पॉलिटिकल डेस्क
‘मंदिरों के शहर’ वाराणसी की धार्मिक संस्कृति में गंगा मैया, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का अपना ही अलग वजूद है, हजारों सालों से भारतीय समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से इस शहर की अपनी पहचान रही है। वाराणसी को बनारस और काशी के अलावा ‘भारत की धार्मिक राजधानी’, ‘भगवान शिव की नगरी’, ‘दीपों का शहर’, ‘ज्ञान नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है।
मानव इतिहास के प्राचीनतम शहरों में शुमार किए जाने वाले वाराणसी का अपना सुनहरा इतिहास रहा है और धार्मिक रीति-रिवाज के मामले में इस शहर की कोई सानी नहीं है। हिंदू धर्म के लिए यह एक पावन नगरी है और यहां हर हिंदू के लिए आना गौरव और सौभाग्य की बात मानी जाती है। हिंदू धर्म में वाराणसी सबसे पवित्र नगरों में शुमार है। सिर्फ हिंदू धर्म ही नहीं बौद्ध और जैन धर्म के लिए इस शहर की महत्ता रही है।
आबादी/ शिक्षा
वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र रोहणिया, वाराणसी उत्तरी, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी छावनी और सेवापुरी आते हैं और इनमें से एक भी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नहीं है। 2011 की जनगणना के मुताबिक बनारस की कुल आबादी 4157469 है जिसमें पुरुषों 2173080 और महिलाओं की संख्या 1984389 है। वहीं कुल मतदाताओं की संख्या 2839204 है जिसमें पुरुषों की 1563368, महिलाओं की 1275695 और अन्य 141 है।
धर्म के आधार पर वाराणसी में 85 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जबकि 15 फीसदी मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं। यहां के लिंगानुपात का अनुपात देखा जाए तो प्रति हजार पुरुषों पर 913 हिंदू और 915 मुसलमान महिलाएं रहती हैं। वाराणसी का साक्षरता दर 76 प्रतिशत है जिसमें 84 फीसदी पुरुषों की आबादी तो 67 प्रतिशत महिलाओं की आबादी साक्षर है।
राजनीतिक घटनाक्रम
वाराणसी में सबसे पहला चुनाव 1952 में हुआ था जिसमें कांग्रेस के रघुनाथ सिंह को जीत मिली थी और वह 1962 तक यहां से लगातार 3 बार विजयी रहे थे। इस सीट पर 1967 के चुनाव में सत्यनारायण सिंह ने कम्युनिस्ट पार्टी की टिकट पर लड़े और कांग्रेस से यह सीट झटकते हुए विजयी रहे थे।
1990 के दशक देश में मंदिर राजनीति शुरू होने के बाद बीजेपी एक नई ताकत के रूप में उभरी और 1991 से 1999 तक लगातार 4 चुनावों में बीजेपी को जीत हासिल हुई। हालांकि 2004 के चुनाव में कांग्रेस ने लंबे समय बाद वापसी की और उसके उम्मीदवार डॉक्टर राजेश कुमार मिश्रा ने यहां से 3 बार के सांसद शंकर प्रसाद जयसवाल को हरा दिया। फिर 2009 के चुनाव में बीजेपी ने कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल करते हुए अपनी पार्टी की पकड़ को बनाए रखा। फिर 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने यहां आकर बड़ी जीत हासिल की और देश के प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए।