राजीव ओझा
महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इस पर सहमती जब बनेगी तब बनेगी, फिलहाल आओ महाराष्ट्र महाराष्ट्र खेलें। जनता अब क्या करेगी? जब करेगी तब करेगी, अभी तो सामने सत्ता की मलाई है, आओ मिल-बांट कर ले लें। मुख्यमंत्री जो होगा सो होगा, पहले मिनिमम कॉमन प्रोग्राम में अपना अपना हिस्सा ले लें। जी हाँ महाराष्ट्र में पिछले एक महीने से कुर्सी पाने के लिए यही खेल चल रहा है। सरकार का गठन न हुआ बारात हो गई है।
हो सकता है जबतक यह लेख आपतक पहुंचे तबतक खेल का पहला राउंड यानी द्वारचार हो चुका हो। यह भी हो सकता है कि बस घोषणा होने वाली हो। महाराष्ट्र में राजनीति का जो म्यूजिकल चेयर खेल चल रहा उसमें बड़े बड़े राजनीतिक ज्ञानी चकरा गए हैं। जनता माथा पकडे बैठी सोच रही है क्या इसी के लिए वोट दिया था।
पिछली सरकार की परफॉरमेंस से जनता बहुत खुश नहीं थी। इसी लिए आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों सबक सिखा दिया। लेकिन जनता को लगता था कि पिछली सरकार ने जैसा सोचा था वैसा काम तो नहीं किया लेकिन बाकी तो और भी खराब हैं। इस लिए चलो बीजेपी-शिवसेना को एक मौका और देते हैं। सो बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को महाराष्ट्र की जनता ने एक मौका और दे दिया। इतना जनादेश दिया कि दोनों मिल कर सरकार बना लें। लेकिन सरकार बनने के पहले ही मुख्यमंत्री को लेकर रायता फ़ैल गया।
शिवसेना छोटा भाई से मोटा भाई (बड़ा भाई) बनने को बेताब हो गई। चुनाव में तीसरे और चौथे नंबर पर रही पार्टियों को अचानक लगने लगा सत्ता की मलाई उन्हें भी खाने को मिल सकती है। इसके तीन हिस्से जरूर होंगे लेकिन कुछ न पाने से तो अच्छा है एक तिहाई ही सही। बस यहीं से रायता फ़ैलता गया। और तो और निर्दलियों को भी सम्भावना नजर आने लगी कि क्या पता इस छीना झपटी में एक-दो बढ़िया पकवान उन्हें भी खाने को मिल जाये।
दृश्य कुछ ऐसा है कि बारात सत्ता के दरवाजे पर खड़ी है। द्वारचार की तैयारी भी हो चुकी है। पुरोहित द्वारपूजा का मन्त्र पढने को तैयार हैं। बैण्ड-बाजा वाले धुन बदल बदल कर बजा रहे हैं। कभी फरमाइश होती है कि नागिन डांस के लिए… मन डोले मेरा तन डोले मेरे दिल का गया करार रे..ये कौन बजाये बांसुरिया.. बजाओ। तभी जीजा कहते हैं नहीं वो वाला बजाओ… यह देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारों क्या कहना…। लेकिन इससे फूफा रिसिया (नाराज) जाते हैं।
बैंड वाले थोडा कंफ्यूज हो जाते हैं और कुछ देर के लिए कॉमन मिनिमम वाली धुन बजाने लगते हैं। तभी घोषणा होती है- जीजा और फूफा मान गये, नाराजगी दूर हो गई, मुहूर्त बीता जा रहा है, दूल्हे राजा को घोड़ी से उतारो। द्वारपूजा के लिए हलचल तेज हो जाती है। लेकिन दूल्हा अभी भी घोड़ी से नहीं उतर रहा। उसका चेहरा सेहरा फूल की झालरों से ढंका हुआ है। लोग उसके चेहरे को देखने को बेताब हैं। दूल्हा उतरने को होता है तभी फिर हल्ला होता है कि अरे घोड़ी पर दूल्हे के साथ उसके पीछे चिपक के बैठा सहबाला गायब है। अब सहबाला को खोजा जा रहा है। बारात दरवाजे पर खड़ी है फिर से नागिन धुन बजने लगती है और नागिन डांस शुरू हो जाता है। महाराष्ट्र में यही हो रहा है। सत्ता के द्वार पर बारात खड़ी है लेकिन आगे नहीं बढ़ रही, नागिन डांस जारी है। द्वारपूजा हो जाये तो बताइयेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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