न्यूज डेस्क
ईसाई धर्म के सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक धार्मिक पर्व में ईस्टर आता है। कहा जाता है कि सूली पर लटकाए जाने के तीसरे दिन यीशु पुनर्जीवित हो गए थे। इसी लिए ईसाई ईस्टर डे मनाते है। ईसाई धर्म में ऐसी मान्यता है कि गुड फ्राइडे के दो दिन बाद और पुन्य बृहस्पतिवार या मौण्डी थर्सडे के तीन दिन बाद आता है। इसको ईस्टर काल या द ईस्टर सीजन भी कहा जाता है।
क्यों मनाते है ईस्टर
ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार, हजारों साल पहले गुड फ्राइडे के दिन ईसाह मसीह को यरुशलम की पहाड़ियों पर सूली पर लटकाया गया था। लेकिन इसके तीसरे दिन बाद ही यानी पहले संडे को यीशु पुनर्जीवित हो गए थे। इसके बाद वो करीब 40 दिन तक अपने शिष्यों के साथ रहे थे और फिर वे हमेशा के लिए स्वर्ग चले गए थे।
इसलिए परंपरागत रूप से ईस्टर काल चालीस दिनों का होता है। ये ईस्टर दिवस से लेकर स्वर्गारोहण दिवस तक होता आया है। लेकिन आधिकारिक तौर पर अब ये पंचाशती तक पचास दिनों का होता है। इस काल को उपवास, प्रार्थना और प्रायश्चित करने के लिए भी माना जाता है।
वहीं ईस्टर पर्व के पहले सप्ताह को ईस्टर सप्ताह के तौर पर जाना जाता है। इस दिन ईसाई लोग घर से लेकर चर्च तक सजाते है। इसके बाद लोग प्रार्थना करने के साथ-साथ ही व्रत भी रखते हैं। इस दिन चर्च में मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। विशेष तौर पर बाइबल का पाठ किया जाता है।
बदलती रहती है तारीख
ईस्टर एक गतिशील त्यौहार है, जिसका अर्थ है कि ये नागरिक कैलेंडर के अनुसार नहीं चलता. नाईसीया की पहली सभा (325) ने ईस्टर की तिथि का निर्धारण पूर्णिमा (पास्का-विषयक पूर्णिमा) और वसंत विषुव के बाद आने वाले पहले रविवार के रूप में किया। गिरिजाघर के अनुसार, गणना के आधार पर विषुव की तिथि 21 मार्च है। इसलिए ईस्टर की तिथि 22 मार्च और 25 अप्रैल के बीच बदलती रहती है।
पूर्वी ईसाइयत ने अपनी गणना जूलियन कैलेंडर पर आधारित की है, इस कैलेंडर में 21 मार्च की तिथि इक्कीसवीं सदी के दौरान ग्रीगोरियन कैलेंडर के 3 अप्रैल को पड़ती है। इस कैलेंडर के अनुसार ईस्टर का उत्सव 4 अप्रैल से 8 मई के बीच पड़ता है।