नवेद शिकोह
ये त्याग ही था उन कलाकारों का जिन्होंने मुंबई फिल्म नगरी पलायन नहीं किया और अपनी जन्म भूमि को अपनी कर्मभूमि बनाने की जद्दोजहद में मुफलिसी का दर्द सहते रहे।
बॉलीवुड के कलाकारों से ज्यादा हुनरमंद लखनऊ के प्रतिभावान कलाकारों को यूपी फिल्म सिटी की प्लानिंग की वार्ताओं में क्यों नहीं शामिल किया जा रहा है !
मुंबई के दिग्गज कलाकार और यूपी की नौकरशाही के साथ यूपी और राजधानी लखनऊ के कलाकारों की राय-मशवरे की जरुरत क्यों नहीं महसूस की। लखनऊ के कलाकार उदास हैं।
सवाल उठा रहे हैं। मीटिंग कर रहे है। उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष और सुविख्यात हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव से किए गए ऐसे तमाम सवालों को वो जायज़ ठहराते हैं।
इस हास्य कलाकार को संजीदा कर देने वाले सुझावों को उन्होंने सरकार के समक्ष रखने का वादा किया। फिर बोले इतने सारे कलाकारों में किसको शामिल करें और किसको नहीं ये कठिन होगा।
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पत्रकार से बातचीत में फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष की इस कशमकश का समाधान भी निकल आया। राजू श्रीवास्तव खुद यूपी के जमीनी कलाकार रहे हैं इसलिए उन्हें याद दिलाया गया कि यूपी की चंद कला हस्तियों को चुनना बेहद आसान हैं।
लखनऊ पद्मश्री राजबिसारिया का शहर है जिन्हें मुंबई बॉलीवुड के तमाम सुपर स्टार अपना महागुरु मानते है। बिस्मिल्लाह की शहनाई, के.पी. सक्सेना की भाषा और बिरजू महाराज के कथक की नजाकत की तरफ मुंबई फिल्म नगरी ने हमेशा ही हसरत भरी निगाहों से देगा, सीखा और प्रेरणा ली।
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यहां मालिनी अवस्थी की लोकशैली, उर्मिल कुमार थपलियाल की नौटंकी में छिपे संजीदा हास्य-व्यंग्य और डा.अनिल रस्तोगी के अभिनय का लाभ लेने के लिए मुंबई फिल्म नगरी पलकें बिछाये रहती है।
यूपी की राजधानी लखनऊ में आकाशवाणी और दूरदर्शन के बी हाई ग्रेड के एप्रूव कलाकार हैं। रंगकर्म और विभिन्न कलाकाओं के कलाकाओं द्वारा इलेक्टेड यूपी कलाकार एसोसिएशन है।
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पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी और यश भारतीय इत्यादि पुरस्कारों से सम्मानित कलाकार हैं। दुनिया में लखनवी कल्चर की धूम मचाने वाली फिल्म उमराव जान के निर्माता निदेशक मुजफ्फर अली से लेकर पिछली भाजपा सरकार में पहली फिल्म सब्सिडी लेकर फिल्म अम्मा का निर्माण करने वाले निर्माता-निदेशक सुनील बत्ता जैसी यहां फिल्मी हस्तियां भी हैं।
ऐसी चंद हस्तियों को यूपी फिल्म सिटी की कार्य योजना में राय-मशवरे और सुझाव के लिए शामिल किया जा सकता है। तमाम तर्क-वितर्क के बाद राजू श्रीवास्तव ने कहा कि उनकी पूरी कोशिश होगी की स्थानीय वरिष्ठ प्रतिभावाओं को आमंत्रित किया जाये।
उन्होंने ये भी कहा कि यूपी फिल्म सिटी नोएडा तक सीमित नहीं रहेगी लखनऊ को भी किसी ना किसी रूप में फिल्म सिटी का इसका हिस्सा बनाने पर विचार चल रहा है।
लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष पत्रकारों से बात कर रहे थे। इत्तेफाक से बातचीत का रुख लखनऊ के कलाकारों के दर्द और फिल्म सिटी में उनकी भागीदारी की जरुरत पर केंदित हो गया।
बात निकली तो इतिहास की दास्तान तक पंहुच गई। इतिहास गवाह है जिस अवध की शान यहां की उत्कृष्ट कलाएं थी। जो अवध सल्तनों का मरकज समझा गया।
जिसकी गोद में तमाम भारतीय कलाएं फली-फूलीं और और परवान चढ़ीं, ज़ालिम वक्त ने उस अवध की शान को कई बार शर्मिंदा किया। यहां कला और कलाकारों की खूब बेक़द्री हुई।
मुफलिसी में दम तोड़ती व्यवसायिका ने कलाकारों और कलमकारों को मुंबई की फिल्म नगरी की तरफ पलायन करना पड़ा। वक्त ने फिर करवट ली।
कभी अवध कहे जाने वाले अयोध्या/फैजाबाद और लखनऊ में उम्मीद की किरण दिखी। यूपी में फिल्म सिटी की बात फिर छिड़ी।
इस बार सिर्फ बात नहीं हकीकत के तान-बाने बुनते दिखाई देने लगे। रोजगार की उम्मीदों के फूल खिलने लगे। बेरोजगारी और खालीपन से मुरझाये कलाकाओं के चेहरे खिलने लगे।
उत्तर प्रदेश की जमीन पर प्रतिभाओं की खूब फसल लहलहाती रही लेकिन इस फसल को काटा महाराष्ट्र ने। लेकिन अब जब यूपी की योगी सरकार जब यूपी में फिल्म सिटी का सपना साकार करने का काबिलेतारीफ काम कर रही है तो इसमें स्थानीय कलाकारों के मशवरे को ज़रूर शामिल करना चाहिए है।
इतिहास गवाह है भारतीय फिल्मों की दुनिया रंगमंच के हुनरमंदों ने सजाई-सवारी थी। लखनऊ में रंगमंच के दिग्गजों की कमी नहीं।
अवधि, बृज और भोजपुरी जैसी लोक कलाकारों का खजाना, कथक की नजाकत से लेकर कलमकारों की कलम की धार निश्चित तौर यूपी फिल्म सिटी की कामयाबी का फलसफा लिख सकती है। बस इस सच का अहसास कीजिए कि जिन्हे घर चलाना है उन्हें गृहपूजा के अनुष्ठान में शामिल तो कीजिए !
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