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Lok Sabha Election : जानें सीतापुर लोकसभा सीट का इतिहास

पॉलिटिकल डेस्क

सारायण नदी के किनारे बसा सीतापुर, सीतापुर जिले का नगर पालिका बोर्ड है। ब्रिटिश राज में सीतापुर ब्रिटिश सेना की छावनी हुआ करता था।
सीतापुर की पृष्ठभूमि पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों है, और इसी वजह से सीतापुर प्रसिद्ध है।

वैसे तो इसके नाम के पीछे के रहस्य का कोई पुख्ता सबूत नहीं है पर कहते हैं की इसका नाम भगवान राम की पत्नी सीता के नाम पर पड़ा था। भगवान राम और देवी सीता अपनी तीर्थ यात्रा के दौरान यहां आ कर रुके थे। इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने इस शहर का नाम देवी सीता के नाम पर सीतापुर रख दिया।

आबादी/ शिक्षा

सीतापुर जिला 5,743 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 4,483,992 है। इसमें से 2,375,264 पुरुष और 2,108,728 महिलाएं हैं। यहां प्रति 1000 पुरुषों पर 888 महिलाएं हैं।

सीतापुर की औसत साक्षरता दर 61.12 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 70.31 प्रतिशत है और महिला साक्षरता दर 50.67 प्रतिशत है। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,550,263 है ,जिसमें महिला मतदाता 712,053 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 838,148 है।

सीतापुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं जिसमें बीसवां, लहरपुर, महमूदाबाद, सेवता और सीतापुर शामिल है।

राजनीतिक घटनाक्रम   

सीतापुर संसदीय क्षेत्र में पहली बार 1952 में चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस की उमा नेहरु विजयी हुई और सीतापुर की पहली सांसद बनी। उमा नेहरु, जवाहरलाल नेहरु के चचेरे भाई की पत्नी थीं।

उमा नेहरु सीतापुर सीट से लगातार 2 बार जीती। 1962 में राजनीतिक तख्ता पलट में भारतीय जन संघ के सूरज लाल वर्मा विजयी रहे। अगले चुनाव में भी भारतीय जन संघ ने ही यह सीट हथियाई।

1971 में कांग्रेस ने एक बार फिर सीतापुर संसदीय सीट पर वापसी की लेकिन 1977 में यह सीट फिर कांग्रेस के हाथों से निकल गई। 1980 में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस के नेता राजेंद्र कुमार बाजपेई सीतापुर के सांसद की कुर्सी पर बैठे। बाजपेयी लगातार 3 बार जीते।

1991 में भाजपा का आगमन हुआ और कांग्रेस की विदाई हुई। 1991 के चुनाव में बीजेपी ने यहां जीत दर्ज की। अगले चुनाव में यह सीट सपा के खाते में आ गई। इस बार समाजवादी पार्टी के नेता मुख्तार अनीस सीतापुर की सीट से जीते। 1

998 में फिर बीजेपी ने वापसी की लेकिन 1999 में इस पर बसपा कब्जा जमाने में ेकामयाब रही। बसपा ने इसके बाद लगातार दो बार यहां विजय पताका फहराया। 2014 में मोदी लहर में यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई। राजेश वर्मा यहा के सांसद हैं।

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