यशोदा श्रीवास्तव
गुलाम नबी आजाद, यद्धपि कि अब लिखने का विषय नहीं रह गए फिर भी उनसे जुड़े किसी विषय पर लिखें तो वह बिना उनके अधूरा होगा। और वैसे भी कांग्रेस छोड़ कर वे तमाम ऐसे पहलू जन्मा गए जिसपर लिखते रहने का सिलसिला लंबा चलेगा।
बात उनके इस्तीफे के पत्र से शुरू करें तो तमाम सवाल स्वत: खड़े हो उठते हैं। बड़ी शिद्दत से उन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस में अपनी सेवाओं को स्वीकार करते हुए कहा कि इस दौरान वे 38 साल तक मंत्री और सात साल तक राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। इसके अलावा भी पार्टी में तमाम मर्तवा जिम्मेदार पदों पर भी रहे। मसलन संगठन और प्रदेशों के प्रभारी आदि।
अभी वे शायद 73 साल के हैं और खुद उनका ही कबूलनामा है कि वे 48 वर्ष तक कांग्रेस में अपनी सेवाएं दी। अर्थात 25 वर्ष की छोटी आयु में ही वे सेवा भाव लेकर कांग्रेस में प्रवेष कर चुके थे।
समझने की बात है कि छोटी आयु से लेकर इतनी लंबी आयु (48 वर्ष) तक बंदा सत्ता या सत्ता के निकट ही रहा। और अब जाकर जब कांग्रेस सत्ता में नहीं है,यह एहसास हुआ कि कांग्रेस में उन जैसे नेताओं का अपमान हो रहा, राहुल गांधी के हरकत बचकाना हैं और सोनिया गांधी के इर्द-गिर्द चापलूस किस्म के लोग हैं, निर्णय सुरक्षा गार्ड जैसे छोटे-मोटे लोग लेते हैं।
गुलाम नबी आजाद के इन आरोपों में सत्यता हो सकती है लेकिन यहां उनके लिए एक सवाल है कि कांग्रेस से नाराज़ मंडली का जो 23 सदस्यीय ग्रुप था, जिसके वे भी सदस्य थे, उसमें से कब और कैसे निकलकर 24 अकबर रोड(कांग्रेस मुख्यालय) आना जाना शुरू किए? क्या उन्हें राहुल या सोनिया गांधी का कोई दूत मनाने गया था या कोई आकर्षक आफर था?
जी ग्रुप से निकल कर आने के बाद इन्हें और आनंद शर्मा को हिमाचल प्रदेश चुनाव अभियान समिति और प्रचार समिति की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आनंद शर्मा तो फिर भी हिमाचल प्रदेश से हैं लेकिन गुलाम नबी आजाद को हिमाचल क्यों भेजा गया और इन्होंने स्वीकार क्यों किया?
यूपी में जब कांग्रेस का बहुत बुरा हाल नहीं था और बढ़ने की कुछ संभावना शेष थी तब इन्हें यूपी का प्रभारी बनाया गया था और इसके पीछे शायद कांग्रेस की यह सोच थी कि यूपी में ढेर सारे विधानसभा व लोकसभा क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य हैं और गोरे चिट्टे लंबे कद काठी के गुलाम नबी साहब कुछ करिश्मा कर दें। बतौर प्रभारी इन्होंने यूपी में कुछ नहीं किया। हां चापलूसों की फौज खड़ी की और उन्हें प्रदेश कांग्रेस से लेकर एआईसीसी तक का मेंबर जरूर बना दिया। यूपी में कांग्रेस के मौजूदा हालात की नींव दर असल गुलाम नबी आजाद ने ही अपने समय में रखी थी।
अभी 15 अगस्त को जिन लोगों ने कांग्रेस मुख्यालय पर झंडारोहण के वक्त आजाद साहब को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ पूरी सक्रियता से देखा था, उन्हें कुछ ही दिन बाद उनके पार्टी छोड़ने की घोषणा से जरूर अचरज हुआ होगा। गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफे में जो तर्क प्रस्तुत किए हैं,वह बहुत विश्वसनीय नहीं लगते। ऐसे ही आरोप अब तक कांग्रेस छोड़ने वाले करीब डेढ़ दर्जन नेताओं के भी रहे। कांग्रेस के अंदर खाने की खबर यह है कि कांग्रेस उन्हें जम्मू-कश्मीर वापस भेजना चाहती थी जिसे वे नहीं चाहते थे।
इसीलिए कि वे भले ही जम्मू-कश्मीर से रहे हों,न तो उनकी स्वीकार्यता जम्मू में है और न ही कश्मीर वैली में ही। यहां तक कि वे डोडा क्षेत्र के जिस मध्य कश्मीर से आते हैं, वहां भी उनकी कुछ खास अहमियत नहीं बची है। इसकी वजह वे कश्मीर और कश्मीरियों के किसी भी मुसीबत में उनके बीच जाने के बजाय दिल्ली स्थित अपने 5 साउथ एवेन्यू बंग्ले में आराम फरमाते रहे।
कश्मीर से यदि उनके राजनीतिक सफर की बात करें तो शुरुआती दौर में विधानसभा के उनके पहले चुनाव में जनाब को चार सौ से भी कम वोट मिले थे और एक बार अनंतनाग लोकसभा सीट से गठबंधन उम्मीदवार के रूप में किसी तरह जीत सके थे।
वे ज्यादातर राज्यसभा की ही शोभा रहे।गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से रुखसत होने के बाद चर्चा तेज है कि वे भाजपा में जा सकते हैं या पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह अपनी कोई पार्टी बनाकर भाजपा के सहयोग से चुनाव लड़कर भाजपा को फायदा पंहुचा सकते हैं।
इस कयास के दो कारण है,एक अब तक कांग्रेस के जितने नाम चीन चेहरे कांग्रेस छोड़े वे सब भाजपा में आए,दो राज्यसभा से विदाई के वक्त उनके प्रति प्रधानमंत्री का भावूक होना।
गुलाम नबी आजाद चाहें तो भाजपा में अपना भविष्य देख सकते हैं, लेकिन वे भाजपा के लिए कुछ कर सकते हैं,शायद ऐसा है नहीं। जहां तक जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नफा नुकसान की बात है तो सच यह है कि कांग्रेस हो या कोई अन्य पार्टी, पार्टी छोड़ने वालों की तीन कैटेगरी होती है।एक वे जो पार्टी छोड़कर दूसरे पार्टी में जाकर खुद कुछ हासिल करने की ख्वाहिश रखते हैं,दूसरे वे जो जिस पार्टी को छोड़कर जाते हैं उसका कुछ नुकसान कर पाने की माद्दा रखते हों और तीसरे वे जो जिस पार्टी में जाते हैं,उसका कुछ भला कर पाने की हैसियत रखते हों। मुमकिन है गुलाम नबी आजाद कांग्रेस छोड़ कर उसका कुछ नुकसान कर पाएं, भाजपा को कुछ दे पाएं,ऐसा नहीं जान पड़ता।