पॉलिटिकल डेस्क
जौनपुर अपने विश्वविद्यालय और अपनी विशेष ‘इमरती’ मिठाई के लिए जौनपुर मशहूर है। यूपी का जौनपुर शहर हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां के जामा मस्जिद, शाही किला और शाही ब्रिज को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं।
जौनपुर लोकसभा सीट का इतिहास किवदंतियों में ऐसा कहा जाता है की इस शहर का नाम विष्णु के छठे अवतार परशुराम के पिता ऋ षि जमदग्नि के नाम पर रखा गया है।
आबादी/ शिक्षा
इस लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की पांच सीटें आती है, जिनके नाम हैं बदलापुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हनी और मुंगरा बादशाहपुर।2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 4,476,072 है।
यहां की औसत साक्षरता दर 60.78 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 70.5 प्रतिशत और महिलाओं की 51.29 प्रतिशत है। जौनपुर की 88 प्रतिशत आबादी हिंदू और 10 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम हैं।
यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,848,842 है जिसमें महिला मतदाता 845,831 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,002,938 है।
राजनीतिक घटनाक्रम
जौनपुर में 1952 में पहला आम चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की। अगले चुनाव 1957 में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की, लेकिन 1962 में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। इस सीट पर जनसंघ के ब्रह्मजीत सिंह ने कब्जा किया था।
1967 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और राजदेव सिंह सांसद बने। 1971 के चुनाव में भी यहां कांग्रेस सीट बचाने में कामयाब रही, लेकिन 1977 में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। इस सीट पर भारतीय लोकदल और अगले 1980 के चुनाव में जनता पार्टी सेक्युलर ने जीत हासिल की।
1984 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की, लेकिन 1989 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मारी। 1991 में अर्जुन सिंह यादव ने जनता दल को जौनपुर में पहली जीत दिलाई, 1996 में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर दोबारा कब्जा किया।
1998 में समाजवादी पार्टी के पारसनाथ यादव जौनपुर से जीतकर लोकसभा पहुंचे तो 1999 में भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी से एक साल पहले हुई अपनी हार का बदला ले लिया।
साल 2004 में यहां सपा ने अपना परचम लहराया लेकिन 2009 में बसपा के दिग्गज धनंजय सिंह ने सपा से ये सीट छीन ली। साल 2014 में इस सीट पर भगवा फहराया और कृष्ण प्रताप उर्फ के.पी यहां से सांसद बने।