न्यूज डेस्क
फिलहाल चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से अब सम्पर्क नहीं हो पायेगा। वैज्ञानिकों के साथ-साथ पूरा देश उम्मीद कर रहा था कि लैंडर विक्रम से सम्पर्कहोगा, लेकिन शुरुआत से ही वैज्ञानिकों की टीम को पता चल गया था कि फिर से संपर्क नामुमकिन की हद तक मुश्किल है।
सात सितंबर को इसरो के वैज्ञानिकों को शुरुआती पलों में ही पता चल गया था कि लूनर क्राफ्ट क्रैश लैंडिंग के बाद पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। इस मिशन के असफल होने का आकलन कर रही टीम का मानना है कि ऑटोमैटिक लैंडिंग्र प्रोग्राम (एएलपी) में गड़बड़ी के कारण ही लैंडर विक्रम का ऐक्सिडेंट हुआ।
इसरो के जानकार लोगों ने यह जानकारी टाइम्स ऑफ इंडिया से साझा की है। गौरतलब है कि 1,471 किलो के विक्रम और इसके साथ जुड़ा 27 किलोग्राम का रोवर प्रज्ञान चांद की सतह से महज कुछ ही दूरी पर क्रैश कर गया था।
इस मिशन का आकलन कर रहे वैज्ञानिकों की टीम का मानना है कि अभी तक जो अनुसंधान हुआ है उससे ऐसा लग रहा है कि इस क्रैश के बाद लैंडर के फिर से काम करने की उम्मीद लगभग ना के बराबर है। वैज्ञानिकों की राय है कि क्रैश लैंडिंग के कारण लैंडर या तो पलट गया है या मुड़ गया। उनका कहना है कि हालांकि लैंडर इतना अधिक क्षतिग्रस्त नहीं हुआ कि वह पहचान में भी न आ सके।
तस्वीरों का आकलन करने वाले एक वैज्ञानिक ने कहा, ‘ मैंने अभी तक जो देखा है उसके आधार पर कह सकता हूं कि लैंडर विक्रम की परछाई मुझे नजर आई है। मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं विक्रम अपने पैरों पर नहीं गिरा है। मुझे ऐसा लगता है कि कम से कम विक्रम के 4 पैर क्षतिग्रस्त हुए हैं। या तो ये मुड़ गए हैं या फिर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।’
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वहीं एक और वैज्ञानिक ने कहा कि विक्रम 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर अनियंत्रित हो गया था और जब वह चांद की सतह से 330 मीटर (पहले इसरो ने यह दूरी 2.1 किमी. बताई थी) ऊपर था तब उसका इसरो के कंट्रोल रूम से संपर्क टूट गया।
वहीं दो अन्य वैज्ञानिकों ने लैंडिग प्रोग्राम में गड़बड़ी की भी आशंका व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि अभी तक की जांच से ऐसा लग रहा है कि लैंडिंग प्रोग्राम में कुछ गड़बड़ी थी। लैंडिंग प्रोग्राम यूआर राव सैटलाइट सेंटर बेंगलुरु की ओर से लिखा गया था।
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एक वैज्ञानिक ने कहा, ‘हमें देखना होगा कि लैंडिंग प्रोग्राम को जारी करने से पहले क्या इसका सही तरह से परीक्षण किया गया था या नहीं।’ सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह को छूने से 15 मिनट पहले तक की दूरी और ऊंचाई के आधार पर कंट्रोल सुनिश्चित करना था।
सॉफ्ट लैंडिंग एक बहुत बड़ा चैलेंज है। अमेरिका और रूस जैसे अंतरिक्ष विज्ञान के अग्रणी देशों के लिए भी यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग जीरो ग्रैविटी और अत्यधिक स्पीड के कारण बेहद मुश्किल काम है।
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