मल्लिका दूबे
गोरखपुर। लोकसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में टिकट के फैसले को लेकर अजब घनचक्कर देखने को मिल रहा है। भाजपा सीएम के गृहक्षेत्र गोरखपुर के साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र के अब तक के संसदीय क्षेत्र देवरिया और जूताकांड के सियासी मैदान यानी संतकबीरनगर में प्रत्याशी चयन को लेकर पशोपेश में फंसी है।
वहीं बसपा से गठबंधन के बाद अपने कोटे में आयी महराजगंज संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी भी चुप्पी की चादर ओढ़े बैठी है। राहुल-प्रियंका की जोड़ी से करिश्मे की उम्मीद पालने वाली कांग्रेस ने भी गोरखपुर, डुमरियागंज, सलेमपुर संसदीय क्षेत्र में अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
गोरखपुर, देवरिया व संतकबीरनगर के बीजेपी टिकट में देरी क्यों
भारतीय जनता पार्टी गोरखपुर में सपा प्रत्याशी से उप चुनाव में मिली हार के चलते इस बार फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही है। उप चुनाव में जिस प्रत्याशी से शिकस्त मिली थी, अब वह भाजपा के पाले में हैं। पर, उप चुनाव में गठबंधन की ताकत अभी भी चुनौती के रूप में है। हालांकि गठबंधन के एक अहम अंग निषाद पार्टी को भी भाजपा अपने साथ लाने में सफल हुई है लेकिन प्रत्याशी कौन होगा, यह सवाल सुनते ही नेता कन्नी काट जा रहे हैं। यहां कभी उपचुनाव के प्रत्याशी उपेद्र शुक्ल तो कभी क्षेत्रीय अध्यक्ष डा. धर्मेन्द्र सिंह के नाम पर तो कभी सपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री जमुना निषाद के बेटे अमरेंद्र निषाद के नाम पर कयासबाजी रही।
सपा सांसद प्रवीण निषाद के भाजपा में शामिल होने के बाद वह भी चर्चाओं की लड़ाई में हैं। कई बार यह भी चर्चा शुरू हो जाती है कि सीट सुनिश्चित करने को पार्टी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी प्रत्याशी बनाकर मैदान में भेज सकती है तो कुछेक बार नाथ संप्रदाय के किसी अन्य संत के नाम पर। संतकबीरनगर में बीजेपी का टिकट फाइनल होने में देरी के पीछे जूताकांड की अहम भूमिका है।
सांसद के जूताकांड का सियासी इम्पैक्ट भांपकर ही टिकट पर अंतिम निर्णय होगा। कलराज मिश्र के चुनाव न लड़ने के ऐलान के बाद देवरिया संसदीय क्षेत्र में बीजेपी दावेदारों की लिस्ट को लेकर कंफ्यूज दिख रही है। ऐसी भी संभावना है कि संतकबीरनगर के सियासी माहौल को मैनेज करने के लिए यहां कोई नया गेम प्लान बना दिया जाए।
महराजगंज में सबकुछ ओके, फिर भी सपा नहीं खोल रहे पत्ते
महराजगंज संसदीय क्षेत्र में नए समीकरणों के चलते गठबंधन में अंदरुनी तौर पर सबकुछ ओके हो चुका है। फिर भी यहां सपा पत्ते नहीं खोल रही। गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में आयी लेकिन कांग्रेस की तरफ से सुप्रिया श्रीनेत के प्रत्याशी बनने के बाद सपा यहां मजबूत लड़ाई के लिए सीट बसपा से इंटरचेंज करने की तैयारी कर चुकी है। चर्चाओं में बसपा की तरफ से विधान परिषद के पूर्व सभापति गणेश शंकर पांडेय का नाम सबसे ऊपर है। पांडेय क्षेत्र में दौड़ने भी लगे हैं लेकिन गठबंधन की तरफ से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की जा रही।
तो ये है कांग्रेस में देरी की वजह
गोरखपुर में कांग्रेस संभवत: बीजेपी कैंडिडेट आने के बाद अपना पत्ता खोलेगी। समीकरणों को देखते हुए भाजपा की राह में कांटा बिछाने के लिए पार्टी किसी ब्रााह्मण प्रत्याशी पर दांव खेल सकती है। ब्रााह्मण प्रत्याशी होने से कांग्रेस को मिलने वाले वोट भाजपा के खाते की कटौती माने जाएंगे। डुमरियागंज में भी कांग्रेस अपना रूख स्पष्ट नहीं कर रही है। चूंकि यहां बसपा से आफताब आलम चुनाव लड़ रहे हैं आैर पीस पार्टी के डा. अयूब का भी चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है।
ऐसे में मुस्लिम मतों में बहुत बिखराव न हो, इसके चलते पार्टी यहां गैर मुस्लिम प्रत्याशी लड़ा सकती है। वैसे यहां भी कांग्रेस की तरफ से ब्रााह्मण प्रत्याशी आने की संभावना जतायी जा रही है। अगर ब्रााह्मण समीकरणों पर बहुत भरोसा नहीं हुआ तो पिछड़ी जाति पर दांव खेला जाएगा।
सलेमपुर में भाजपा और गठबंधन की तरफ से घोषित प्रत्याशी जहां क्षेत्र की खाक छानने लगे हैं वहीं कांग्रेस कुई नई खिचड़ी पका रही है। भाजपा और गठबंधन, दोनों तरफ से कुशवाहा बिरादरी का प्रत्याशी होने से कांग्रेस दूसरे मजबूत राजनीतिक समीकरण पर फोकस कर रही है। पुराने प्रत्याशी भोला पांडेय पर ही भरोसा जताया जाएगा या नए समीकरण प्रभावी होंगे, कांग्रेस खेमे में चुप्पी है।