लखनऊ डेस्क। होली के त्योहार पर हमेशा की तरह बाजार में रंगों की बिक्री जोरों पर है। ‘हर्बल’ रंगों त्वचा के लिए सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है। हाल के सालों में ये रंग अलग-अलग कैमिकलों से बनने वाले सिंथेटिक (कृत्रिम) रंगों के विकल्प के रूप में सामने आए हैं।
हर्बल कलर लोगों में लोकप्रिय हो गए हैं. लेकिन ये देखने में बिलकुल कृत्रिम रंगों जैसे होते हैं। ऐसे में ये नहीं पता चल पाता कि ये कितने हर्बल हैं। हम आपको कुछ टिप्स दे रहे हैं जिनसे आप सिंथेटिक रंगों और हर्बल रंगों में आसानी से फर्क समझ लेंगे।
इन रंगों और सिंथेटिक रंगों में ऐसे फर्क करें
- ‘हर्बल’ रंगों की चमक सिंथेटिक रंगों से कम होती है। गुलाब के फूलों से बनने वाला रंग गुलाबी होगा, चमकदार लाल नहीं।
- 100-200 रुपये की कीमत में एक किलो हर्बल कलर बनाना संभव नहीं है। हर्बल कलर बनाने में काफी लागत आती है। इनकी सामान्यता कीमत 500-600 रुपये प्रति किलोग्राम होती हैं।
- बाजार में जितने भी हर्बल रंग उपलब्ध हैं, उनमें से कुछ ही ब्रांडेड हैं। ज्यादातर दुकानदारों को इन रंगों के हर्बल होने की प्रामाणिकता से कोई मतलब नहीं होता। ऐसे में खुले में बिक रहे हर्बल रंगों से बचना चाहिए।