Saturday - 2 November 2024 - 1:02 PM

जाने ग्रामीणों के लिए वरदान कैसे साबित हुआ पोषण वाटिका

रूबी सरकार

इन दिनों किसान सूदखोरी, महाजनी, शोषण, कृषि ठेकेदारी की आर्थिक लूट और नये कृषि कानूनों की वापसी को लेकर दिल्ली के बार्डरों में आंदोलनरत हैं और महिलाओं ने गांव की खेती-किसानी की कमान संभाल ली है।

मध्यप्रदेश की किसान महिलाएं भी अपने खेतों में काम कर ही रही हैं। साथ ही वे अपने परिवार के स्वास्थ्य दुरूस्त रखने के लिए अपने-अपने घर के आंगन में और कहीं-कहीं जमीन किराए पर लेकर सामूहिक रूप से पोषण वाटिका का संचालन भी कर रही हैं।

ऐसा ही एक गांव छिंदवाड़ा जिले का मेढ़कीताल है, जहां प्रवेश करते ही एक बीघा जमीन पर बनीं एक पोषण वाटिका पर मेरी नजर पड़ी, यहां महिलाएं बड़े करीने से पोषण वाटिका को संवार रही थी, जिसमें मटर, भिंडी,गोभी, मिर्च, टमाटर, पत्ता गोभी, कई तरह के साग, कई बेलदार वृक्ष जैसे- तरोई, लौकी।

इसके अलावा फलों में अमरूद, पतीता आदि लहलहा रहे थे। संवाददाता ने बड़ी उत्सुकता से पूछा, तो सविता कुसराम बताने लगी कि यह जमीन उसकी है। परंतु गांव की महिला समूह इस पोषण वाटिका का संचालन करती हैं।

दरअसल जुलाई 2020 से एक निजी कंपनी द्वारा संचालित प्रभात परियोजना के तहत महिला समूह ने यह पोषण वाटिका  का संचालन परमार्थ स्वयं सेवी संस्था के परियोजना समन्वयक गजानंद और सहायक समन्वयक चण्डीप्रसाद पाण्डेय के मार्गदर्षन में प्रारंभ किया।

दोनों समन्वयकों ने गांव की महिलाओं को समझाया, कि यदि वे समूह बनाकर किसी निजी जमीन पर पोषण वाटिका संचालित करेंगी, तो संस्थान की ओर से उन्हें पूरी मदद दी जाएगी और वे कोरोना महामारी के दौरान आर्थिक चुनौतियों का सामना कर पायेंगी।

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सविता ने बताया, मेरे पास जमीन थी और मुझे साल में इसके बदले 10 हजार किराया भी मिलना था, इसलिए उसने सहमति दे दी। इसके बाद गांव की 10 महिलाओं ने मिलकर एक समूह बनाया, जिसका नाम रखा प्रभात महिला कृषक स्व सहायता समूह।

प्रभात परियोजना की ओर से इस समूह को बीज व खाद उपलब्ध करवाया गया। परियोजना समन्वयक गजानंद के निर्देषन में पहले चरण में जमीन पर कई गोले बनाये गये। दूसरे चरण में जमीन को इस तरह बांटा, कि उसमें लगभग 600 पौधे रोपे जा सके।

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तीसरे चरण चक्र के बीच से गुजरने के लिए रास्ते बनाये गये। इसके अलावा बेलदार पौधों के लिए एक अलग से मचान और जैविक खाद के लिए एक गड्ढा खोदा गया। इसी जमीन पर नर्सरी के लिए भी इस वाटिका अलग से बनाया।

35 साल पहले शादी कर इस गांव आयी रतनियार खुश होकर बताती हैं, कि यह जो फल-सब्जी दिख रही है, ये हमलोगों ने पिछले 6 महीने से मेहनत कर बनाई है। सामूहिक रूप से काम करने पर काम में मन लगता है और समझ भी बढ़ती है।

इस तरह ज्यादा काम होता है। खुशी इस बात की है, कि अब हमारी भी थाली रंग-बिरंगी होगी। गर्भवती और रक्तअल्पता से ग्रसित महिलाओं को पोषण मिलेगा। बच्चे स्वस्थ होंगे और रोजगार के लिए पलायन भी कम होगा।

सरिता धुर्वे ने बताया, कि सहायक समन्वयक पाण्डेय ने उन्हें इन फल और सब्जी से सालभर में 5 लाख रूपये आय का लक्ष्य दिया है।

इस संबंध में पाण्डेय ने बताया, कि इस वाटिका में उत्पादित साग-सब्जियों और फलों से अनुमानतः 5 लाख रूपये का लक्ष्य बहुत जोड़ घटाने के बाद निकाला गया है। इसकी आय से समूह की प्रत्येक महिला के खाते में 30 से 40 हजार रूपये की बचत होने की संभावना है।

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फरवरी 2021 से यह उत्पादन बाजार में बेचा जायेगा। उन्होंने बताया, कि चूंकि कोरोना महामारी के दौरान तत्काल इन्हें राहत पहुंचानी थी तथा शासना देश के अनुसार ग्राम पंचायतों से पोषण वाटिका के लिए जमीन मिलने में देरी हो रही थी, इसलिए इनकी आजीविका में सुधार लाने के लिए निजी जमीन पर इसे संचालन करने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया गया।

इस तरह छिंदवाड़ विकास खण्ड के 12 गांव में सामूहिक पोषण वाटिका का संचालन हो रहा है, जिसमें मेढ़कीताल के अलावा पिपरिया बिरसा, रामगढ़ी, सरना, सिवनी मेघा, बेनगांव, खेरी भुताई, सुरगी, सहजपुरी, माल्हानवाड़ा, अटरवाड़ा आदि शामिल है।

निजी जमीन प्राप्त करने के लिए समूह को 10 हजार रूप्ए खर्च करने हैं। इसमें पानी का मूल्य भी शामिल है। आत्मनिर्भर बनने और परिवार के पोषण बेहतर करने के लिए यह मामूली रकम है।

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गजानंद ने बताया, कि इसके अलावा इन 12 गांवों के प्रत्येक घर के आंगन में 20 बाई 20 फीटका एक छोटा पोषण वाटिका बनाने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया जा रहा है। इस तरह गांव की महिलाएं परिवार के सेहत के प्रति जागरूक हो रही हैं और पूरे परिवार के स्वास्थ्य को बेहतर बना रही हैं।

समूह की सदस्य उर्मिला सरेआम इसलिए खुष हैं, कि अब उन्हें आजीविका के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। क्योंकि भाजी का बड़ा खर्च पोषण वाटिका की वजह से बच रहा है। ऊपर से बाजार में सब्जी-फल बेचकर कमा भी रही है।

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पिंकी कुशराम ने बताया, कि अब बीमारी भी कम हो रही है तथा इलाज के लिए डॉक्टरों पर खर्च होने वाला पैसा भी बच रहा है। जब कोरोना महामारी के समय आजीविका के सारे साधन खत्म हो गये थे और बाहर गये परिजन गांव वापस आ चुके थे। ऐसे में प्रभात परियोजना ने हमें बहुत सहारा दिया।

सरस्वती धुर्वे बताती हैं, कि इससे पहले यहां की महिलाएं राजीव गांधी आजीविका मिशन के तहत समूह बना चुकी थी और संस्था की ओर से वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने का प्रशिक्षण भी लिया था, जो अब काम आया है।

गौरतलब है, कि मेढ़की ताल गांव की आबादी लगभग 700 है। यहां डेढ़ सौ परिवार निवास करते हैं, जिसमें से अधिकतर आदिवासी परिवार हैं। इनके पास खेती की जमीन के अलावा आय का कोई दूसरा साधन नहीं है। इसलिए खेती से जुड़े रहना इनकी प्राथमिकता में शामिल है।

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