Monday - 28 October 2024 - 9:39 AM

नीतीश के नखरों को कैसे झेलेगी BJP

उत्कर्ष सिन्हा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी उन खतरों का अंदाज होने लगा है, जो आने वाले चुनावों में उनकी राह में मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। यूपीए के घटक के रूप में चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार एनडीए में जबसे शामिल हुए हैं, तबसे उनके और भाजपा के बीच दबाव बनाने का खेल जारी है।

हालांकि नीतीश कुमार का भाजपा से रिश्ता कोई पहली बार नहीं हुआ है, मगर इस बार की भाजपा भी बदली हुई है और नीतीश के सामने चुनौतियां भी पहले से ज्यादा बड़ी है। इस बार नीतीश के सामने बिहार के उनके समकालीन लालू यादव जैसे नेताओं की जगह कुछ युवा चेहरे हैं और वे नई राजनीतिक शैली में नीतीश से मुकाबिल है। इसके साथ ही नीतीश कुमार के सामने वो मुद्दे भी चुनौती बन कर खड़े हैं जिन पर उन्हे अपने सहयोगी भारतीय जनता पार्टी से भी निपटना है।

यह भी पढ़ें : इतिहास से खेलना राजनीतिक दलों के लिए एक शगल बन गया है

यूपीए से रिश्ता तोड़ कर जब नीतीश कुमार एनडीए में गए थे तब ये सवाल उठाया जा रहा था कि अमित शाह की आक्रामक राजनीति के सामने वे कब तक और कितना टिकेंगे ? मगर नीतीश ने केन्द्रीय मंत्रीमंडल में शामिल होने से मना कर खुद को उस दबाव से बचा लिया। इसके बाद राज्य दर राज्य भाजपा की हार और महाराष्ट्र में शिवसेना से मिले झटके का असर बिहार की सियासी बयार पर भी पड़ा और अमित शाह को ये ऐलान करना पड़ा कि बिहार विधान सभा के चुनावों में एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे। यह भी नीतीश की एक जीत ही मानी जानी चाहिए।

लेकिन इसके बाद नीतीश के सामने कुछ मुश्किलें खड़ी होने लगी हैं। उनकी सबसे बड़ी मुश्किल का सबब बना है नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का नया प्रारूप। ये दोनों ऐसे मुद्दे हैं जिन पर मतभेद कुछ इस तरह बढ़े कि नीतीश की पिछली जीत के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर से उनके रिश्ते खट्टे हो गए और प्रशांत किशोर ने अपनी नई डगर चुन ली।

प्रशांत किशोर अब “बात बिहार की” नाम से अभियान चला रहे हैं और उनका मुद्दा भी वही बिहार का विकास है, जिसके ब्रांड अंबेसडर अभी तक नीतीश कुमार ही बने हुए हैं। जाहिर है “विकास” के डोमेन में नीतीश को नई चुनौती मिलने लगी है।

यह भी पढ़ें : क्या अपने भक्त को दर्शन देंगे भगवान ट्रम्प ?

अब लौटते हैं सीएए और एनपीआर पर। सीएए पर नीतीश ने जब मोदी सरकार को समर्थन दिया था तब उनकी ही पार्टी के कई वरिष्ठ नेता उनसे नाराज हो गए थे, लेकिन नीतीश कुमार ने अपना रुख नहीं बदला। हालांकि एनआरसी से वे सहमत भी नहीं रहे।

पिछले महीने भी नीतीश कुमार ने कहा था कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का सवाल ही पैदा नहीं होता है. उन्होंने कहा कि यह तो केवल असम को लेकर चर्चा में था, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे स्पष्ट कर चुके हैं. अब एक बार फिर नीतीश यही बात दोहरा रहे हैं।

यह भी पढ़ें : संघ करेगा भाजपा विधायकों की जासूसी, माननीयों में सिहरन

नीतीश ने यह भी कह दिया है कि बिहार में अव्वल तो एनआरसी लागू नहीं होगा और यदि एनपीआर की प्रक्रिया शुरू होगी भी तो वो नए प्रारूप पर नहीं होगी। एनआरसी भाजपा के लिए एक बड़ा मुद्दा है, प्रधानमंत्री इससे पीछे हटने से मना करते रहे हैं और उनके सहयोगी नीतीश कुमार इस पर आगे बढ़ने को तैयार नहीं है।

नीतीश के इस रुख पर वरिष्ठ पत्रकार कुमार भवेश चंद्र का कहना है कि, ”नीतीश के लिए बिहार के मुस्लिम वोटों को बचाए रखना बहुत जरूरी है। वे जानते हैं कि ताज़ा माहौल में उनके और भाजपा के साथ आने से मुस्लिम वोटर उनसे दूर जा सकते हैं, जिसका फायदा विपक्षी दलों को मिलेगा। ऐसे में नीतीश की खुद की इमेज भी प्रभावित होगी, बिहार के जातीय गोलबंदी को समझते हुए नीतीश ने एक बार फिर जातिगत जनगणना की बात छेड़ दी है। इस मामले को उठा कर उन्होंने एक बार फिर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है।”

आने वाले दिनों में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल होने की संभावना है। भाजपा चाहेगी कि नीतीश की पार्टी इसका हिस्सा बने, अब नीतीश कुमार का क्या रुख होता है ये देखना बाकी है। इस पूरे घटनाक्रम में एक बात तो तय हो चुकी है कि बिहार के चुनावों में एनडीए की पूरी संभावना नीतीश कुमार पर ही टिकी है और इस बात को वे अच्छी तरह समझते भी है। ऐसे में नीतीश भाजपा को हावी होने का कोई मौका नहीं देना चाहते। अब तक तो नीतीश का पलड़ा ही भारी दिखाई दे रहा है।

यह भी पढ़ें : कांग्रेस भूल रही सियासत का कौन सा ककहरा ?

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com