पॉलिटिकल डेस्क
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र है। सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र सुल्तानपुर जिले का नगर निगम बोर्ड है। यह जिले का प्रशासनिक मुख्यालय और फैजाबाद डिवीजन का भाग है। काफी लम्बे समय तक हिन्दू और बौद्ध समुदाय का केंद्र रहने के बाद 12वीं शताब्दी में यह क्षेत्र मुस्लिम समुदाय के पास आ गया। 1857 के विद्रोह में यह शहर पूरी तरह तबाह हो गया।
सुल्तानपुर जिले की स्थानीय बोलचाल की भाषा अवधी और सम्पर्क भाषा खड़ी बोली है। कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान, राजकीय पॉलीटेक्निक संस्थान, सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय यहां के प्रमुख कॉलेज हैं। परीजात व्रिक्ष, धोपाप मंदिर, लोहरामाउ देवी मंदिर, सीताकुंड सुल्तानपुर के प्रमुख दार्शनीय स्थल हैं।
आबादी/ शिक्षा
सुल्तानपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं जिसमें इसौली, सुल्तानपुर, सदर, लम्भुआ और कादीपुर- (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित) शामिल है। सुल्तानपुर का कुल क्षेत्रफल 4,152 वर्ग किलोमीटर है।
2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 116,211 है, जिसमें से 52.54 प्रतिशत पुरुष और 47.46 प्रतिशत महिलाएं हैं। यहांं प्रति 1000 पुरुषों पर 886 महिलाएं हैं। यहां का औसत साक्षरता दर 87.61 प्रतिशत है। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,703,698 है जिसमें महिला मतदाता 793,521 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 910,134 है।
राजनीतिक घटनाक्रम
आजादी के बाद से सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 3 उपचुनाव हुए हैं। 1951 से 1971 तक जनसंघ ने कांग्रेस से सीट छीनने की कोशिश तो बहुत की लेकिन कभी कामयाब नहीं हो सकी। 1952 में पहले लोकसभा चुनाव हुए जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बी. वी. केसकर विजयी रहे और यहां के पहले सांसद रहे। कांग्रेस ने इस क्षेत्र में लगातार 5 बार जीत हासिल की पर हर बार अलग अलग नेता यहां के सांसद बने। 1957 में गोविन्द मालवीय, 1962 में कुंवर कृष्णा वर्मा, 1967 में गनपत सहाय और 1971 में केदार नाथ सिंह यहां के सांसद चुने गए।
1977 में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अपनी पहली हार देखी जब जनता पार्टी के जुल्फिकुरूल्ला ने कांग्रेस को हरा हर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया लेकिन 1980 में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस के गिरिराज सिंह ने यहां जीत हासिल की। 1984 के चुनाव में ही कांग्रेस पार्टी के राज किरण सिंह ने इस सीट पर अपना अधिपत्य जमाया। इसके बाद कांग्रेस ने काफी सालों तक जीत का मुह नहीं देखा। 1989 में जनता दल के राम सिंह भरी मतों से विजयी हुए और यहां के सांसद बने तो 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां अपना खाता खोला और लगातार 3 बार भाजपा यहां विजयी रही। 1999 में यह सीट बहुजन समाज पार्टी की झोली मे और अगले चुनाव में भी बसपा ने यहां जीत हासिल की। 2009 में बहुत सालों बाद कांग्रेस ने इस क्षेत्र में जीत हासिल की और कांग्रेस के डॉ. संजय सिंह यहां से जीत हासिल की। वहीं 2014 में यहां से भाजपा के टिकट पर गांधी खानदान के संजय वरूण गांधी ने चुनाव लड़ा और उन्होंने जीत हासिल की।