न्यूज डेस्क
‘जनसंख्या नियंत्रण के रास्ते में धार्मिक व्यवधान भी एक वजह है। देश में हिंदू-मुस्लिम दोनों के लिए दो बच्चों का नियम होना चाहिए और जो इस नियम को न माने उसका वोटिंग का अधिकार खत्म कर देना चाहिए।’
यह वक्तव्य केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का है। उन्होंने गुरुवार को जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जाहिर करते हुए यह ट्वीट किया। इसके अलावा यह भी चर्चा में है कि राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा सदन में इससे जुड़ा प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश कर सकते हैं।
इस बिल में प्रस्ताव है कि समुदाय, क्षेत्र या जाति सभी स्तरों पर इसे समान रूप से लागू किया जाए। इसके अलावा दो बच्चों के बाद नसबंदी का भी प्रस्ताव है।
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गिरिराज के बयान और प्राइवेट मेंबर बिल के बाद से ऐसी चर्चा है कि बीजेपी और संघ अब नियंत्रण को बड़ा एजेंडा बनाकर पेश करने की तैयारी कर रहा है। यदि इस दिशा में मोदी सरकार काम करती है तो निश्चित ही इसमें विपक्षी दल का साथ मिलेगा।
दिलचस्प बात है कि विपक्ष भी इस मुद्दे पर अब तक जनसंख्या वृद्धि को चिंता बताते हुए इसके नियंत्रण के लिए प्रस्तावित कानून का विरोध नहीं कर रहा है। हाल में यह मुद्दा और जोर तब पकड़ा , जब यह रिपोर्ट सामने आई है कि अगले दस साल के अंदर भारत चीन को पछाड़ कर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाल देश हो जाएगा।
पहले भी भाजपा सांसद कर चुके हैं मांग
ऐसा नहीं है कि बीजेपी सांसदों ने पहली बार इस तरह की मांग की है। इसके पहले भी राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में सुधार करने की मांग उठ चुकी है लेकिन शीर्ष नेतृत्व चुप्पी साधे रहा। दिसंबर 2017 में लोकसभा में भाजपा सांसदों ने मांग उठाई थी कि राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में सुधार कर, दो संतान नीति को लागू किया जाए।
कोडरमा से भाजपा सांसद रविन्द्र कुमार ने कहा था कि जिस परिवार में दो से ज़्यादा बच्चे हो उसे सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए।
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वहीं सहारनपुर से भाजपा सांसद राघव लखनपाल ने मांग की थी कि अगर किसी परिवार में दो से ज़्यादा बच्चे हैं तो दूसरी संतान के बाद बच्चों को सरकारी नौकरी, अनुवृत्ति से वंचित किया जा। इसके साथ-साथ उस संतान पर चुनाव लडऩे पर भी रोक हो। इतना ही नहीं लखनपाल ने जनसंख्या विनियमन के लिए एक अतिरिक्त मंत्रालय की मांग भी की थी।
भाजपा के निचले और मध्य क्रम के नेता अलग-अलग मौकों पर जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो संतान नीति की मांग करते रहे हैं। हमेशा से भाजपा का यह मत रहा है कि मुस्लिम समाज की जनसंख्या वृद्धि दर, देश की जनसंख्या वृद्धि दर से बहुत अधिक है। भाजपा ये आरोप लगाती रही है कि इस विसंगति के कारण देश के कई जनपदों में मुस्लिम जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक हो गई है या 50 प्रतिशत के निकट पहुंच गई है।
भाजपा नेताओं का तर्क है कि इस जनसंख्या परिवर्तन के कारण इन क्षेत्रों में कश्मीर, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे हालत पैदा हो जाएंगे। अपनी चुनावी रैलियों में भाजपा जोर-शोर से कहती है कि यदि यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो 2055-2060 तक भारत में मुस्लिम समाज बहुसंख्यक बन जाएगा।
कई जनपदों में दिख रहा है परिवर्तन
राजनीति छोड़ अगर हम केवल आकड़ों पर जाएं तो देश के कई जनपदों में जनसंख्या परिवर्तन साफ तौर पर नजर आता है। देश में जनसंख्या विसंगति एक सच्चाई है, जिसे हम नकार नहीं सकते हैं। भाजपा के कुछ नेता बीच-बीच में इस मुद्दे को उठाते तो हैं पर उनकी कोई दूरगामी नीति नहीं है।
देश की अधिकांश समस्याएं बढ़ती जनसंख्या की वजह से हैं। रोजगार से लेकर शिक्षा, हर जगह भीड़ है। बेरोजगारी चरम पर है तो इसका कारण नौकरी की कमी होने के साथ बेरोजगारों की संख्या है। इस देश में मैन पावर तो हैं लेकिन काम नहीं है।
जनसंख्या नियंत्रण को लेकर मुखर होता रहा है संघ
जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कई बार मुखर होता रहा है। आरएसएस की कार्यकारिणी मंडल में जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण करने का प्रस्ताव भी पास किया जा चुका है।
इस नीति को सभी पर समान रूप से लागू करने की बात संघ करता रहा है। पिछले साल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि अगले 50 साल के हिसाब से नीति बने। सब पर समान रूप से लागू किया जाए, किसी को छूट न हो। जहां समस्या है वहां पहले उपाय हो।