न्यूज डेस्क
पिछले दिनों हैदराबाद और उन्नाव में बेटियों के साथ जो दरिंदगी हुई, उसके बाद देश में बहस छिड़ गई। बेटियों की सुरक्षा को लेकर संसद से लेकर सड़क पर संग्राम मचा। संसद में विरोधी दलों ने इस मुद्देपर मोदी सरकार को घेरा।
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के रोज नए मामलों के बीच यह निरंतर चिंता का विषय बना हुआ है कि ये हिंसा थम क्यों नहीं रही है। अखबार के पन्ने पलटे तो पता चलता है कि देश में महिलाएं और बेटियां कितनी सुरक्षित है। देश और नागरिकों को सुरक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है। इसलिए इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों द्वारा आवाज उठाना जायज है लेकिन जब जनप्रतिनिधि ही यौन अपराधों के आरोपी है तो इस तरह के मामले में सुधार की आप कितनी उम्मीद कर सकते हैं।
चुनाव सुधार की दिशा में काम करने वाली एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) एक गैर सरकारी संस्था है। एडीआर जो प्रत्याशियों के चुनाव आयोग में जमा किए गए चुनावी हलफनामों से जानकारी निकाल कर उसकी समीक्षा करती है, ने अपनी एक नई रिपोर्ट में दावा किया है कि कम से कम 76 सांसदों और विधायकों के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ जुर्म के मामले दर्ज हैं।
चुनाव आयोग को इन जन प्रतिनिधियों ने यह जानकारी खुद ही दी है। इनमें 58 विधायक हैं और 18 सांसद। इनमें से तीन सांसद और छह विधायक ऐसे हैं, जिन पर बलात्कार जैसे अपराध के मामले घोषित किए हैं।
अगर इन जन प्रतिनिधियों की पार्टी की बात करें, तो इनमें सबसे ज्यादा भाजपा के नेता है। केंद्र में और 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सत्तारूढ़ बीजेपी के 21 सांसद और विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अपराध के घोषित मामले हैं। कांग्रेस के ऐसे 16 सांसद व विधायक हैं और वाईएसआरसीपी के 7 हैं।
अगर स्थिति को राज्यवार देखें तो पश्चिम बंगाल 16 ऐसे विधायकों और सांसदों के साथ सबसे आगे है। इसके बाद ओडिशा और महाराष्ट्र का नंबर है। यहां ऐसे 12-12 दागी हैं।
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस तरह की आरोपों वाले जन प्रतिनिधियों की संख्या चुनाव दर चुनाव बढ़ती जा रही है। 2009 से 2019 के बीच लोकसभा में महिलाओं के खिलाफ घोषित आरोप वाले सांसदों की संख्या 2 से बढ़कर 18 हो गई।
यह तो बात हुई उन लोगों की जो चुनाव जीते हैं। इनसे कहीं ज्यादा बड़ी संख्या उन कुल उम्मीदवारों की हैं जो चुनाव हार गए।
पिछले पांच साल में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में 572 उम्मीदवार ऐसे थे जिन पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं। और तो और इनमें से 410 ऐसे उम्मीदवार थे जिन्हें किसी न किसी पार्टी ने े टिकट दिया था।
असफल उम्मीदवारों की सूची में महाराष्ट्र सबसे आगे है, जहां 84 ऐसे उम्मीदवार थे। वहीं बिहार से ऐसे 75 उम्मीदवार थे और पश्चिम बंगाल से 69।
क्या है कारण
दरअसल देश में अभियुक्तों के चुनाव लडऩे पर पाबंदी नहीं है। चुनाव ना लड़ने का प्रतिबंध उन पर लागू है जिनके अपराध सिद्ध हो जाते हैं और वे अपराधी साबित हो जाते हैं। अगर किसी जन प्रतिनिधि के खिलाफ अपराध साबित हो जाता है और उसे न्यूनतम दो साल की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाती है। वह नेता जब सजा काट कर बाहर निकलता है तो उसे अगले छह साल तक चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होती। इसी व्यवस्था का फायदा आरोपी उम्मीदवार और पार्टियां उठाती हैं। चूंकि यहां मुकदमे लंबे चलते हैं और जब तक कोई अपराधी सिद्ध नहीं हो जाता तब तक पार्टियां उसे टिकट देती रहती हैं।
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