पॉलिटिकल डेस्क
लखीमपुर तहसील का खीरी लोकसभा क्षेत्र एक नगर पंचायत है। खीरी एक संयुक्त प्रान्त रहा है और यह लखनऊ और बरेली के बीच में है। यह जिला पीलीभीत, शाहजहांपुर, हरदोई, सीतापुर और बहराइच जिले से घिरा हुआ है।
यहां देश भर में प्रसिद्ध दुधवा राष्ट्रीय पार्क है। खीरी का एक प्राचीन इतिहास है। यहां के सैयिद खुर्द के अवशेष के ऊपर एक नोकीला सा मकबरा बना है। यहां देश की कुछ सबसे बड़ी चीनी मिलें हैं।
खीरी को लखीमपुर खीरी भी कहते हैं और इसका प्राचीन नाम लक्ष्मीपुर है। खीरी में पाए जाने वाले खीरे के पेड़ों की वजह से इसका नाम खीरी पड़ गया। यहां के पर्यटन स्थल काफी प्रसिद्ध हैं। गोकरनाथ(छोटी काशी), देवकाली, लिलौटानाथ, और फ्रॉग (मेंढक) मंदिर, यहां के कुछ प्रसिद्ध स्थल हैं।
फ्रॉग या मेंढक मंदिर शिव जी को समर्पित है और ये दुनिया का पहला ऐसा मंदिर है जो मेंढक के आकार में बना हुआ है। देवकाली शिव मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है की यहां एक भी सांप नहीं पाया जाता क्योंकि यहां राजा परीक्षित ने अपने बेटे के जन्म पर नाग यज्ञ किया था। मंत्र की शक्ति से सारे नाग उस हवन कुंड में कूद गये थे।
आबादी/ शिक्षा
खीरी के लोकसभा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र हैं जिसमें पलिया, निघासन, गोला गोकरनाथ, श्रीनगर- अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित
और लखीमपुर शामिल है। क्षेत्रफल के आधार पर यह उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है। इसका क्षेत्रफल 7,680 वर्ग किलोमीटर है।
2011 की जनगणना के अनुसार खीरी की जनसंख्या 25,017 है, इसमें से 52 प्रतिशत पुरुष और 48 प्रतिशत महिलाएं हैं। खीरी जिले की औसत साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत साक्षरता दर से बहुत कम, केवल 43 प्रतिशत है। यहां के केवल 48 प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं और महिलाएं 37 प्रतिशत साक्षर हैं। खीरी लोकसभा संसदीय क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 1,679,466 है, जिसमें 904,863 पुरुष और 774,542 महिला मतदाता हैं।
राजनीतिक घटनाक्रम
1957 में यहां पहला लोकसभा का आम चुनाव हुआ जिसमें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को जीत मिली। खीरी उत्तर प्रदेश के उन बहुत कम जिलों में से एक है जहां पहला सांसद कांग्रेस पार्टी का नहीं था, लेकिन अगले चुनाव 1962 में इस सीट पर कांग्रेस कब्जा जमाने में कामयाब रही। अगले चुनाव में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की।
आजादी के बाद इस सीट पर 1957 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए, इन चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी ने जीत दर्ज की, लेकिन उसके बाद 1962 से 1971 तक यहां कांग्रेस का राज रहा। आपातकाल के बाद 1977 में जब चुनाव हुए तो कांग्रेस को यहां नुकसान उठाना पड़ा और भारतीय लोकदल ने यहां पर जीत दर्ज की।
लेकिन अगले ही चुनाव में कांग्रेस ने यहां जबरदस्त वापसी की। इसके अलावा 1980, 1984, 1989 में कांग्रेस बड़े अतंर से जीती। 1990 के दौर में चले मंदिर आंदोलन ने यहां भारतीय जनता पार्टी को भी फायदा पहुंचाया, 1991 और 1996 में यहां से बीजेपी चुनाव जीती।
हालांकि, मंदिर आंदोलन के बाद ही वर्चस्व में आई समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को अगले ही चुनाव में करारी मात दी। 1998, 1999 और 2000 के चुनाव में समाजवादी पार्टी यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीती। 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की और साल 2014 में ये सीट बीजेपी की झोली में चली गई।