- 94 वर्षीय पंचुबाई की विदाई पर रोया पूरा गांव
- 40 साल पहले एक ट्रक ड्राइवर को सड़क पर भटकती मिली थीं पंचुबाई
जुबिली न्यूज डेस्क
जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुकी 94 वर्षीय पंचुबाई ने कभी सपने में नहीं सोचा था कि वह अपने परिवार के बीच कभी पहुंच पायेंगी । 40 साल पहले अपनों से दूर हुई पंचुबाई जब 19 जून को अपने परिजनों से मिली तो उनकी आंखे छलछला उठी। यह सब संभव हुआ गूगल से।
कहते हैं न तकनीक के कुछ फायदे भी तो कुछ नुकसान भी। पंचुबाई के मामले में तकनीक फायदेमंद साबित हुआ। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक गांव में रह रहीं 94 वर्षीय पंचुबाई 40 साल बाद गूगल की मदद से ही जीवन के अंतिम पड़ाव में अपने परिवार के पास पहुंच सकीं।
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यह सब एक सपने जैसा है। 40 साल से जिस घर में वह रह रही थीं उन लोगों को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा हुआ है। दरसअल 40 साल पहले पंचुबाई सड़क पर एक ट्रक ड्राइवर को भटकती मिली थीं। ड्राइवर ने उन्हें मध्य प्रदेश के दामोह जिले में पहुंचा दिया। वहां नूर खान नाम के एक आदमी ने उन्हें अपने घर में रख लिया।
नूर खान के बेटे इसरार के मुताबिक जब पंचुबाई उन्हें मिली थीं तो उन्हें मधुमक्खियों ने बुरी तरह से काट रखा था। वह साफ-साफ बोल भी नहीं पा रही थीं।
इसरार कहते हैं मैं उस वक्त छोटा था। वह मराठी में अस्पष्ट रूप से बोलती हैं, जिसे हम समझ नहीं सके कि वह क्या कह रही है। हम उन्हें अ’छन मौसी कहने लगे। जब हम उनसे पूछते थे कि वह कहां से आई है तो वह खंजमा नगर का नाम लेती थी।
वह कहते हैंकि एक दिन मेरे ख्याल में आया क्यों न मौसी के परिवार की खोज की जाए। मैंने उनके बारे में फेसबुक पर लिखा, लेकिन उनके परिजनों के बारे में कोई सुराग नहीं मिलाा। फिर मेरे दिमाग में आया क्यों न गूगल पर खंजमा नगर खोजा जाए। गूगल पर सर्च किया, पर यह जगह नहीं मिली।
इसरार कहते हैं कि तालाबंदी के दौरान ही 4 मई को मौसी से उनके गृहनगर के बारे में पूछा। इस बार उन्होंने परसापुर बताया। इसके बाद हमने इसे गूगल पर सर्च किया तो महाराष्ट्र में एक परसापुर मिला।
इसरार ने 7 मई को परसापुर में एक दुकानदार अभिषेक से फोन पर संपर्क कर महिला के बारे में बताया। उससे जानकारी मिली कि परसापुर कस्बे के पास एक गांव है, जिसे खंजमा नगर कहते हैं। इसरार ने महिला का विडियो वॉट्सऐप पर अभिषेक को भेजा। इसके बाद अभिषेक ने इसरार को बताया कि महिला की पहचान उनके रिश्तेदारों ने कर ली है।
19 जून को पंचुबाई के पोते पृथ्वी कुमार शिंदे उनको लेने इसरार के घर पहुंचे तो वहां पूरा मजमा लग गया। एक ओर गांव वालों को खुशी थी कि वह अपने परिवार के पास जा रही है तो दूसरी ओर उनके जाने का गम भी था। गांव वालों ने पंचुबाई को नम आंखों के साथ विदा किया।
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