जुबिली न्यूज डेस्क
एक वक्त था जब भारत में मोटा अनाज खूब पैदा होता था और लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से चाव से खाते भी थे। लेकिन जब खेती-किसानी में बाजार घुस गया तो मोटे अनाज की जगह गेहूं और धान ने ले लिया।
ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। सिर्फ 50 साल पहले हमारे खाने की परंपरा बिल्कुल अलग थी। पौष्टिकता से भरपूर मोटा अनाज खाया जाता था। हमारे यहां ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज खाने की परंपरा थी, लेकिन धीरे-धीरे यह खत्म हो गई।
60 के दशक में आई हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और मोटे अनाज को खुद से दूर कर दिया। जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है।
क्या होता है मोटा अनाज?
भारत में 60 के दशक के पहले तक मोटे अनाज की खेती की परंपरा थी। कहा जाता है कि हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से मोटे अनाज का उत्पादन कर रहे थे। भारतीय हिंदू परंपरा में यजुर्वेद में मोटे अनाज का जिक्र मिलता है।
50 साल पहले तक मध्य और दक्षिण भारत के साथ पहाड़ी इलाकों में मोटे अनाज की खूब पैदावार होती थी। एक अनुमान के अनुसार देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में मोटे अनाज की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी। मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल हैं।
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औषधि का काम करता है मोटा अनाज
ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज में पौष्टिकता की भरमार होती है। रागी भारतीय मूल का उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है। इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है। प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है।
रागी को डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। उसी तरह से बाजरा में प्रोटीन की प्रचूर मात्रा होती है। प्रति 100 ग्राम बाजरे में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है। कैरोटीन हमारी आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है।
ज्वार दुनिया में उगाया जाने वाला 5वां महत्वपूर्ण अनाज है। ये आधे अरब लोगों का मुख्य आहार है। आज ज्वार का ज्यादातर उपयोग शराब उद्योग, डबलरोटी के उत्पादन के लिए हो रहा है। बेबी फूड बनाने में भी ज्वार का इस्तेमाल होता है। बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने में ज्वार अहम भूमिका निभा सकता है।
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क्यों कहते हैं इसे मोटा अनाज
इसे मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं। धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है। इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती। इसलिए ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है।
ज्वार, बाजरा और रागी की खेती में धान के मुकाबले 30 फीसदी कम पानी की जरूरत होती है। एक किलो धान के उत्पादन में करीब 4 हजार लीटर पानी की खपत होती है, जबकि मोटे अनाजों के उत्पादन नाममात्र के पानी की खपत होती है। मोटे अनाज खराब मिट्टी में भी उग जाते हैं। ये अनाज जल्दी खराब भी नहीं होते। 10 से 12 साल बाद भी ये खाने लायक होते हैं। मोटे अनाज बारिश जलवायु परिवर्तन को भी सह जाती हैं। ये ज्यादा या कम बारिश से प्रभावित नहीं होती।