Tuesday - 29 October 2024 - 6:23 AM

डंके की चोट पर : 74 बरसों में कितना कुछ बदल गया बापू

शबाहत हुसैन विजेता

बापू आपको गए 74 बरस बीत गए. इन 74 सालों में कितना कुछ बदल गया. जिस सत्य और अहिंसा को आपने गुलामी तोड़ने वाला हथियार बनाया था, उन हथियारों को सियासी घुन लग गई. आपका कातिल महात्मा बन गया और आपको दो-दो टके के लोग गलियां बकने लगे.

आपके चरखे पर बापू धूल जम गई है. आपकी अहिंसा को कमजोरी समझा जाने लगा है. आपका सच चौराहे पर कत्ल कर दिया गया है. झूठ की सीढ़ी सियासत में हुकूमत दिलाने लगी है. आपने कहा था ना कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा. पाकिस्तान बनने से तो आप नहीं रोक पाए लेकिन खुद को लाश बन जाने से भी नहीं रोक पाए. आज़ाद हिन्दुस्तान में आपको सिर्फ साढ़े चार महीने मिले.

हिन्दू और मुसलमान को आप अपनी दो आँखें समझते थे मगर वक्त की करवट के साथ मुल्क हिन्दू और मुसलमान में बंटता चला गया. 14 अगस्त 1947 को हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे का जो दर्द आपने झेला था वह 75 साल में नासूर बन चुका है. नाथूराम गोडसे ने आपकी छाती पर गोलियां मारकर आपको सारी झंझटों से आज़ादी दे दी थी मगर जो जिन्दा रह गए और जिन्होंने आपके जाने के बाद इस दुनिया में कदम रखा उनका खैरमकदम नफरत के साथ ही हुआ.

बापू आपने हिन्दुस्तान से ब्रिटिशर्स को क्या इसलिए भगाया था कि जिन्हें हुकूमत सौंपी जाए वह इंसान-इंसान में फर्क करते हों. 74 सालों में क्या-क्या बदला है वह आपको राजघाट से नज़र आता है या नहीं. राजपथ से गुजरियेगा तो इंडिया गेट पर लगातार जलने वाली ज्योति अब नहीं दिखेगी. उसे वहां से ट्रांसफर कर दिया गया है. बिल्कुल उसी तरह जिस तरह से आपका महात्मा वाला ताज धीरे-धीरे आपके कातिल को ट्रांसफर हो रहा है.

बापू आपके जाने के बाद किसान बहुत गरीब हो गया. जिसे आप अन्नदाता कहते थे वह भिखारी से बदतर ज़िन्दगी जीने को मजबूर हो गया. आपको पता है कि सरकार ने उस पर ज़बरदस्ती क़ानून थोप दिया था. किसान के दिलों में आप अब भी जिन्दा हो तभी तो किसान ने आपके सत्याग्रह वाले अस्त्र को इस्तेमाल किया. वह 13 महीने खुले आसमान के नीचे बैठा रहा. इस बीच 700 किसान मर गए मगर वह डटा रहा. आखीर में जीतकर ही अपने घर गया. मगर बापू उसकी फसल का पूरा दाम उसे अब भी नहीं मिलता है.

बापू किसान वाली हालत में आपका जवान भी जी रहा है. उसके साथ पेंशन के नाम पर धोखा किया गया. उसके साथ इलाज के नाम पर धोखा किया गया. उसके रक्षा बजट में कटौती कर दी गई. बापू जो जवान सीमा पर अपना सीना अड़ा देता है उसकी सुविधाओं के बारे में सोचने की फुर्सत किसी के पास नहीं है. आपको शायद यह पता ही न चल पाया हो कि बहुत से शहीदों के घर वाले बरसों से अनशन पर बैठे हैं और अपने लिए इन्साफ मांग रहे हैं.

बापू जो हालत किसान और जवान की है उससे भी बदतर हालत स्कूल टीचर की है. बरसों हो गए उनकी भर्तियाँ ही बंद हो गई हैं. जगह निकलती रहती हैं. एक्जाम की डेट भी निकलती हैं. बड़ी तादाद में पढ़े-लिखे नौजवान सैकड़ों रुपये खर्च कर फ़ार्म भरते हैं और हज़ारों रुपये खर्च कर एक्जाम देने पहुँच जाते हैं मगर एक्जाम से पहले ही परचा आउट हो जाता है और एक्जाम कैंसिल हो जाता है. यही करते-करते बहुत से नौजवान ओवर एज हो जाते हैं और कोई रास्ता नहीं दिखता तो सुसाइड कर लेते हैं.

बापू आप अगर होते तो बड़े शर्मिंदा होते. आपको पता है कि मुल्क की सरकार इलेक्शन के दौर में हज़ारों लोगों की भीड़ को बताती है कि पिछली सरकार से इस सरकार में क्राइम घट गया है. हमारी सरकार में पिछली सरकार से 30 फीसदी कम रेप हुए हैं. 35 फीसदी कम कत्ल हुए हैं. हमारी सरकार में लूट और चोरी की वारदात भी कम हुई है. बापू सरकार को यह बताते शर्म ही नहीं आती कि हम सोसायटी को क्राइम फ्री नहीं कर पाए.

बापू आप होते तो यह देखकर दंग रह जाते कि क़ानून का हंटर उस गुंडे पर नहीं चलाया जाता जो सरकार के सपोर्ट में खड़ा होता है. बापू कभी-कभी बड़ी कोफ़्त होती है जब हुकूमत को सपोर्ट करने वाले रेपिस्ट को दरोगा सैल्यूट करता है. आपका सच जिस तरह से जूतों तले रौंद दिया गया और जिस तरह से आपकी अहिंसा का कत्ल कर दिया गया है. जिस तरह से भीड़ में माइक पर खड़े होकर एक गुंडा आपको गाली बकता है और पुलिस अधिकारी उससे हंस-हंसकर बात करता है तो अचानक से यकीन हो जाता है कि वाकई बापू का कत्ल हो गया है. वाकई अवाम यतीम हो गई है. वाकई कमजोरों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है.

बापू हक़ तो सभी को चाहिए. बापू स्कूल में पढ़ाई, अस्पताल में दवाई, थाने में इन्साफ, हर हाथ को रोज़गार, सर पर छत और सेक्योरिटी की गारंटी तो सभी को मिलनी चाहिए. अंग्रेजों को इसी वजह से ही तो आपने भगाया था ताकि हम अपने मुल्क में बगैर डर के जिन्दा रह सकें. मगर आपसे शिकायत कैसी जब आप खुद अपना महात्मा का ख़िताब तक नहीं बचा पा रहे हैं, जब शहीदों के नाम जलती ज्योति के खर्च को जोड़ा जाने लगा है. जब हिन्दू-मुसलमान नाम की दो आँखें एक दूसरे को खटकने लगी हैं तब आप बहुत निरीह और कमज़ोर नज़र आते हैं. राजघाट से निकलो बापू. आपकी ज़रूरत अभी खत्म नहीं हुई है. सारी उम्मीदें आपको ही निहार रही हैं.

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