सैय्यद मोहम्मद अब्बास
बिहार में चुनावी बिगुल फूंका जा चुका है, जिसके बाद सभी दल वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। नीतीश कुमार दोबारा सत्ता में लौटने का सपना देख रहे हैं लेकिन उनके सपने पर ग्रहण लगाने के लिए महागठबंधन ने भी अपनी तैयारी कर ली है। हालांकि महागठबंधन में सीएम का चेहरा कौन होगा, इसको लेकर लगातार बहस देखने को मिल रही है।
लालू के लाल पर महागठबंधन पर एक राय नहीं
लालू के लाल तेजस्वी भले ही सीएम के दावेदार हो लेकिन महागठबंधन में उनके नाम पर आम राय बनती नहीं दिख रही है। कांग्रेस ने उनके नाम को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन इसका तेजस्वी पर कुछ खास नहीं पड़ता दिख रहा है। तेजस्वी यादव ने रविवार को एक ट्वीट किया है और बिहार को जनता को साफ शब्दों में संदेश देने की कोशिश की है।
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उन्होंने कहा है कि पहली कैबिनेट में पहली कलम से बिहार के 10 लाख युवाओं को नौकरी देंगे। बिहार में 4 लाख 50 हज़ार रिक्तियाँ पहले से ही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, गृह विभाग सहित अन्य विभागों में राष्ट्रीय औसत के मानकों के हिसाब से बिहार में अभी 5 लाख 50 हज़ार नियुक्तियों की अत्यंत आवश्यकता है। तेजस्वी के इस ट्वीट से एक बात तो साफ है कि बिहार चुनाव में नीतीश को वहीं टक्कर देंगे।
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पहली कैबिनेट में पहली कलम से बिहार के 10 लाख युवाओं को नौकरी देंगे।
बिहार में 4 लाख 50 हज़ार रिक्तियाँ पहले से ही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, गृह विभाग सहित अन्य विभागों में राष्ट्रीय औसत के मानकों के हिसाब से बिहार में अभी 5 लाख 50 हज़ार नियुक्तियों की अत्यंत आवश्यकता है।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) September 27, 2020
नीतीश बड़े भाई के रोल में लेकिन..
दूसरी ओर एनडीए ने पहले से नीतीश को सीएम का चेहरा घोषित कर रखा है। ऐसे में नीतीश अपने आप को बड़े भूमिका में एक बार फिर देख रहे हैं। हालांकि सीटों के बटवारे को लेकर चल रही रस्साकस्सी से इस बात के भी संकेत मिल रहे हैं कि बिहार एनडीए में भी सबकुछ ठीक नहीं है। जानकार बता रहे हैं कि बिहार में अब बीजेपी बड़ी भाई की भूमिका में आने की कोशिश कर रही है।
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उसकी वजह ये बतायी जा रही है कि 15 साल से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर देखने को मिल रही है। नीतीश की कमजोर होती छवि को बीजेपी भुनाना चाहती है। इसके साथ बीजेपी ही बड़े भाई की भूमिका नजर आ रही है।
सत्ता की असली चाबी सवर्णों की नहीं बल्कि पिछड़ों वर्ग के पास है
राजनीति गलियारों में इस बात में चर्चा है कि बीजेपी ने नीतीश पर दबाव बनाने के लिए चिराग को हवा दे रही है और वोट बैंक की सियासत से नीतीश पर दबाव बनाने की तैयारी में है। हालांकि इस बार उसने नीतीश के खिलाफ एक अलग रणनीति बना रखी है। चुनाव में भले ही सीएम के चेहरे के तौर नीतीश को सामने लाया है लेकिन पर्दे के पीछे कुछ और गेम खेला जा रहा है। उधर नीतीश को इस बात का इल्म है कि अंतिम समय पर माहौल बदल सकता है।
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इसलिए नीतीश ने बड़ा ट्रंप कॉर्ड खेलते हुए बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को जनता दल यूनाइटेड में शामिल किया है। इससे पहले कई मौको पर डीजीपी ने सीएम नीतीश कुमार की तारीफ में कसीदे पढ़े थे। माना जा रहा है कि उनके पार्टी में शामिल होने से सवर्णों को नीतीश अपनी तरफ करना चाहते हैं। हालांकि बिहार में सत्ता की असली चाबी सवर्णों की नहीं बल्कि पिछड़ों वर्ग अहम रोल निभाते हैं।
लेकिन बीजेपी नहीं मान रही है बड़ा भाई
बिहार की राजनीति को बेहद करीब से देख रहे वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश बताते हैं भले ही नीतीश अपने आपको सीएम के तौर पर से देख रहे हो लेकिन बीजेपी अब उन्हें बड़े भाई के तौर पर नहीं देख रही है। कुमार भावेश ने बताया कि हाल के दिनों में नीतीश कुमार की छवि काफी खराब हुई। बिहार की शाश्वत बदहाली के अलावा कोरोनाकाल में प्रवासी मजदूरों की पीड़ा से ले कर बाढ़ की मार की वजह से नीतीश कुमार की सरकार पर सवाल उठ रहा है।
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वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि सृजन घोटाला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन के दावे पर एक बहुत बड़ा दाग बनकर उभरा है। इसमें करोड़ों के सरकारी फंड का गबन किया गया जिसमें सरकार के कई बड़े अधिकारियों और नेताओं की संलिप्तता भी उजागर हुई।इस वजह से बीजेपी चुनाव से ठीक पहले सतर्क हो गई है और मोदी के चेहरे पर बिहार में अपनी दावेदारी पेश कर रही है। उन्होंने बताया कि बिहार चुनाव में नीतीश के साथ पीएम मोदी का पोस्टर लगाकर यह बात जाहिर कर दी है कि बिहार में वो नीतीश को बड़े भाई के रूप में नहीं देख रही है।
पिछले चुनाव में क्या था जाति समीकरण
बिहार चुनाव में हमेशा हमेशा जाति समीकरण पर हमेशा चुनाव लड़ा जाता है। बात अगर पिछले चुनाव की जाये तो यहां पर 61 यादव उम्मीदवारों ने बाजी मारी थी लेकिन रोचक बात यह है कि यहां पर केवल 15 प्रतिशत यादव है। बात अगर कोइरी जाति की जाये तो यहां पर आठ प्रतिशत इनकी अबादी है।
हालांकि 19 लोग इस कुइरी जाति के लोग विधायक बने जबकि कुर्मी बिहार में चार प्रतिशत है लेकिन 16 विधायक इस जाति के बने हैं। मुस्लिम की बात की जाये तो यहां पर 16 प्रतिशत है और 24 लोगों विधायक बने थे। दूसरी ओर मुसहर बिहार में पांच प्रतिशत है हैं लेकिन केवल एक सीट पर जीत नसीब हुई थी।