पॉलिटिकल डेस्क
अपने खास तहजीब और नजाकत के लिए जाना जानेवाला लखनऊ लोकसभा क्षेत्र भारत की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। लखनऊ हमेशा से बहुसंस्कृति वाला शहर रहा है। गोमती नदी के किनारे बसा यह नगर कभी प्राचीन कौशल राज्य का हिस्सा था। ऐसा कहा जाता है कि इसे भगवान राम ने लक्ष्मण के लिए बसाया था। यह अयोध्या से 80 किलोमीटर दूर है। उस समय यह लक्ष्मणपुर, लक्ष्मणावती या लखनपुर के नाम से जाना जाता था। लखनऊ के वर्तमान स्वरुप को नवाब आसिफुद्दौलाह ने 1775 में बसाया था। आधुनिक लखनऊ दशहरी आम के बाद चिकन की कढ़ाई के लिए जाना जाता है।
लखनऊ प्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु है। यह वीवीआईपी सीट में शुमार है। बीजेपी की ओर से पहले प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी की भी राजनीतिक कर्मभूमि रही है। अटल बिहारी वाजपेयी यहां से पांच बार विजयी रहे हैं। यह अटल की सियासी विरासत है। सपा और बसपा इस सीट पर आज तक अपना खाता भी नहीं खोल सकी हैं। यहां पर 1991 से लगातार बीजेपी का कब्जा है।
आबादी/ शिक्षा
लखनऊ लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा सीट शामिल है। 2011 की जनगणना के मुताबिक लखनऊ की आबादी 45.89 लाख है जिनमें पुरुषों की आबादी 23.94 लाख और महिलाओं की आबादी 21.95 लाख है। उत्तर प्रदेश के लिंगानुपात 912 के मुकाबले लखनऊ में प्रति 1000 पुरुषों पर 917 महिलायें है। शहरों में यह आंकड़ा 923 और ग्रामीण इलाकों में 906 है।
यहां की औसत साक्षरता दर 77.29 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 72.77 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर 63.08 प्रतिशत है। लखनऊ में कुल मतदाताओं की संख्या 1,949,956 है जिसमें महिला मतदाता 897,693 और पुरुष मतदाता की संख्या 1,052,171 है।
राजनीतिक घटनाक्रम
आजादी के बाद लखनऊ संसदीय सीट पर कुल 16 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 7 बार बीजेपी और 6 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इसके अलावा जनता दल, भारतीय लोकदल और निर्दलीय ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।
लखनऊ लोकसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुए तो कांग्रेस से शिवराजवती नेहरू विजयी हुए। इसके बाद कांग्रेस ने लगातार तीन बार जीत हासिल की, लेकिन 1967 में हुए आम चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण ने जीत का परचम लहराया। इसके बाद 1971 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस की शीला कौल सांसद बनी।
आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में हेमवती नंदन बहुगुणा भारतीय लोकदल से जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर शीला कौल को यहां से चुनावी मैदान में उतारकर वापसी की। वह 1984 में चुनाव जीतकर तीसरी बार सांसद बनने में कामयाब रही। लेकिन 1989 में कांग्रेस की हाथों से जनता दल के मानधाता सिंह ने यह सीट ऐसा छीना कि फिर दोबारा कांग्रेस यहां से वापसी नहीं कर सकी।
90 के दशक में बीजेपी के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ संसदीय सीट से मैदान में उतरकर जीत का जो सिलसिला शुरू किया थो फिर वो थमा नही। पिछले सात लोकसभा चुनाव से बीजेपी लगातार जीत दर्ज कर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी लगातार पांच बार सांसद चुने गए। इसके बाद 2009 में उनकी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए लालजी टंडन को बीजेपी ने मैदान में उतारा तो उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने किस्मत आजमाई और उन्होंने कांग्रेस की रीता बहुगुणा को करारी मात देकर लोकसभा पहुंचे।