Tuesday - 29 October 2024 - 4:24 AM

फांसी की सजा कितनी जायज?

न्यूज डेस्क

कुछ जघन्य अपराध के लिए फांसी ही सबसे मुफीद सजा लगती है। जैसे निर्भया के हत्यारों के लिए पूरा देश फांसी की सजा मांग रहा था और 20 मार्च को जब दरिंदों को फांसी पर लटकाया गया तो किसी को भी इसका रंचमात्र अफसोस नहीं था। यह तो हो गई निर्भया के हत्यारों की बात, लेकिन फांसी की सजा खत्म करने पर एक बहस पूरी दुनिया में चल रही है।

20 मार्च को जब निर्भया के हत्यारों को फांसी की सजा दी गई तो उसके कुछ देर बाद संयुक्त  राष्ट्र की भी प्रतिक्रिया आई। संयुक्त राष्ट्र्र ने सभी देशों से मौत की सजा के इस्तेमाल को रोकने या इस पर प्रतिबंध लगाने की अपील की। ऐसा पहली बार नहीं है। लंबे समय से ये मांग की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार 2007 में मृत्युदंड पर अमल को रोकने की मांग की थी।

याद करें जब मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेनन की फांसी दिए जाने से पहले 291 प्रतिष्ठित लोगों ने  राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर फांसी रोकने की मांग की थी। हालांकि भारत उन देशों में शुमार है जहां फांसी की सजा पर अमल न के बराबर है। हालांकि जघन्यतम अपराध के दोषियों में कानून का भय बनाये रखने के लिए भारतीय संविधान में इसका प्रावधान है और इन्हीं प्रावधानों के तहत याकूब और निर्भया के हत्यारों को फांसी दी गयी।

निर्भया के मामले में देश में कोई विरोध नहीं हुआ लेकिन याकूब मेमन की फांसी को लेकर खूब विवाद हुआ था। याकूब की फांसी का विरोध करने वालों का सबसे बड़ा तर्कथा यह ऐसा दंड है, जिसे पलटा नहीं जा सकता। मतलब फांसी होने के बाद उसे जिंदा नहीं किया जा सकता, यदि बाद में ऐसे साक्ष्य सामने आयें कि वह व्यक्ति बेगुनाह था।

मृत्युदंड पर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने कहा था कि मृत्यु दंड समाप्त करने का अर्थ हत्यारों को एक प्रकार का जीवन बीमा देना होगा कि तुम चाहे जितनी भी हत्याएं जितनी भी बर्बरता से करो, हम तुम्हें मारेंगे नहीं। मृत्यु दंड क्रूर एवं बर्बर जरूर है, लेकिन समाज को अराजकता से बचाने के लिए ऐसे दंड की जरूरत है।

भारत में फांसी पर अमल लगभग समाप्त हो चुका है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1947 के बाद से देश में अब तक कुल (निर्भया के दोषियों को मिलाकर) 61 लोगों को फांसी दी गई है।

1995 में सर्वाधिक 13 व्यक्तियों को फांसी हुई। उसके बाद मात्र नौ व्यक्तियों को फांसी हुई। 1999 से 2003 तक एक भी फांसी नहीं हुई, 2004 में धनंजय चटर्जी को फांसी हुई। फिर 2005 से 2011 तक एक भी फांसी नहीं हुई। 2012, 13 और 15 में एक-एक व्यक्ति को फांसी हुई। 2012 से 2015 तक में जो तीन को फांसी हुई है, वे सभी आतंकवादी घटनाओं में अभियुक्त थे।

अगर हम पिछले 16 साल की बात करें तो भारत में 1300 से अधिक लोगों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है, लेकिन इसमें से सिर्फ चार धनंजय चटर्जी (2004), अफजल गुरु (2013), 26/11 मुंबई हमले के आरोपी पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब (2012), याकूब मेमन(2015) को फांसी पर लटकाया गया। भारत में इस तरह से हर साल लगभग 130 लोगों को फांसी की सजा तो मिलती हैं, पर अमल में नहीं लाई जाती। वजह भारत में सजा माफी की लंबी प्रक्रिया का चलना है।

वहीं दुनिया के अन्य मुल्कों की बात करें तो भारत की तुलना में वहां ज्यादा फांसी की सजा का चलन है। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, वर्ष 2018 में 20 देशों में कम से कम 690 लोगों को मृत्युदंड की सजा दी गई। इनमें अमेरिका, चीन, ईरान, सऊदी अरब, वियतनाम, सिंगापुर और जापान शामिल है।

एमनेस्टी के मुताबिक, 2018 के अंत तक 142 देशों ने मृत्युदंड को खत्म कर दिया। इसके साथ ही वर्ष 2018 में भारत उन 29 देशों में शामिल रहा, जिसने मृत्युदंड के एक मामले में माफी दी।

संस्था के मुताबिक यह आंकड़ा 2017 के मुकाबले 31 प्रतिशत कम रहा। यह संख्या एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा एक दशक में दर्ज किए गए मामलों में सबसे कम रही। इस दौरान विश्व में 993 मृत्युदंड की सजा पर अमल किया गया।

वहीं, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की एक अलग सूचना के मुताबिक, न्याय व्यवस्था की विविधताओं, परंपराओं, संस्कृतियों और धार्मिक पृष्ठभूमि वाले संयुक्त राष्ट्र के 160 से भी अधिक सदस्य देशों ने या तो मृत्युदंड को खत्म कर दिया है अथवा इसको अमल में नहीं ला रहे हैं।

संस्था के मुताबिक अधिकतर सजाएं चीन, ईरान, सऊदी अरब, वियतनाम और इराक में दी गईं। गैर सरकारी संस्था के मुताबिक चीन मृत्युदंड की सजा के मामले में अव्वल रहा, लेकिन चीन में मौत की सजा के मामलों का खुलासा नहीं किए जाने के प्रावधान के चलते सही आंकड़ों की जानकारी नहीं मिल पाती है। एमनेस्टी के अनुसार वर्ष 2018 में वियतनाम में 85 दोषियों को मौत की सजा दी गई।

संयुक्त राष्ट्र के अपील के बाद एक बार फिर बहस तेज हो गई हैं कि देश के कानून में फांसी की सजा रहनी चाहिए या नहीं। इसके पक्ष और विपक्ष में अपने-अपने तर्क हैं, जिन पर गौर करते समय हमें उन लोगों की पीड़ा समझने की भी जरूरत है जो ऐसे जघन्यतम अपराधों से अकारण पीडि़त होते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि मृत्यु दंड देते वक्त इस तथ्य पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि अभियुक्त को अच्छे वकील की सेवा मिली या नहीं, लेकिन, आज के माहौल में मृत्यु दंड के प्रावधान को पूरी तरह खत्म करना उचित नहीं होगा, जब संगठित अपराध एवं आतंकवाद इस कदर बढ़ रहे हैं।

ये भी पढ़े :  मजाक उड़ाने वाले ही छाती भी पीटेंगे

ये भी पढ़े : कौन बनेगा मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री?

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com