कृष्णमोहन झा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि संभा की त्रिवार्षिक बैठक में सरकार्यवाह की जिम्मेदारी अगले तीन वर्षों के लिए दत्तात्रेय होसबोले को सौंपी गई है जो इस पद पर सुरेश भैयाजी जोशी के उत्तराधिकारी बने हैं। संघ की परंपरा के अनुसार दत्तात्रेय होसबोले को प्रतिनिधि सभा के समस्त सदस्यों ने सर्वसम्मति से सरकार्यवाह चुना।
उल्लेखनीय है कि निवर्तमान सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी 2018 में ही अपना तृतीय कार्य काल पूर्ण होने पर स्वास्थ्य कारणों से पदत्याग करना चाहते थे परन्तु एक वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए उनके कार्यकाल में तीन वर्षों का विस्तार किया गया था।
सुरेश भैयाजी जोशी 12 वर्षों तक सरकार्यवाह पद पर रहे और इसे सुखद संयोग ही कहा जा सकता है कि उनके चतुर्थ कार्यकाल में केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने के लिए उक्त अनुच्छेद को निष्प्रभावी करने का साहसिक फैसला किया।
सरकार्यवाह के रूप में सुरेश भैयाजी जोशी के चतुर्थ कार्यकाल में ही सदियों पुराने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना वह ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसने अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
गत वर्ष अयोध्या में संपन्न राम मंदिर भूमि पूजन समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ सरसंघचालक मोहन भागवत की उपस्थिति इस तथ्य को प्रमाणित कर रही थी कि राममंदिर आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी।
सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने भाषण में राममंदिर आंदोलन के प्रारंभ से ही संघ के जुड़ाव का उल्लेख किया था। इसी संदर्भ में उन्होंने पूर्व सरसंघचालक बाला साहेब देवरस का स्मरण भी किया था। सुरेश भैयाजी जोशी के कार्यकाल में ही भाजपा ने लगातार दो लोकसभा चुनावों में अपने अपने दम पर बहुमत हासिल कर इतिहास रचा।
उनका स्थान अब उन्हीं के समान सहज,सरल व्यक्तित्व के धनी और अनेक भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में पारंगत दत्तात्रेय होसबोले ने लिया है जिन्हें संघ में सभी दत्ताजी कहकर संबोधित करते हैं। यह संबोधन उनके प्रति उस असीम आदर और प्रेम का परिचायक है जिसे संघ के स्वयंसेवक के रूप में एक निस्पृह कर्मयोगी की लगभग साढ़े पांच दशकों की समर्पित सेवा साधना के सुफल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
दत्तात्रेय होसबोले विगत बारह वर्षों से संघ में सह कार्यवाह के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे।इस नाते संघ में सर कार्यवाह पद की जिम्मेदारियों से भी वे भली भांति अवगत हैं । सरकार्यवाह निर्वाचित होने के बाद वे संघ में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हुए हैं । उल्लेखनीय है कि संघ की संरचना में यद्यपि सरसंघचालक का पद सर्वोच्च होता है परंतु उसे मार्गदर्शक और संरक्षक माना गया है ।
संघ में कार्यपालन प्रमुख सरकार्यवाह ही होता है जिसकी सहायता के लिए पांच सह कार्यवाह होते हैं। इनकी नियुक्ति नवनिर्वाचित सरकार्यवाह के द्वारा की जाती है।हाल में ही निर्वाचित सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने भी पांच सह कार्यवाह मनोनीत कर दिए हैं ।
दत्तात्रेय होसबोले ने जो पांच सह कार्यवाह अपनी टीम में शामिल किए हैं उनमें डा मनमोहन वैद्य,डा कृष्ण गोपाल और मुकुंद सीआर पहले से ही सहकार्यवाह के रूप में कार्य कर रहे हैं जबकि अरुण कुमार और रामदत्त चक्रधर
अभी तक क्रमशः अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख और उत्तर पूर्व क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक पद का दायित्व संभाल रहे थे। संघ से भाजपा में गए राम माधव की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में संघ में वापसी हो गई है। संघ के नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने जो पांच सह कार्यवाह मनोनीत किए हैं उनके बीच कार्य का विभाजन भी कर दिया गया है ।
इस कार्यविभाजन में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को सहकार्यवाह डा मनमोहन वैद्य का मुख्यालय बनाए जाने जो फैसला किया गया है उसे संघ में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन माना जा रहा है। मनमोहन वैद्य की वरिष्ठता को देखते हुए उन्हें पुनः सहकार्यवाह पद की जिम्मेदारी मिलना तो सुनिश्चित माना जा रहा था उनका मुख्यालय भोपाल कर दिए जाने के निहितार्थ भी खोजे जा रहे हैं।
यह माना जा रहा है कि नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले मध्यप्रदेश में संघ की पकड़ और मजबूत बनाने की मंशा से मनमोहन वैद्य को भोपाल भेज रहे हैं। इस बदलाव से यह संकेत भी मिलता है कि दत्तात्रेय होसबोले के लिए मध्यप्रदेश की कितनी अहमियत है। मनमोहन वैद्य न यह केवल सांगठनिक कौशल के धनी हैं अपितु संघ में उन्हें कुशल रणनीतिकार भी माना जाता है।
यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि संघ के एक पूर्व सरसंघचालक के सी सुदर्शन ने अपने पद से निवृत्त होने के बाद मध्यप्रदेश की राजधानी को अपना तीसरा मुख्यालय बना लिया था। मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वी शर्मा को संघ के निकट माना जाता है।
इसलिए मनमोहन वैद्य का मुख्यालय भोपाल बनाए जाने के पीछे यह मंशा हो सकती है कि संगठन के माध्यम से सरकार की गतिविधियों और कार्यक्रमों की सतत निगरानी की जा सके।
पैंसठ वर्षीय दत्तात्रेय होसबोले को ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह की जिम्मेदारी सौंपी गई है जब संघ भी परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। उनके सामने अवसर तो हैं परन्तु चुनौतियां भी कम नहीं हैं।केंद्र और देश के अनेक राज्यों में इस समय भाजपा के पास सत्ता की बागडोर है। इसलिए उन राज्यों में और केंद्र में सरकार के हर फैसले को संघ की विचारधारा से प्रेरित माना जाता है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि केंद्र के कई ऐतिहासिक फ़ैसले संघ की विचारधारा के अनुरूप रहे हैं लेकिन अगर उन फैसलों का संबंध राष्ट्र की एकता और अखंडता से है तो वे निःसंदेह स्वागतेय हैं। इसलिए ऐसे फैसले लेने के लिए संघ ने सरकार के साहस की न केवल सराहना की है बल्कि उन फैसलों की सार्थकता के बारे में फैलाई जा रही गलतफहमी को दूर करने के लिए जनजागरण अभियान भी चलायाहै।
हमेशा ही विपक्ष के निशाने पर रहने वाले इस स्वयं सेवी संगठन पर विपक्ष के हमले विगत कुछ वर्षों में और तेज हुए हैं।विपक्ष को जब सरकार की आलोचना करनी होती है तो पहले संघ उसके निशाने पर आता है यद्यपि पलटवार करने में संघ ने कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई।
संघ के नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने अपना पदभार ग्रहण करने के बाद आयोजित पत्रकार वार्ता में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते हुए अपने जो विचार व्यक्त किए हैं उनसे यही संदेश मिलता है कि देश के समक्ष मौजूद परिस्थितियों को ध्यान में रखकर संघ अपनी जो दिशा तय करता है उस दिशा में संघ को आगे ले जाने के लिए संकल्पित भाव से जुटे रहना ही सरकार्यवाह के रूप में उनकी सर्वोपरि जिम्मेदारी है।
सरकार्यवाह ने नवभारत के निर्माण की संघ की परिकल्पना को और स्पष्ट करते हुए कहा कि पुरातन ज्ञान को नकारने से काम नहीं चल सकता। हमें अपने अतीत को ध्यान में रखकर उस पुरातन ज्ञान के आधार पर नए भारत का निर्माण करना है और नयी पीढ़ी की आवश्यकताओं के अनुरूप उसे कैसे विकसित किया जा सके इसके लिए वैचारिक अभियान और वैचारिक प्रबोधन की आवश्यकता है संघ इस दिशा में निरंतर प्रयास रत रहा है।
दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि संघ के प्रति युवाओं का आकर्षण बढ़ रहा है । विदेशों में भी संघ के प्रति जिज्ञासा है और संघ के कार्यों की प्रशंसा हो रही है। संघ का उद्देश्य भेदभाव रहित हिंदू समाज का निर्माण है। कार्य विस्तार , समाज परिवर्तन और वैचारिक प्रबोधन के माध्यम से ही हम अपने लक्ष्य को अर्जित कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं के ज्ञाता दत्तात्रेय होसबोले अनेक देशों की यात्राएं कर चुके हैं और विदेशी भाषाओं में उनकी प्रवीणता ने विदेशों में अधिकाधिक लोगों तक संघ के विचारों को प्रभावी तरीके से पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे तेरह वर्ष की आयु में संघ के सदस्य बने। उनके पास अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संघ में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करने का सुदीर्घ अनुभव है।
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संघ के कामकाजी प्रमुख के रूप में उन्होंने काम शुरू कर दिया है। उन्हें यद्यपि अभी तीन वर्षों के लिए चुना गया है परंतु यह भी अभी से सुनिश्चित माना जा रहा है कि सरकार्यवाह के पद पर वे दूसरा कार्यकाल भी पूरा करेंगे जब लोकसभा के आगामी चुनावों में संघ की भूमिका पिछले दो चुनावों की भांति महत्वपूर्ण होगी।1925 में संघ अपनी स्थापना की सौ वर्ष पूर्ण करने जा रहा है ।
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संघ के शताब्दी समारोह कार्यक्रम में सरकार्यवाह होने के नाते ऐतिहासिक अनुष्ठान में उनकी महत्वपूर्ण सहभागिता होगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि सारे महत्वपूर्ण उत्तरदायित्वों के सफल निर्वहन की सामर्थ्य दत्ताजी के अंदर जन्मजात विद्यमान है।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार संपादक है)