यशोदा श्रीवास्तव
नेपाल के निवर्तमान पीएम केपी शर्मा ओली जाते जाते भारत से शिकवा शिकायत व गलतफहमियां दूर होने की बात कही थी,मौजूदा पीएम शेरबहादुर देउबा ने भारत के पीएम मोदी के साथ काम करने की इच्छा जताई है। यह भी कहा है कि वे भारत से किसी भी स्तर का तनाव नहीं चाहते।
नेपाली पीएम देउबा ने विश्वास मत हासिल करने के बाद भारत को दोनों देशों से संबंधों को लेकर जो बचन दिया है, इसे राजनीतिक व विदेशी कूटनीतिक दृष्टि से न देखकर उनकी अंतर आत्मा की आवाज मानी जानी चाहिए। इसे निभाने में कोई अड़चन इसलिए नहीं आनी चाहिए क्योंकि गरम मिजाज कम्युनिस्ट धड़े के मुखिया और पूर्व पीएम प्रचंड का रुख भी भारत के प्रति नरम हुआ है और माधव कुमार नेपाल तथा झलनाथ खनाल जैसे एमाले के दिग्गज नेता जो देउबा के साथ खड़े हैं,वे भी भारत से तालमेल के पक्ष में है।
कम्युनिस्ट खेमे के ये नेता भारत के साथ साथ चीन से भी संतुलन बनाए रखने के पक्ष में हैं लेकिन नेपाल का चीनीकरण होता नहीं देख सकते। ओली के करीब चार साल के शासनकाल में नेपाल चीनीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा था।
नेपाल के नई सरकार के मुखिया देउबा के लिए भारत एक ऐसा चैप्टर है जिसे लेकर उन्हें फूंक फूंक कर कदम रखना होगा क्योंकि भारत के प्रति उनके किसी भी बयान या कदम पर ओली खेमा आंख गड़ाए बैठा है।
ओली भले ही जाते जाते भारत के प्रति सद्भाव जता गए हों लेकिन उनपर भरोसा करना जल्दबाजी होगी क्योंकि उनकी राजनीति के केंद्र में भारत विरोध है और रहेगा। उन्होंने नेपाल में भारत विरोध के नाम पर जो जहर बोया है, वह इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं है और इसे खत्म करना देउबा की बड़ी चुनौती है क्योंकि सरकार सरकार से मधुर संबंध से कहीं ज्यादा जरूरी दोनो देशों के नागरिकों के बीच संबंधों का मधुर होना है।ओली शासन काल के साढ़े तीन सालों में भारतीय नागरिक और नेपाल के पहाड़ी समाज में भारी कटुता उतपन्न हुई है।
देउबा कैसे दूर करेंगे तनाव के प्रमुख कारण
बताने की जरूरत नहीं कि उत्तराखंड के लिंपियाधुरा,लिपुलेख और कालापानी को लेकर भारत और नेपाल के बीच जबर्दस्त तनाव का माहौल रहा। इस क्षेत्र से मानसरोवर मुख्य द्वार तक भारत द्वारा सड़क निर्माण करने से ओली बिलबिला उठे थे। ओली ने इस मुद्दे को इस तरह उछाला कि नेपाल में भारत विरोधी लहर चल पड़ी। चीन पाकिस्तान का साथ पाने के बावजूद वे जब कुछ नहीं कर पाए तो अपने देश का नक्शा ही बदल दिए।
नए नक्शे में लिंपियाधुरा,लिपुलेख और कालापानी को दर्ज कर अपनी पीठ खूब थपथपाई जबकि उनके इस कदम का उनकी पार्टी और सहयोगी दलों ने गैरमुनासिब बताया । प्रचंड, माधव नेपाल, झलनाथ खनाल सहित तमाम मधेसी नेताओं ने इस मुद्दे पर भारत से मिल बैठकर बात करने को कहा था।उत्तराखंड के इस भूक्षेत्रीय विवाद का हल देउबा के लिए आसान नहीं है। ओली ने इसे राष्ट्रीय अस्मिता का मुद्दा बना दिया है जो पहाड़ियों के जेहन में घर कर गया है।
पिछले कुछ सालों में तमाम ऐसी स्थिति उतपन्न हुई जो दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना।गलती यह हुई कि समय समय पर इसे सुलझाने की पहल किसी ओर से नहीं हुई। देउबा के निकटस्थ सूत्रों ने जानकारी दी है कि देउबा भारत से संबंधो को मजबूती देने क लिए दशकों पूर्व उस परंपरा को पुनर्जीवित करने को लेकर गंभीर है जिसके तहत भारत नेपाल के बीच किसी तनाव को दूर करने के लिए दोनों देशों के शीर्ष नेता दिल्ली और काठमांडू में मिल बैठकर बात चीत के जरिए हल कर लेते थे।
यदि ऐसा हो सका तो निश्चय ही दोनों देशों के बीच मधुर संबंध कभी कटु नहीं होगे।