Wednesday - 30 October 2024 - 4:53 AM

कितना खतरनाक है कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन?

डॉ. प्रशांत राय

कुछ दिनों पहले ही दक्षिण अफ्रीका में कोरोना का एक नया वेरिएंट पाया गया। यह बहुत ही संक्रामक और खतरनाक माना जा रहा है। इस वेरिएंट का नाम ग्रीक अक्षर ओमिक्रॉन पर रखा गया है।

ओमिक्रॉन को लेकर पूरी दुनिया में खौफ का माहौल है। एक बार फिर ये पाबंदियों का दौर शुरु हो गया है। सभी देश अपने-अपने तरीके से इस वायरस से लडऩे की तैयारी में जुट गए हैं।

24 नवंबर को ओमिक्रॉन वैरिएंट के पहले केस की पुष्टि के बाद 3 दिसंबर तक यानी सिर्फ 10 दिनों में ही नया स्ट्रेन 35 देशों तक फैल चुका है। दुनियाभर में अब तक इसके करीब 400 केस सामने आ चुके हैं।

भारत ने भी ओमिक्रॉन से लडऩे के लिए कमर कस ली है। भाारत सरकार नए वेरिएंट से निपटने के लिए इसकी कड़ी निगरानी कर रही है। एट रिस्क वाले देशों पर कुछ पाबंदियां लगाई गई हैं। सरकार ने इसके लिए 1 दिसंबर से नई गाइडलाइन भी जारी की है। जिसमें एट रिस्क देशों से आने वाले लोगों के लिए टेस्टिंग और आइसोलेशन जरूरी कर दिया गया है।

इसके साथ ही उनकी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग भी विभिन्न राज्य सरकारें अपने स्तर पर कर रही हैं। केंद्र सरकार की विभिन्न हेल्थ बॉडी भी अपने-अपने स्तर पर निगरानी कर रहे हैं। साइंटिस्ट और मेडिकल एक्सपर्ट्स भी नए वैरिएंट को लेकर जानकारी जुटा रहे हैं।

वैसे भारत में करीब 38 फीसदी आबादी को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी है लेकिन दोनों डोज लेने वालों में भी संक्रमण के मामले दिख रहे हैं। पूरी दुनिया या भारत की बात करे तो अभी भी हर्ड इम्यूनिटी बहुत हद तक नहीं दिख रही।

दरअसल हर्ड इम्यूनिटी तब आती है जब एक बड़ी आबादी में बीमारी से प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है, ये टीकाकरण से भी हो सकता है और प्राकृतिक रूप से बीमारी के ठीक होने के बाद भी।

यह भी पढ़ें :  डंके की चोट पर : केशव बाबू धर्म का मंतर तभी काम करता है जब पेट भरा हो

यह भी पढ़ें :  केशव प्रसाद के ‘मथुरा की तैयारी है’ बयान पर क्या बोलीं मायावती?

चूंकि भारत में डेटा की कमी है इसलिए इन मामलों से जुड़ी जानकारियां भी कम हैं इसलिए इस बात को पुख्ता तौर पर कहना अभी कठिन है लेकिन वैज्ञानिक तथ्य तो यही बता रहे हैं।

कोरोना की वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमण होना आश्चर्य की बात नहीं। जो लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके है वो तो अपने शरीर में प्राकृतिक रूप से एंटीबॉडी बना रहे हैं और जो लोग टीका ले रहे है उनको भी टीका लेने के बाद कृत्रिम रूप से उनके शरीर में एंटीबॉडी ही बनाई जाती है।

विज्ञान को माना जाए तो नेचुरल एंटीबॉडी हमेशा कृत्रिम एंटीबॉडी से कारगर रहती है चाहे वो किसी भी वायरस का संक्रमण हो। इस वैज्ञानिक सोच को अगर माना जाए तो जिनको संक्रमण हो चुका है और वो लोग रिकवर हो गए है तो उनको फिर अलग से वैक्सीन लेने की और कृत्रिम एंटीबॉडी बनाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।

इस समय वैज्ञानिक तथ्यों को देखा जाए तो सबसे खतरनाक कोरोना का डेल्टा वेरिएंट था जो पूरी दुनिया पर कहर बरपाया था। और पुराने दोनो वेरिएंट को इसने अपनी उपस्थिति से हटा दिया था क्योंकि इसकी संक्रमण दर इन दोनो से तेज थी। ऐसा देखा भी गया है कि अगर कई बार वायरस म्यूटेशन करता है तो उसमे इस क्रिया के दौरान तेजी से बदलाव और रिप्लिकेशन की वजह से कुछ  कुछ सीक्वेंस छोड़ देता है जिसकी वजह से ये कमजोर भी पडऩे लगता है।

यह भी पढ़ें : किसान मोर्चा की अहम बैठक से पहले आंदोलन को लेकर टिकैत ने दिए ये संकेत

यह भी पढ़ें : …तो कैप्टन की राह पर चलेंगे गुलाम नबी आजाद ?

यह भी पढ़ें : यूपी के डिप्टी सीएम बोले-योगी राज में ‘लुंगीवाले’, ‘टोपीवाले’ गुंडों के दिन चले गए

अब नए वेरिएंट ओमिक्रॉन की बात करते हैं। इसके बारे में अभी तक के वैज्ञानिक आधार पर (जो बहुत ज्यादा नहीं है) यह कहा जा रहा है कि इसका स्वभाव डेल्टा की तुलना में माइल्ड/नरम है और इंफेक्शन की दर डेल्टा से कई गुना ज्यादा है। अगर यह सत्य हुआ तो शायद यह विश्व के लिए वरदान साबित भी हो सकता है क्योंकि इन्फेक्शन दर ज्यादा होने की वजह से ये डेल्टा वेरिएंट को अपने इन्फेक्शन से रिप्लेस कर देगा और स्वभाव में डेल्टा से माइल्ड होने की वजह से ये साधारण सर्दी जुकाम वाले वायरस के तर्ज पर अपनी छाप छोड़ सकता है।

ओमिक्रॉन में वायरस के स्पाइक प्रोटीन वाले क्षेत्र में म्यूटेशन होने से वो वेरिएंट ऐसी क्षमता विकसित कर सकता है जिसमें कि वो इम्युनिटी से बच सकता है, यानी ये हो सकता है कि टीके या से पैदा हुई शरीर की प्रतिरोधी क्षमता का उस वायरस पर असर नहीं हो, और इस तरह से शायद ये नेचुरली वैक्सिनेटेड (यानी संक्रमित व्यक्ति के ठीक होने के बाद उत्पन्न हुवे एंटीबॉडी) को यह कम हानि पहुंचा सकेगा।

अभी ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर जो भी जानकारियाँ उपलब्ध हैं, उनसे कई तरह की संभावनाओं का संकेत मिलता है, लेकिन किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने के लिए उन्हें वैज्ञानिक आधार पर जांचने की बहुत आवश्यकता है।

(डॉ. प्रशांत राय, सीनियर रिचर्सर हैं। वह देश-विदेश के कई जर्नल में नियमित लिखते हैं।) 

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com