धनंजय कुमार
जीवन और मृत्यु दोनों के ऊपर हमारा वश नहीं है. दोनों नियत है. जो जन्मा है उसकी मृत्यु होगी ही. किसी की ज़िंदगी पलभर की हो या किसी की सौ साल की. लेकिन…लेकिन जब कोई छोटी उम्र में ही मृत्यु की गुफ़ा में समा जाय तो दुःख ज़्यादा होता है. संगीतकार वाजिद का जाना भी कुछ ऐसा ही है.
वाजिद से मेरा परिचय उसके संगीतकार होने और नामचीन होने से पहले का था. जब वह जीवन की मौलिक ज़रूरतों और सपनों के लिए संघर्ष कर रहा था. अपने भाई साजिद के साथ उसकी जोड़ी नहीं बनी थी. वह गिटार बजाया करता था, और विदेशों में होनेवाले म्यूजिकल शोज में साजिन्दे के तौर पर जाया करता था. मेरे एक कॉमन मित्र के घर अक्सर मुलाकातें हो जाया करती थीं.
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फिर साजिद वाजिद ने जोड़ी बना ली और फिल्मों के लिए संघर्ष करने लगा. और वक्त ने साथ दिया. जोड़ी हिट हो गयी. हमारा मिलना जुलना लगभग समाप्त हो गया था. फिर कुछ साल पहले स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन के मुशायरे में मुलाक़ात हुई. फ़ौरन पहचान लिया और गर्मजोशी से मिला भी. घर परिवार के बारे में भी पूछा.
फिल्म इंडस्ट्री का एक दुखद पहलू यह भी है कि संघर्ष के दिनों के दोस्त बहुत कम ही आगे के दिनों में भी वैसे ही दोस्त बने रहते हैं. जैसे जैसे ज़िंदगी आगे बढ़ती है, पड़ाव गुजरते जाते हैं और दोस्तों का सर्किल भी बदलता जाता है. कई पुराने हो जाते हैं और कई नए करीब हो जाते हैं. फिर मैं स्क्रिप्ट राइटर वो म्यूजिक डायरेक्टर. वैसे भी हमारे रास्ते अलग थे.
लेकिन एक रिश्ता जो शुरुआती दिनों में बना था, वो ज़िंदा था. इसलिए आज सुबह जब उसकी मृत्यु की ख़बर मिली, तो पलभर के लिए ठिठक गया मन और पलभर में उसके साथ की मुलाकातों की श्रृंखला मन की आँखों के सामने आने जाने लगी.
साजिद वाजिद की जोड़ी ने कई सारे हिट गाने दिए. “चिपका ले सैयां फेविकॉल से” तेरे हुस्न का जादू चल गया, ताजदारे हरम, सुरीली अंखियों वाले आदि सैकड़ों गाने. हर तरह के गीत दिए.
आज ही पता चला कि वह किडनी की बीमारी से ग्रस्त था और किडनी ट्रांसप्लांट भी हुआ था. हार्ट की भी प्रॉब्लम थी. यानी कई तरह की बीमारियों ने घर बना लिया था उसके शरीर के भीतर. जबकि वाजिद का जो चेहरा मेरे सामने आ रहा है, वो एक बेहद हृष्ट पुष्ट तंदुरुस्त और सुन्दर युवक का चेहरा है. स्मार्ट लडके की छवि.
(धनंजय कुमार फिल्म निर्देशक और स्क्रिप्ट राइटर हैं)