न्यूज डेस्क
दो दशक से अधिक समय से ओजोन परत को हो रहे नुकसान पर चर्चा हो रही है। इसकी वजह से पूरी दुनिया के वैज्ञानिक चिंतित है। उनकी चिंता जायज है। दरअसल ओजोन परत की वजह से ही धरती पर जीवन संभव है फिर भी हम इसके महत्व को नहीं समझते। हमारी ही वजह से ओजोन की परत को नुकसान हो रहा है।
पूरी दुनिया में 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी की सतह से करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर ओजोन गैस की एक पतली परत पाई जाती है। इसे ओजोन लेयर या ओजोन परत कहते हैं। ओजोन की ये परत सूर्य से आने वाली अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन को सोख लेती है। अगर ये रेडिएशन धरती तक बिना किसी परत के सीधी पहुंच जाए तो ये मनुष्य के साथ पेड़-पौधों और जानवरों के लिए भी बेहद खतरनाक को सकती हैं।
ओजोन लेयर के बिगडऩे से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है। जलवायु परिवर्तन से धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है जिसकी वजह से कई गंभीर प्राकृतिक समस्याएं खड़ी हो गई हैं। इस गंभीर संकट को देखते हुए ही दुनियाभर में ओजोन लेयर के संरक्षण को लेकर जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है।
ओजोन हल्के नीले रंग की एक गैस होती है जो आक्सीजन के तीन परमाणुओं ( O3) का यौगिक है। ओजोन परत सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है। सूर्य से निकलने वाली खतरनाक किरणों से ओजोन परत हमें बचाती है, मगर जहरीली गैसों से ओजोन परत में एक छेद हो गया है और अब इस छेद को भरने के प्रयास हो रहे हैं।
यह जहरीली गैसें हम इंसानों द्वारा एसी और कूलर जैसे उत्पादों में इस्तेमाल होती हैं। यही नहीं, सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन आक्साइड भी ओजोन की मात्रा को कम करने में मदद करती है। ओजोन की परत विशेष तौर से धु्रवीय वातावरण में बहुत कम हो गई है। ओजोन परत का एक छिद्र अंटार्कटिका के ऊपर स्थित है।
खतरे में हैं ओजोन परत
क्या आपको मालूम है कि हमारे जीवन की रक्षा करने वाली ओजोन परत अब खुद खतरे में है। ओजोन परत पर पहले से ही छेद हो गया हैं जिसे ओजोन होल्स कहा जाता है।
वर्ष 1985 में सबसे पहले ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में एक बड़े छेद की खोज की थी। वैज्ञानिकों को पता चला कि इसके लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन(CFC) गैस जिम्मेदार है। इस गैस की खोज 1920 में हुई थी।
इस गैस का प्रयोग रेफ्रिजरेटर, हेयरस्प्रे और डिऑडरेंट बनाने वाले प्रोपेलेंट में अधिकता से होता है। साल 1987 में सीएफसी गैस के उपयोग को रोकने के लिए दुनिया के देशों में आम सहमति बनी और इसके उत्पादन पर रोक लगाने के लिए मांट्रियल संधि की गई। साल 2010 में सीएफसी के उत्पादन पर वैश्विक स्तर पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया।
अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस का इतिहास
ओजोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दशक से इसे बचाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं, लेकिन 23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओजोन फ्रैंडली वातावरण बनाया जाए।
हालांकि यह लक्ष्य इतना आसान नहीं है, फिर भी ओजोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय काम किया है। ओजोन परत को बचाने की कवायद का ही परिणाम है कि आज बाजार में ओजोन फ्रैंडली फ्रिज, कूलर आ गए हैं। इस परत को बचाने के लिए सबसे जरूरी है कि फोम के गद्दों का इस्तेमाल न किया जाए। इसके साथ ही प्लास्टिक का इस्तेमाल भी कम से कम हो।
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