अविनाश भदौरिया
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाए जाने को लेकर देश में एकबार चर्चाएं शुरू हैं। नेताओं की बयानबाजी और न्यूज़ चैनलों पर बहस शुरू है। इस चर्चा को हवा उस वक्त मिली जब शुक्रवार को लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर समस्या के लिए पंडित नेहरु को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने धारा 370 पर कहा कि यह व्यवस्था अस्थायी रूप से की गई थी।
गौरतलब है कि बीजेपी ने हमेशा धारा 370 को हटाने की प्रतिबद्धिता जताई है और इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरा भी है। ऐसे में जब देश में उनकी सरकार है तो इस धारा को हटाए जाने की मांग भी तेज हो गई है। लेकिन सच तो यह है कि धारा 370 को हटाना इतना आसान नहीं है।ऐसा करने के लिए कुछ बातों को समझना बहुत जरुरी है।
अनुच्छेद 370 है क्या
बता दें कि भारतीय संविधान की अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती है। अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद यानी धारा है, जो जम्मू-कश्मीर को भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार प्रदान करती है। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था।
दरअसल 1947 में विभाजन के समय जब जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई तब जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे। इसी दौरान तभी पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने वहां आक्रमण कर दिया जिसके बाद बाद उन्होंने भारत में विलय के लिए सहमति दी।
आपातकालीन स्थिति के मद्देनजर कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करने का समय नहीं था। इसलिए संघीय संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया। यही बाद में अनुच्छेद 370 बनी। जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले।
मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रतिनिधि गोपाल स्वामी अयंगर के मुताबिक धारा 370 अंतरिम सरकार के लागू होने तक एक टेम्पररी प्रबंधन था जो स्थायी सरकार के आने के बाद स्वतः खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन यह अब तक वहां लागू है।
इसे बाद में प्रेसिडेंसियल आर्डर से चलाया गया और इसी को लेकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर यह आरोप लगते हैं कि उन्होंने संसद को बाईपास करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश लाकर इस कानून को जारी रखा क्योंकि नेहरू कश्मीर से इस कानून को खत्म नहीं करना चाहते थे।
धारा 370 को लेकर अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि धारा 370 को हटाने के लिए राज्य सरकार की सहमती लेनी होगी, सहमती उस सरकार से लेनी थी जो अंतरिम सरकार संविधान सभा के बनने से पहले कश्मीर में थी। लेकिन पिछले कई दशकों से कश्मीर में स्थायी सरकार है।इसलिए इस तरह का कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं है।
एक विचार यह भी है कि इस मुद्दे पर कश्मीर के लोगों का मत लेना चाहिए, जिसके लिए वहां की विधानसभा से अनुमोदन लिया जाए तो राज्य की जनता का प्रतिनिधित्व करती है। कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि धारा 370 को हटा पाना इतना आसन नहीं है, जितना की सोशल मीडिया पर प्रचार में बताया जाता है।
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बता दें कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2013 में जम्मू में एलान किया था कि अनुच्छेद 370 पर देश भर में बहस होनी चाहिए। फिर पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणा-पत्र में वादा किया था कि अनुच्छेद 370 को हटाया जाएगा। लेकिन ऐसा नही हुआ।अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में एकबार फिर से धारा 370 को लेकर बहस जारी है।