Monday - 28 October 2024 - 10:26 PM

ग्रेटा के आंदोलन के बाद से कितना बदला है पर्यावरण?

जुबिली न्यूज डेस्क

एक अभिनेता और ऑपेरा सिंगर की बेटी ग्रेटा थुनबर्ग अटलांटिक पार कर पिछले साल 28 अगस्त को जब न्यूयार्क पहुंची थीं तो उनसे पूछा गया कि वो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रप के कोई संदेश देना चाहेंगी? जवाब में थुनबर्ग ने कहा था कि, “मेरा संदेश उनके लिए बस इतना है कि विज्ञान को सुनिए। जाहिर है वो ऐसा नहीं करते हैं, तो ऐसे में मेरे सामने यही सवाल होता है कि जब और कोई उन्हें जलवायु संकट, उसकी जरूरत के बारे में नहीं समझा पा रहा है तो मैं ऐसा कैसे कर पाउंगी? तो मेरा ध्यान सिर्फ जागरूकता फैलाने पर है। ”

स्वीडन की 17 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनवर्ग आज भी वैसे ही पर्यावरण के प्रति लोगों को जागररूक करने का काम कर रही हैं जैसे दो साल पहले शुरु किया था। वह अब भी स्कूल से दूर हैं। ग्रेटा ने पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए बड़ा फैसला लेते हुए दो साल पहले स्कूली हड़ताल शुरु किया था। उनके स्कूली हड़ताल का यह सौवां सप्ताह है।

थुनबर्ग यूरोप में तब मशहूर हुईं जब उन्होंने स्वीडन के आम चुनाव से कुछ हफ्ते पहले स्कूल जाना बंद कर दिया और जलवायु परिवर्तन के असर के बारे में प्रचार करने में जुट गईं। इतना ही नहीं ग्रेटा ने चुनाव के बाद भी हर शुक्रवार को स्कूल नहीं जाने का सिलसिला जारी रखा और फिर उनके साथ हजारों छात्रों ने इसे अपना लिया। इतना ही नहीं उनके ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर’ आंदोलन में लाखों लोग शामिल हुए थे।

थुनबर्ग पर्यावरण के लिए काम करने वाले युवाओं के बीच एक बड़ा प्रतीक बन गई हैं। उन्होंने हर हफ्ते स्वीडन के स्कूल में पर्यावरण के लिए हड़ताल करने का अभियान शुरू किया जो अब दुनिया के 100 शहरों में फैल गया है। इन दो सालों में थनुवर्ग जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर दुनिया की बड़ी-बड़ी शख्सियतों से मिली, कई अंतरराष्ट्रीय मंच से भाषण भी दिया और कई देशों के विरोध-प्रदर्शन में शामिल भी हुई। इतना ही नहीं 2019 में जहां टाइम मैगजीन ने उन्हें पर्सन ऑफ द इयर का खिताब दिया तो वहीं स्टॉकहोम में नार्डिक काउंसिल ने पर्यावरण पुरस्कार से नवाजा।

यह भी पढ़ें : प्रेमिका के चक्कर में बीवी से भी हाथ धो बैठे सचिन

यह भी पढ़ें : थनबर्ग ने पर्यावरण अवॉर्ड लेने से क्यों किया इनकार

यह भी पढ़ें :  तो क्या ग्रेटा थुनबर्ग समय यात्री हैं

ग्रेटा की मेहनत और लगन को पूरी दुनिया सराह रही है। उनके प्रयासों की वजह से उनके आंदोलन से यूथ जुड़ रहे हैं, लेकिन युवाओं का यह प्रयास कितना रंग लाया है यह जानना भी जरूरी है। आइये जानते हैं कि 20 अगस्त, 2018 से क्या कुछ बदल गया है, जब थुनवर्ग ने जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए स्कूली हड़ताल शुरू की थी।

जलवायु परिवर्तन की स्थिति

इस साल की पहली छमाही (जनवरी- जून 2020) में गर्मी ने साइबेरिया में अस्सी हजार साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इसके लिए जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियों को जिम्मेदार माना जा रहा है। शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि मनुष्यों द्वारा किए गए ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के कारण हुए जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ा हैं। वरना यह दो डिग्री से ज्यादा न बढ़ा होता। अब इसका असर पूरी दुनिया के तापमान पर पड़ना तय माना जा रहा है।

पिछले कई सालों से दुनिया भर की सरकारें अंतरराष्ट्रीय मंच से कार्बन उत्सर्जन की बात कर रही हैं। बावजूद इसके इस दिशा में कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया जा सका हैं। विकास की होड़ में शामिल देश कार्बन उत्सर्जन कम करने को तैयार नहीं है। उन्हें पर्यावरण की नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था की चिंता है।

अगस्त 2018 से देखे तो जीवाश्म इधन (प्राकृतिक गैस ,कोयला ,पेट्रोलियम,) से लगभग 55.1 गिगा टन कार्बन-डाई ऑक्साइड उत्सर्जित किया गया है। वैश्विकग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन की 50 प्रतिशत वृद्धि के लिए प्राकृतिक गैस ही जिम्मेदार हैं। दूसरी वजह तेल हैं। जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियां बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।

2015 में हुए पैरिस समझौते के समय की तुलना में हम अब हर साल 4 प्रतिशत अधिक कार्बन डाई ऑकसाइड का उत्सर्जन कर रहे हैं। हमारे वैश्विक कार्बन बजट का केवल 235 गिगा टन कार्बन डाई ऑक्साइड ही बचा है। वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के नए शोध के अनुसार, 2025 तक, वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का स्तर पिछले 33 लाख वर्षों की सबसे गर्म अवधि से अधिक होने की आशंका है।

पृथ्वी की क्या है स्थिति

जुलाई 2019 को मानव इतिहास के अब तक के सबसे गर्म महीने के रूप में दर्ज किया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी आधिकारिक पुष्टि की थी। गौरतलब है कि इससे पहले जुलाई 2016, अब तक के सबसे गर्म महीने के रूप में अंकित था। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार अगस्त 2018 की तुलना में धरती का तापमान 1.19 डिग्री बढ़ गया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन ने लंबे समय तक गर्मी की संभावना को कम से कम 600 गुना तक बढ़ा दिया। वर्तमान जलवायु में भी लंबे समय तक ऐसी गर्मी की संभावना बहुत कम थी। ऐसी चरम स्थितियों की संभावना हर 130 साल में एक बार से भी कम होती है। लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कटौती के बिना सदी के अंत तक उसके ज्यादा फ्रिक्वेंसी से होने का जोखिम है।

साइबेरिया में गर्मी ने व्यापक आग भड़का दी है। जून के अंत में 1.15 मिलियन हेक्टेयर भूक्षेत्र जल चुके थे। यह लगभग 56 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के साथ जुड़ा हुआ है, जो कि स्विट्जरलैंड और नॉर्वे जैसे कुछ औद्योगिक देशों के वार्षिक उत्सर्जन से अधिक है। इसने पारमाफ्रॉस्ट के पिघलने की गति को भी तेज कर दिया। पिछले साल अमेजॉन के जंगलों से लेकर इंडोनेशिया, आर्कटिक सर्कल और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग की बड़ी घटनाएं हुई थीं। प्राकृतिक आपदा के हिसाब से 2019-2020 अब तक का सबसे खराब साल रहा है।

एक ओर कोरोना महामारी तो दूसरी प्राकृतिक आपदा ने इंसानों की समस्या को बढ़ा दिया है। इंसानों इन दोनों के सामने लाचार है। न तो वह कोरोना से निपट पा रहा है और न ही प्राकृतिक आपदा से। साइबेरिया में आग, जापान में घातक हीटवेव से लेकर ब्रिटेन में अभूतपूर्व बाढ़ की घटनाएं, जाहिर है मौसम की ऐसी असीम घटनाएं जलवायु परिवर्तन के बिना नहीं हो सकतीं।

ये भी पढ़े: मौजूं है प्रियंका गांधी का यह सवाल

ये भी पढ़े:  कोरोना काल में बदलते रिश्ते

ये भी पढ़े:  चावल या गेहूं के सहारे पोषण और सेहत की क्या होगी तस्वीर ? 

इसके अलावा भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, केन्या सहित पूर्वी अफ्रीका के कई देशों में टिड्डी दलों का हमला देखने को मिल रहा है। पिछले 25 साल में ऐसा टिड्डी दलों का हमला देखने को नहीं मिला। एएफएओ के अनुसार यह खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए एक ‘अभूतपूर्व खतरा’ है। टिड्डे के प्रकोप को जलवायु परिवर्तन द्वारा बदतर बना दी गई मौसम की स्थिति से जोड़कर देखा जा रहा है।

वैज्ञानिकों ने आशंका व्यक्त की है कि ऐसी संभावना है कि महामारी वाइल्ड फायर के मौसम में भी जारी रहेगी, और कोविड – 19 की मृत्यु दर को और बढ़ा देगी। क्योंकि जंगली आग के धुएं से लोगों की संक्रमण से लड़ने की शक्ति और फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है। इसकी वजह से ऐसे प्रभावित स्थानों के पास रहने वाले कोविड- 19 की चपेट में आ सकते हैं।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com