पॉलिटिकल डेस्क
गंगा और रामगंगा नदी के बीच बसा बदायूं संसदीय क्षेत्र छोटे सरकार और बड़े सरकार की प्रसिद्ध दरगाह की वजह से पूरी दुनिया में जाना जाता है। बदायूं लोकसभा क्षेत्र जो पहले वोदामयुता कहलाता था, उत्तर प्रदेश का एक लोकसभा क्षेत्र है, जो पश्चिम उत्तर प्रदेश में है। यह एक मशहूर ऐतिहासिक और धार्मिक शहर है। यह रोहिलखंड में मध्य में होने की वजह से इसका दिल कहलाता है। मुख्य पर्यटन स्थल न होते हुए भी, यहां हर साल लाखों सैलानी आते हैं। ज्यादातर लोग यहां जियारत के लिए आते हैं।
इल्तुतमिश के शासन काल के दौरान बदायूं 4 साल तक उसकी राजधानी रहा। प्राचीन शिलालेख के आधार पर प्रोफेसर गोटी जॉन ने बताया की बदायूं का पुराना नाम बेदामूथ था। ये शिलालेख पत्थर लिपियों पर लिखे गये और लखनऊ म्यूजियम में संरक्षित हैं। मुस्लिम इतिहासकार रोज खान लोधी ने बताया की राजा अशोक ने यहां बुद्ध विहार और किला बनवाया जिसको उन्होंने बुद्ध्माऊ (बदायूं का किला) कहा जाता है। जॉर्ज स्मिथ के अनुसार बदायूं का नाम अहीर राजकुमार बुद्ध के नाम पर रखा गया था।
आबादी/ शिक्षा
बदायूं लोक सभा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं जिसमें गुन्नौर, बिसौली- अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित , सहसवान , बिल्सी और बदायूं शामिल है। 2011 की जनगणना के अनुसार बदायूं जिले की जनसंख्या 3,681,896 है, जिसमें से 1,967,759 पुरुष और 1,714,137 महिलाएं है।
यहां जनसंख्या घनत्व 712 प्रति वर्ग किलोमीटर है। बदायूं 4,234 किलोमीटर वर्ग में फैला है। यहां प्रति 1000 पुरुषों पर 871 महिलाएं हैं। बदायूं की साक्षरता दर देश की औसत साक्षरता दर से बहुत कम 51.29 प्रतिशत है। यहां 61 प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं, वहीं केवल 40.09 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हैं। यह देश की 250 सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,769,145 है जिसमें महिला मतदाता 791,044 और पुरुष मतदाता की संख्या 978,040 है।
राजनीतिक घटनाक्रम
बदायूं में 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बदन सिंह विजयी हुए और बदायूं के पहले सांसद बने। अगले चुनाव में भी कांग्रेस ने ही जीत हासिल की। 1962 के चुनाव में भारतीय जन संघ ने इस सीट पर कब्जा किया और अगले चुनाव में भी जनसंघ का कब्जा रहा। 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की लेकिन अगले चुनाव में अपनी सीट नहीं बचा पायी। 1977 में भारतीय लोकदल इस सीट पर विजयी रही।
1980 और 1984 में यह सीट कांग्रेस की झोली में आयी, लेकिन 1989 में बदायूं की जनता ने जनता दल के नेता शरद यादव को सांसद चुना। 1991 के बीजेपी ने यहां अपना खाता खोला। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर स्वामी चिन्मयानन्द ने जीत हासिल की। भाजपा की बदायूं में यह पहली और आखिरी जीत थी। 1996 से लेकर अब तक इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। सलीम इकबाल शेरवानी 1996 से 2009 तक लगातार 4 बार इस सीट से जीते और उनके बाद मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेन्द्र यादव का इस सीट पर कब्जा है।