प्रियंका परमार
इस समय दुनिया के सभी देश कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने की कोशिश कर रही है। जब तक यह चेन नहीं टूटेगी कोरोना का संक्रमण थमेगा नहीं। इसके लिए हर देश अपने तरीके से कोशिश कर रहा है। कहीं संक्रमण की चेन का पता लगाने के लिए पुलिस लगी हुई है तो कहीं टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। सिंगापुर में कोरोना रोकने में स्मार्टफोन मददगार साबित हो रहा है।
कोरोना वायरस जिस तरह से फैल रहा है उससे तो यह तय है कि यह फिजिकल लड़ाई नहीं है। टेक्नोलॉजी के बिना हम कोरोना को हरा नहीं सकते। शायद इसीलिए यूरोप में डॉक्टर और इंजीनियर सरकारों के साथ मिलकर कुछ ऐसे एप बनाने में लगे हैं जो यह बता पायेंगे कि कोरोना संक्रमित लोग कब और किससे मिले। यानी जो काम पुलिस की टीमें कर रही है वह ऐप करेगी।
कहने का मतलब यह है कि स्मार्टफोन में लोकेशन ट्रैकर की मदद से संक्रमित व्यक्ति पर नजर रखी जाए। हांलाकि यह कोई नई तकनीक नहीं है। गूगल जैसी कंपनियां ट्रैफिक का हाल बताने के लिए इसी का इस्तेमाल करती हैं।
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जनवरी के अंतिम सप्ताह में जब सिंगापुर कोरोना संक्रमित मरीज मिलने शुरु हुए तो यहां संभावित पॉजिटिव मामलों को खोजनेेेके लिए जाजूस लगा दिए गए थे। उस समय यहां 18 मामले ही सामने आए थे, लेकिन 4 फरवरी को सिंगापुर सरकार ने कहा कि वायरस स्थानीय समुदाय में फेल हो चुका है। 16 मार्च तक सिंगापुर में 243 मामले आ गए थे और सरकार संक्रमण को रोकने के लिए कठोर कदम उठा रही थी। बाहर से आए लोगों को 14 दिन के लिए क्वारनटाइन करने के साथ-साथ मिल रहे कोरोना पॉजिटिव मरीज का एक सप्ताह की हिस्ट्री खंगाल रही थी। इसमें संक्रमित मरीज कहां-कहां गया और कितने लोगों से मिला। इसके लिए पुलिस, सीसीटीवी कैमरा आदि की मदद ली जा रही थी। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी संक्रमण रूकने के बजाए बढ़ता जा रहा था। कोरोना के मरीजों की संख्या में इजाफा होता देख सरकार ने स्मार्टफोन की मदद लेने का निर्णय किया।
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सिंगापुर में एक कंपनी ने एक ऐप बनाया है। अगर लोगों के स्मार्टफोन पर इस कंपनी का ऐप पड़ा है और उनका ब्लूटूथ भी ऑन है तो वह आस-पास के लोगों के फोन से कोड जमा कर सकता है। इस तरह से पता किया जा सकता है कि क्या किसी पार्क या अन्य सार्वजनिक जगह पर ज्यादा लोग तो जमा नहीं हैं।
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यहां इसका इस्तेमाल हो रहा है और कोरोना संक्रमित देश जर्मनी भी इसका इस्तेमाल करने पर विचार कर रहा है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यूजर का सारा डाटा सुरक्षित रहता है, बाहर से कोई उसे नहीं देख सकता। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह तभी काम करेगा अगर लोग अपनी मर्जी से ऐप और ब्लूटूथ दोनों चलाने को राजी होंगे। मतलब अगर कही आप जाना चाहते हैं और वहां बड़ी संख्या में लोग जमा है तो और सभी का ब्लूटूथ बंद है तो उनकी जानकारी नहीं मिल सकेगी।
जैसा कि मैैं पहले से कहती आई हूं कि सिंगापुर में कोरोना से जंग सिर्फ सरकार ही नहीं लड़ रही है बल्कि यहां के लोग भी लड़ रहे हैं। एक तरफ जब पूरी दुनिया में डेटा की सुरक्षा को लेकर बहस चल रही है, निजता की बात हो रही है, ऐसे में यहां के लोगों ने सरकार का साथ दिया। सरकार के पास ऐसे लोगों का डाटा था जिनका टेस्ट पॉसिटिव निकला। जब भी कोई ऐसे व्यक्ति के आस पास आया, तो उसके फोन पर मेसेज पहुंच जाता कि आप एक कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति की रेंज में हैं। इस तरह से लोग सतर्क हो जाते हैं और अपनी रक्षा कर पाते हैं।
(प्रियंका सिंगापुर में रहती हैं। वह आईटी कंपनी में कार्यरत हैं। )