मजबूर होना पड़ा।’

खत पर दस्तखत करने वाले अन्य वकीलों में सिद्धार्थ लुथरा, मोहन कातार्की, आनंद ग्रोवर, संतोष पॉल, महालक्ष्मी पावनी, मिहिर देसाई, रजनी अय्यर, राजीव पाटिल, नवरोज सीरवी, गायत्री सिंह और संजय सिंघवी भी शामिल थे।

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