शबाहत हुसैन विजेता
हिन्दुस्तान की सियासत में कुछ ऐसे चेहरे हैं जो हमेशा हुकूमत में रहते हैं। सरकार किसी भी पार्टी की हो लेकिन इनका मिनिस्टर बनना तय रहता है। इलेक्शन से पहले टीवी चैनल्स और अखबारों के एग्जिट पोल यह एलान हर बार करते हैं कि कौन सी पार्टी हुकूमत में आने वाली है।
यह एलान कई बार सच के काफी करीब पहुँच जाते हैं और कई बार एग्जिट पोल मुंह के बल गिरते हैं और वह पार्टी हुकूमत में आ जाती है जो सभी को चौंका देती है।
इस चौंकाने वाले वक्त में टीवी चैनल और अखबार कहते हैं कि अंडर करंट था जो हम समझ नहीं पाये। जिस अंडर करंट को अनुभवी टीवी चैनल और अखबार महसूस नहीं कर पाते उसे सबसे पहले अगर कोई महसूस करता है तो सियासत के वही महारथी हैं जो हर सरकार में मिनिस्टर होते हैं।
कई बार विपरीत नज़र आती हवा में यह नेता उस पार्टी का दामन थामते नज़र आते हैं जो इलेक्शन में औंधे मुंह गिरती नज़र आ रही होती है और सियासत के जानकार इसे उनकी बड़ी गलती करार देते हैं लेकिन इलेक्शन के बाद जब उनका मंत्रालय तय होता है तो उन्हें मौसम विज्ञानी की संज्ञा दी जाती है। मौसम विज्ञानी यानि सियासी हवाओं का रुख भांप लेने वाला।
उत्तर प्रदेश के एक मौसम विज्ञानी मेरे शहर के भी हैं। उनका एक दौर था। हुकूमत किसकी बनेगी यह उनके ड्राइंगरूम में तय होता था। वह जब जिसकी चाहते सरकार बनवा देते थे और जब चाहते थे सरकार गिरवा देते थे। उन्होंने हर सियासी पार्टी के मुख्यालय में अपने अलग कमरे का मज़ा चखा था। उनकी एक ख़ास बात यह थी कि वह जिस पार्टी में भी रहते उसके बारे में जो भी मुंह में आता वह बोल देते और उस पार्टी का मुखिया उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता था।
सियासत की फसल बोना काम
एक दिन उनकी पार्टी के दफ्तर में उनसे अचानक मुलाक़ात हो गई तो मन में काफी दिन से चल रहा सवाल उनसे पूछ लिया कि वह जिस पार्टी में रहते हैं उसके खिलाफ आखिर क्यों बोलते रहते हैं। सवाल सुनकर वह मुस्कुराए और बोले कि देखो मैं सियासत की फसल बोने का काम करता हूँ।
हर थोड़े दिन बाद मैं अपने लगाए पौधे को उखाड़कर देख लेता हूँ कि मैंने उसकी जितनी जड़ें चाही हैं कहीं उससे ज्यादा तो नहीं निकल आयीं। अगर जड़ें ज्यादा हो जाती हैं तो उसे छांट देता हूँ ताकि हमारा लगाया पौधा हरा-भरा भी बना रहे और हमारे हिसाब से ही अपना क़द भी बनाये रहे।
वह आज भी उस पार्टी का हिस्सा हैं जिसकी हुकूमत है लेकिन अब अपने लगाये पौधे को उखाड़कर देखने का फन अब उनके पास नहीं है क्योंकि वह यह बात समझ गए हैं कि जिस अंडर करंट को सबसे पहले महसूस करने का फन उन्हें मिला था उसमें उन्होंने यह महसूस करना भी सीख लिया है कि सियासी पौधों से छेड़छाड़ की एक लिमिट होती है। लिमिट से ज्यादा जड़ें देखी गईं तो अपनी खुद की जड़ें भी कट जाने का खतरा पैदा हो जाता है।
अमरीका के पास भी मौसम विज्ञान का हुनर
हिन्दुस्तानी सियासत के मौसम विज्ञानी की तरह का हुनर एक और मुल्क के पास भी है, जिसका नाम अमरीका है। यह मुल्क दुनिया का चौधरी बनने की जुगत में लगातार लगा रहता है। इसकी खासियत यह है कि यह जिसे हथियार बेचता है उसी से जंग भी लड़ लेता है।
यह कभी हारता नहीं क्योंकि लड़ने से पहले यह मुक़ाबिल देश की जड़ों की ताकत को महसूस कर लेता है। जिस देश से जंग में उसे हार का डर दिखता है उस देश के सामने वह यह सन्देश भेजता है कि जंग आख़री विकल्प होता है। दुनिया के लिए शान्ति सबसे ज़रूरी है।
ईराक और सीरिया में तबाही की एक बड़ी दास्तान लिखने के बाद उसने ईरान की मुश्कें कसने का भी फैसला किया था लेकिन ईरान से जंग के बदले में इजराइल के खात्मे की जो तस्वीर नज़र आयी वह डराने वाली थी। ऐसे में उसने ईरान के पास शान्ति का प्रस्ताव भेज दिया। आठ साल पहले अमरीका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम की ताकत को परखने के लिए अपना अत्याधुनिक ड्रोन ईरान के आसमान पर उड़ाया।
ईरान ने अपने रिमोट से अमरीकी ड्रोन को ज़मीन पर उतार लिया और उसे अपनी राजधानी तेहरान के मुख्य चौराहे पर शीशे के भीतर इस सन्देश के साथ रखवा दिया कि यह अमरीकी ड्रोन है जो हमारी जासूसी करने आया है। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपना ड्रोन वापस लेने की काफी कोशिश की लेकिन ईरान ने यह कहकर इनकार कर दिया कि यह अब हमारी प्रॉपर्टी है।
ईरान ने मार गिराया अमरीकी ड्रोन
आठ साल तक ईरान के साथ शान्ति सम्बन्धों की वकालत करने के बाद अमरीका ने अपना दूसरा ड्रोन ईरान के आसमान पर उड़ाया। यह ड्रोन अमरीकी सेना का सबसे ताकतवर ड्रोन था। 120 मिलियन डॉलर कीमत का यह ड्रोन अमरीकी सेना की जीत में एक बड़ी भूमिका निभाने वाला माना जाता है क्योंकि यह आसमान से ज़मीन की कहानी बताने में महारत रखता है। ईरान ने इस ड्रोन को अपने मिसाइल के ज़रिये मारकर अमरीका को फिर सोचने पर मजबूर कर दिया।
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ईरान अब अमरीकी ड्रोन के मलबे का वीडियो दुनिया को दिखा रहा है और अमरीका एक बार फिर ईरान से दो-दो हाथ करने को तैयार दिख रहा है। दुनिया पर प्रभुत्व और जिन देशों की ज़मीन से तेल निकलता है उन पर क़ब्ज़े की ज़िद में जंग के बादल फिर गहराने लगे हैं। जंग हुई तो तेल की कीमतों में आग लगेगी। जंग हुई तो ईरान के साथ रूस भी खड़ा हो जाएगा। रूस खड़ा हुआ तो जंग का दायरा भी बड़ा हो जाएगा।
कई मुल्कों की उड़ी नींद
यह जंग तीसरे वर्ल्ड वार की तरफ भी बढ़ सकती है। इस जंग से पैदा होने वाला तेल संकट दुनिया को महंगाई के उस जंजाल में झोंक सकता है जिससे उबरने में उम्र बीत जायेगी। ईरान और अमरीका की जंग के बारे में सोचकर ही कई मुल्कों की नींद उड़ी हुई है।
हैरान-परेशान लोग जंग के बादल उड़ जाने की दुआएं मांग रहे हैं। जंग के बादल डराते ज़रूर हैं मगर डरने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि अमरीका की जान इजराइल में बसती है और अपनी जान की कीमत पर कोई जंग नहीं होती है।
अमरीका ने अपने ड्रोन के ज़रिये दो बार ईरान की जड़ों को परख भी लिया है। नहीं लगता कि अमरीका अपना ड्रोन खोने के बाद कुछ और खोने के लिए जल्दबाज़ी करेगा, क्योंकि अमरीका जानता है कि मौसम विज्ञानी कितना भी बड़ा हो मगर अंडर करंट से डर उसे भी लगता है।