न्यूज़ डेस्क
हिंदी लेखिका रमणिका गुप्ता का मंगलवार को निधन हो गया। वे दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती थीं। पंजाब के सुनाम में वर्ष 1930 में जन्मी रमणिका गुप्ता का बिहार-झारखंड से अटूट रिश्ता रहा है। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में भी अपना अमूल्य योगदान दिया है।
रमणिका गुप्ता सामाजिक सरोकारों की पत्रिका “युद्धरत आम आदमी” का सम्पादन करती थीं। 22 अप्रैल 1930 को पंजाब में जन्मीं रमणिका के पति सिविल सर्विस में थे। उनके पति का पहले ही निधन हो चुका था। उनकी दो बेटियां और एक बेटा है।
सामजिक आंदोलनों के लिए विशेष पहचान बनाने वाली रमणिका विधायक भी रहीं। उन्होंने बिहार विधानपरिषद और विधानसभा में विधायक के रूप में कार्य किया। रमणिका ने ट्रेड युनियन लीडर के तौर पर भी काम किया। वे कई आंदोलनों का चेहरा मानी जाती हैं। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। उनकी आत्मकथा हादसे और आपहुदरी काफी मशहूर है।
आपहुदरी एक दिलचस्प और दिलकश आत्मकथा है। ये एक स्त्री की आत्मकथा है जिसमें समय का इतिहास, विभाजन और बिहार के राजनेताओं के चेहरे की असलियत दर्ज है।
रचना-संसार
कविता संग्रह- भीड़ सतर में चलने लगी है, तुम कौन, तिल तिल नूतन, मैं आजाद हुई हूँ, अब मूरख नहीं बनेंगे हम, भला मैं कैसे मरती, आदम से आदमी तक, विज्ञापन बनते कवि, कैसे करोगे बंटवारा इतिहास का, निज घरे परदेसी, प्रकृति युध्दरत है,पूर्वांचल: एक कविता यात्रा, आम आदमी के लिए, खूंटे, अब और तब, गीत-अगीत
उपन्यास- सीता-मौसी
कहानी संग्रह- बहू जुठाई
गद्य पुस्तकें- कलम और कुदाल के बहाने, दलित हस्तक्षेप, सांप्रदायिकता के बदलते चेहरे, दलित चेतना- साहित्यिक और सामाजिक सरोकार, दक्षिण- वाम के कठघरे और दलित साहित्य, असम नरसंहार- एक रपट, राष्ट्रीय एकता, विघटन के बीज।