पॉलिटिकल डेस्क
उत्तर प्रदेश लोकसभा क्षेत्रों में कैराना लोकसभा का दूसरा क्षेत्र है, जो 1962 के लोकसभा चुनाव से पहले बना था। कैराना शामली जिले में स्थित नगर निगम बोर्ड है। कैराना जो कि अब सहारनपुर डिवीजन के शामली जिले में है, वह पहले मुजफ्फरनगर की एक तहसील थी। यह यमुना नदी के किनारे, पानीपत से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कैराना प्राचीन काल में ‘कर्णपुरी’ के नाम से विख्यात था जो बाद में बिगड़कर किराना नाम से जाना गया और फिर किराना से कैराना में परिवर्तित हो गया। यहां मुस्लिम बहुमत ज्यादा हैं।
कैराना घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत और गायन की हिन्दुस्तानी ख्याली गायकी से सम्बद्ध हिन्दुस्तानी घरानों में से एक है। यह बीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण भारतीय संगीतज्ञ उस्ताद अब्दुल करीम खां की जन्मस्थली भी है। इन्हें कैराना घराने का संस्थापक भी माना जाता है। इनका मैसूर दरबार से गहरा सम्बन्ध था।
आबादी/ शिक्षा
वर्ष 2011 जनगणना के अनुसार शामली जिले की कुल आबादी 1,274,815 है, जिसमें कैराना तहसील की जनसंख्या एक लाख 77 हजार 121 थी वहीं कैराना नगर पालिका की आबादी करीब 89 हजार है । इसमें 81 प्रतिशत मुस्लिम, 18 फीसदी हिंदू और अन्य धर्मों को मानने वाले लोग एक फीसदी हैं। यहां का लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 850 महिलाएं हैं। यहां मुस्लिमों की आबादी 70 प्रतिशत है।
कैराना की साक्षरता दर बहुत ही कम, लगभग 22 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 36 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 22 प्रतिशत है। कैराना लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिसमें गंगोह, कैराना, थाना भवन, नकुड़ और शामिली शामिल है। वर्तमान में यहां कुल मतदाताओं की संख्या 1,531,767 है जिसमें महिला मतदाता 691,073 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 840,629 है।
राजनीतिक घटनाक्रम
कैराना क्षेत्र में पहला चुनाव 1962 में हुआ और वहां निर्दलीय प्रत्याशी यशपाल सिंह पहले सांसद बने। इनके बाद 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के घयूर अली खान कैराना के सांसद बने। 1971 में पहली बार कांग्रेस कैराना में आई। 1977 के चुनाव में इस सीट पर जनता पार्टी ने कब्जा किया। अगले चुनाव में जनता पार्टी अपनी सीट बचाने में कामयाब रही।
1984 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी मारी और इस सीट पर कब्जा किया। इसके बाद 1989 और 1991 में लगातार 2 बार जनता दल ने यहां जीत दर्ज की। 1996 के चुनाव में जहां समाजवादी पार्टी ने अपना खाता खोला तो 1998 में भारतीय जनता पार्टी ने।
1999 और 2004 लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल ने इस सीट पर कब्जा जमाया। 2009 लोकसभा चुनाव में यह सीट राष्ट्रीय लोकदल के हाथ से निकल गई और बहुजन समाज पार्टी के खाते में चली गई। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर अपना परचम लहराया लेकिन 8 फरवरी 2018 को सांसद हुकुम सिंह की मौत के बाद 2018 में ही हुए उपचुनाव में बड़ी राजनीतिक फेरबदल के तहत राष्ट्रीय लोक दल की तबस्सुम हसन भारतीय जनता पार्टी की मृगांका सिंह को हराकर कैराना की सांसद बनी। तबस्सुम को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन का समर्थन प्राप्त था।