जुबिली स्पेशल डेस्क
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव बेहद करीब है और बागी लगातार चुनौती दे रहे है।
प्रत्याशियों की सूची पर गौर करें तो बीजेपी और शिंदे गुट के लगभग 20 ऐसे उम्मीदवार हैं , जिनको लेकर कहा जा रहा है कि उन पर नाम वापस लेने का दबाव है।
दूसरी तरफ अगर महायुति की बात करें तो करीब 35 ऐसे नेता हैं बागी रुख अख्तियार करते हुए मैदान में उतरे हुए हैं। ऐसे में दोनों तरफ से बागियों की लंबी लिस्ट है और वो गठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं।
गठबंधन के चुनाव प्रभारी बागियों को किसी भी तरह से समझाने में लगे हुए है। माना जा रहा है कि ऐसे नेताओं को नामांकन वापस कराने के लिए मनाया जा रहा ताकि कोई बड़ा नुकसान न हो।
राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे इस बार चुनावी दंगल में ताल ठोंक रहे हैं और इसी सीट से शिंदे गुट की शिवसेना की ओर से सदा सरवणकरचुनाव लड़ रहे हैं. मतलब इस सीट पर मुख्य मुकाबला अमित ठाकरे और सदा सरवणकर के बीच तगड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है लेकिन एक खबर के अनुसार सदा सरवणकर पर नामांकन वापस लेने के लिए कहा जा रहा है फिलहाल उन्होंने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में “बागी फैक्टर” या विद्रोहियों की भूमिका महत्वपूर्ण रूप से उभरकर सामने आई है, जिससे महायूति (भाजपा-शिंदे गुट-एनसीपी) और महा विकास आघाड़ी (एमवीए) गठबंधन दोनों के लिए चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। प्रमुख दलों में टिकट वितरण को लेकर असंतोष के चलते कई बड़े नेताओं ने निर्दलीय या बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे वोटों के बंटवारे की आशंका बढ़ गई है।
महायूति में भाजपा और शिंदे गुट के उम्मीदवारों के बीच कई सीटों पर संघर्ष है। भाजपा और शिंदे सेना के बागी उम्मीदवारों ने आपसी विरोध के कारण कुछ सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ नामांकन दाखिल कर दिया है। उदाहरण के लिए, मुंबई और ठाणे क्षेत्र में भाजपा और शिंदे सेना के बीच अंदरूनी मतभेद उभरकर सामने आए हैं, जो मतदाताओं में भ्रम पैदा कर सकते हैं और गठबंधन के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं
दूसरी ओर, एमवीए गठबंधन में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच सीटों के बंटवारे पर असहमति ने कुछ नेताओं को बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया है। खासकर विदर्भ क्षेत्र में कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच असंतोष बढ़ा है, जिससे स्थानीय चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के नेताओं द्वारा अन्य दलों के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने की घटनाएं, विशेष रूप से घनिष्ठ मुकाबलों में, हार-जीत के अंतर को बदल सकती हैं
कुल मिलाकर, यह विद्रोही फैक्टर दोनों प्रमुख गठबंधनों के लिए चुनौती बन सकता है, और यदि कुछ बागी उम्मीदवार जीत जाते हैं, तो वे अगले सरकार गठन में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।