Saturday - 2 November 2024 - 4:48 PM

‘हिंदुओं को एनआरसी की चिंता करने की जरूरत नहीं, एक भी हिंदू को देश नहीं छोड़ना होगा’

न्यूज डेस्क

इन दिनों राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) चर्चा में है। गृहमंत्री अमित शाह सार्वजनिक मंच से कई बार कह चुके हैं कि देश के सभी राज्यों में एनआरसी लागू किया जायेगा। वहीं 31 अगस्त को असम में एनआरसी की जारी हुई अंतिम सूची में 19 लाख से ज्यादा आवेदकों के नाम नहीं हैं, जिसके बाद काफी हो-हल्ला मचा। एनआरसी से बाहर हुए लोग चिंतित हैं।

फिलहाल एनआरसी से बाहर हुए लोगों की चिंता को दूर करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने 22 सितंबर को कहा कि एक भी हिंदू को देश छोड़कर नहीं जाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हिंदुओं को एनआरसी को लेकर चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

ऐसा माना जा रहा है कि संघ प्रमुख भागवत की यह टिप्पणी संघ और भाजपा समेत उससे जुड़े संगठनों की बंद दरवाजे के पीछे हुई समन्वय बैठक के दौरान की है।
संघ के एक पदाधिकारी ने समन्वय बैठक के बाद कहा, ‘मोहन भागवत जी ने स्पष्ट कहा है कि एक भी हिंदू को देश नहीं छोड़ना होगा। दूसरे देशों से प्रताड़ना और कष्ट सहने के बाद भारत आए हिंदू यहीं रहेंगे।’

द टेलीग्राफ के मुताबिक, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आगे कहा, ‘एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं किए गए हिंदुओं को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आरएसएस उनके साथ खड़ा है। देश में कहीं भी रह रहे हिंदुओं को एनआरसी के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।’

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गौरतलब है कि असम में 31 अगस्त को बहुप्रतीक्षित एनआरसी की जारी हुई अंतिम सूची में 19 लाख से ज्यादा आवेदकों के नाम नहीं हैं। इन 19 लाख लोगों में 12 लाख से अधिक हिंदू शामिल हैं।

संघ के सूत्रों के मुताबिक बैठक में मौजूद कुछ नेताओं ने पश्चिम बंगाल में एनआरसी की कवायद शुरू करने से पहले राज्य में नागरिकता (संशोधन) विधेयक को लागू करने की जरूरत को भी रेखांकित किया।

बैठक में शामिल एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘बंगाल में पहले नागरिकता संशोधन विधेयक लागू होगा और इसके बाद एनआरसी लाई जाएगी। राज्य के हिंदुओं को इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।’

गौरतलब है कि इस महीने के शुरू में राजस्थान में संघ की तीन दिवसीय वार्षिक समन्वय बैठक के दौरान यह चिंता व्यक्त की गई थी कि ‘असम में एनआरसी की अंतिम सूची में कई वास्तविक लोग छूट गए थे जिनमें से अधिकतर हिंदू थे।’  भागवत का यह बयान इसी चिंता की पृष्ठभूमि में आया है।

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