जुबिली न्यूज डेस्क
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने बलात्कार के एक मामले में फैसला सुनाते हुए एक एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति पर चल रहे हत्या के मामले को मानने से अस्वीकार कर दिया।
एक ट्रायल कोर्ट ने एक एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को हत्या के मामले में 10 साल की अतिरिक्त सजा सुनाई थी। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत ने अपने फैसले में एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति द्वारा सेक्सुअल एक्टिविटी को आईपीसी की धारा 307 के तहत दंडनीय माना है, जिसमें कि उसके पार्टनर की सहमति नहीं है।
दरअसल, निचली अदालत का ने ये माना था कि वह व्यक्ति इस बात से परिचित था कि उसके ऐसा करने से दूसरा व्यक्ति भी एचआईवी से संक्रमित हो सकता है।
हाईकोर्ट के जस्टिस विभु बखरू ने अपने फैसले में कहा, ‘ आईपीसी सेक्शन 307 के तहत सजा इसलिए नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि मामले में पीडि़त की यदि सहमति होती तो पीडि़त पर आत्महत्या का मुकदमा चलता। निचली अदालत द्वारा अपनाए गए तर्क के मुताबिक इसका मतलब यह होता कि एक स्वस्थ व्यक्ति जो एचआईवी पॉजिटिव साथी के साथ सेक्स करता है और इसके चलते एचआईवी संक्रमित होता है, तो वह आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए दोषी होगा।Ó
मालूम हो अगस्त 2012 के आदेश में, ट्रायल कोर्ट ने दोषी को 10 साल की जेल की सजा सुनाई थी। दोषी ने अपनी सौतेली बेटी के साथ बलात्कार किया था। दोषी को 5 साल की सजा पीड़िता की सहमति के बिना उसका गर्भपात कराने के लिए सुनाई गई थी और 10 साल की अतिरिक्त सजा भी सुनाई गई थी। कुल मिलाकर दोषी को 25 साल की सजा हुई थी।
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इस मामले में अभियुक्त के खिलाफ उसकी सौतेली बेटी की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि अभियुक्त ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया।
निचली अदालत द्वारा हत्या का मामला दर्ज करने पर अभियुक्त ने हाइकोर्ट में मामले के खिलाफ अपील की थी कि उसे हत्या का दोषी न माना जाए। पीड़िता के पक्ष का आरोप था कि मां की मौत के बाद सौतेले पिता ने पीडि़ता का उत्पीडऩ किया।
इस मामले में हाईकोर्ट ने माना कि अभियुक्त ने पीड़िता को एचआईवी से संक्रमित करने के लिए बलात्कार नहीं किया था। अदालत ने माना कि धारा 307 के तहत सजा बरकरार नहीं रह सकती है।\
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