Tuesday - 29 October 2024 - 12:54 PM

कोरोना संकट के बीच आजादी कितनी जरूरी ?

प्रीति सिंह

दुनिया के 200 सौ से ज्यादा देश कोरोना की जद में हैं। इनमें से अधिकांश देशों में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन है और जहां नहीं है वहां लॉकडाउन जैसे हालात है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी बार-बार कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशों से लॉकडाउन की अपील कर रहा है, क्योंकि लाइलाज कोरोना का यह सबसे सही विकल्प है। हालांकि इस लॉकडाउन के बीच आजादी की भी बात होने लगी है। कई देशों ने लॉकडाउन इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें लगता है कि लॉकडाउन होने से लोगों की आजादी छिन जायेगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजों का संख्या 19 लाख पार कर चुकी है। अब तक 114215 लोगों की मौत हो चुकी है। आंकड़ों में हर रोज भारी इजाफा हो रहा है। डब्ल्यूएचओ के साथ वैज्ञानिक, डॉक्टर एक ही बात कह रहे हैं लोग एक दूसरे से दूरी बनाकर रखें और इसके लिए लॉकडाउन बेहतर विकल्प साबित हो रहा है। चीन के बुहान में 11 सप्ताह का लॉकडाउन था और वहां कोरोना का संक्रमण रोकने में यह मॉडल बड़ा मददगार साबित हुआ, लेकिन आजाद ख्याल पंसद देशों में लोगों के लिए घरों में पांच-छह सप्ताह बंद रहना एक चुनौती से कम नहीं है।

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जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने अपने देश में औपचारिक रूप से “लॉकडाउन” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन वहां भी वैसी ही सख्ती है जैसे अन्य मुल्कों में। चांसलर मर्केल ने कहा कि वे समझती है कि आजादी कितनी जरूरी है। ऐसा ही कुछ आस्ट्रेलिया में है। लोगों से घरों में रहने की अपील की जा रही है। वहां स्कूल और स्टोर आदि खुले हैं, लेकिन जिम, पार्क आदि बंद हैं।

वहीं अमेरिका की कोरोना के संक्रमण से हालत खराब है लेकिन अब तक ट्रंप सरकार ने लॉकडाउन नहीं किया, जबकि अमेरिका में लॉकडाउन कितना जरूरी है, यह विशेषज्ञ कई बार कह चुके हैं। इसके अलावा दक्षिण कोरिया, ताइवान, वियतनाम और डेनमार्कमें लॉकडाउन जैसी कोई बात नहीं है। हालांकि इन देशों ने अपनी सीमाओं को जरूर समय रहते सील कर दिया था। इन देशों में लोग जरूरत पड़ने पर घरों से बाहर निकल रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग भी बनाए हुए हैं।

अमेरिका के नॉर्थ कारोलिना में रहने वाले गणेश शंकर कहते हैं, अमेरिका में कोरोना वायरस की तबाही किसी से छिपी नहीं है। हम लोग 16 मार्च से घरों में बंद हैं, लेकिन अमेरिकन ऐसा नहीं कर रहे। बहुत मजबूरी में हम स्टोर तक जाते हैं। लोगों से हम दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन अमेरिकन को देखकर लगता ही नहीं कि उन्हें कोरोना से डर है।

वह कहते हैं लोग बेधड़क बाहर निकल रहे हैं। दस-दस लोग झुंड में दिख जाते हैं। कोई मास्क लगाया रहता है कोई नहीं। वैसे भी यहां के लोग कितने आजाद पंसद है यह किसी से छिपा नहीं है और आज उसी की कीमत अमेरिका चुका रहा है।

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री अपने देशवासियों को घरों में रहने की अपील कर रहे हैं लेकिन अब तक उन्होंने लॉकडाउन नहीं किया है। यहां कोरोना के आंकड़ें भी बढ़ रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में रहने वाली अर्चना राय कहती हैं यहां सब कुछ वैसा ही है जैसा पहले था। कोरोना के मामले यहां बढ़ रहे हैं फिर भी गोरे इसको लेकर संजीदा नहीं हैं। यहां सिर्फ पार्क और जिम बंद हैं। बाकी सब कुछ खुला हुआ है।

वह कहती हैं  हम लोग घरों में एक माह से बंद है। स्कूल खुले हुए हैं फिर भी मैं अपने बेटे को नहीं भेज रही, लेकिन गोरे लोग वैसे ही जिंदगी जी रहे हैं जैसे पहले जीते थे। दो दिन पहले डरते-डरते सामान लेने स्टोर गई, भीड़ देखकर लौट आई।

लॉकडाउन न होने पर सिंगापुर में रहने वाली प्रियंका परमार कहती है, अमेरिका या आस्ट्रेलिया लॉकडाउन नहीं कर रहा है तो इसके पीछे कई वजहें हैं। पहला आजाद ख्याल और दूसरा आर्थिक मजूबरी। सिंगापुर में भी सरकार अर्थव्यवस्था को चोट न पहुंचे इसलिए लॉकडाउन से बच रही थी, लेकिन जब आंकड़ों में तेजी से इजाफा होने लगा तो सरकार को मजबूरी में फैसला लेना पड़ा। अब जिदंगी की कीमत पर आजादी तो नहीं दी जा सकती। हां आपके पास दक्षिण कोरिया और जर्मनी जैसे संसाधन हो तो आप रिस्क ले सकते हैं। उन देशों की आबादी भी कम है और लोग शिक्षित हैं।

प्रियंका कहती हैं, जर्मनी में बिल्कुल वैसे ही हालात है जैसा सिंगापुर में है। मेरे कई जानने वाले वहां रहते हैं। वहां भी सब कुछ बंद है। बस सैर और जरूरी सामान खरीदने के लिए बाहर निकलने की आजादी है। दो लोगों से ज्यादा एक साथ खड़े नहीं हो सकते, लेकिन चांसलर मर्केल ने बड़ी खूबसूरती से इसे लॉकडाउन का नाम नहीं दिया। उन्होंने यह भी कहा दिया कि वह समझती हैं कि आजादी कितनी जरूरी है।

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