पॉलिटिकल डेस्क।
बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है । बुलंदशहर लोकसभा क्षेत्र का प्रशासनिक मुख्यालय हैै। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आता है और ये दिल्ली से केवल 68 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बुलंदशहर, अनूपशहर, खुर्जा, स्याना, डिबाई, सिकंदराबाद और शिकारपुर इसके प्रमुख नगर हैं और बुलंदशहर नगर इसका मुख्यालय है। इस शहर के पास से काली नदी बहती है। बुलंदशहर, का प्राचीन नाम बरन था। इसका इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है।
अहिबरन नाम के राजा ने यहां एक बरन मीनार की नीवं रखी और इस शहर को अपनी राजधानी बनाया। तब इसका नाम बारनशहर था, जो अधिकारिक तौर पर बुलंदशहर कहा जाने लगा। यह पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि पे बसा था इसलिए इससे मुगल काल में फारसी भाषा में बुलंदशहर नाम दिया गया। वर्तमान में यहां उस पर कोर्ट है जिसे राजा अहिबरण का किला माना जाता है। लखनऊ से इसकी दूरी 517.1 किलोमीटर है और दिल्ली से इसकी दूरी 132.1 किलोमीटर है।
आबादी/ शिक्षा
बुलंदशहर जिले में करीब 77 फीसदी हिंदू जनसंख्या और 22 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या हैं। बुलंदशहर लोकसभा के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें अनूपशहर, बुलंदशहर, डिबाई, शिकारपुर और स्याना विधानसभा सीटें हैं। बुलंदशहर का जनसंख्या घनत्व 788 प्रति किलोमीटर है। वर्तमान में यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,736,436 है जिनमें महिला मतदाता 805,499 और पुरुष मतदाताओं की कुल संख्या 930,827 है। यहां की साक्षरता दर 68.88 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 80.93 प्रतिशत है वहीं महिला साक्षरता दर केवल 55.57 प्रतिशत है।
राजनीतिक घटनाक्रम
बुलंदशहर लोकसभा सीट 1952 से ही महत्वपूर्ण रही है। यहां 1952 से लेकर 1971 तक हुए पांच चुनाव में कांग्रेस ने लगातार जीत दर्ज की लेकिन उसके बाद यहां पर मतदाताओं ने लगातार हुए चुनावों में अलग-अलग पार्टियों को तवज्जो दी। 1977 में भारतीय लोक दल, 1980 में जनता दल ने यहां कांग्रेस को करारी मात दी थी, लेकिन 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां फिर वापसी की।
1989 के बाद से लगातार यहां कांग्रेस वापसी के लिए तरस रही है। 1989 चुनाव में जनता दल के जीत दर्ज करने के बाद 1991 से लेकर 2004 तक लगातार पांच बार भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जीता। इस दौरान 1991 से 1999 तक बीजेपी के छतरपाल सिंह ने अपना दबदबा इस सीट पर बनाए रखा। 2009 में यहां समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ने बड़ी जीत दर्ज की, लेकिन 2014 में उत्तर प्रदेश में चली मोदी लहर का असर यहां भी दिखा।