जुबिली न्यूज़ डेस्क
इन दिनों हाई कोर्ट के जज अपने कई फैसलों को लेकर चर्चा में हैं। मद्रास हाईकोर्ट की जज पुष्पा गनेडीवाल ने बीते दिनों कई फैसलों सुनाये जिसको लेकर वो काफी चर्चा में भी रही। इसके बाद अब हिमाचल प्रदेश के हाईकोर्ट ने रेप के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। जिसके बाद रेप के मामले में आरोपी की जमानत याचिका ख़ारिज कर दी। इसके बाद कोर्ट ने इस मामले को लेकर कड़ी टिप्पणी की है।
दरअसल हाईकोर्ट ने जिस मामलें में फैसला सुनाया वो सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ था। इसमें हाईकोर्ट ने कहा कि फेसबुक पर लड़की द्वारा फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने का ये मतलब नहीं होता कि वह किसी के साथ यौन संबंध बनाना चाहती है।
ये बिल्कुल भी नहीं समझना चाहिए कि फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजकर लड़की ने अपनी स्वतंत्रता और अधिकार को युवक के हवाले कर दिया है। बता दें कि आरोपी युवक की ओर से फेसबुक में फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे जाने को आधार बनाकर जमानत याचिका दाखिल की गई थी।
इसके अलावा हाईकोर्ट ने कहा है कि आजकल के समय में सोशल नेटवर्किंग पर रहना आम बात है। इसमें आजकल के अधिकतर युवा सोशल मीडिया पर हैं और सक्रिय भी हैं। ऐसे में उनके द्वारा फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना कोई असामान्य बात नहीं है। लोग मनोरंजन, नेटवर्किंग व जानकारी के लिए सोशल मीडिया साइट्स से जुड़ते हैं।
इसलिए नहीं कि कोई जासूसी करे या यौन व मानसिक रूप से उत्पीड़न सहने के लिए। ऐसे में यह मानना कि बच्चे अगर सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाते हैं तो वह सेक्स पार्टनर की तलाश में ऐसा करते हैं, गलत है।
यह फैसला हाई कोर्ट जस्टिस अनूप चिटकारा की बेंच द्वारा सुनाया गया. इसमें कोर्ट ने नाबालिग से रेप के मामले में अपना फैसला दिया। इस मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है।
आरोपी युवक ने कोर्ट में दलील दी थी कि लड़की ने अपने सही नाम से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी, इसलिए उसने ये मान लिए कि वह 18 वर्ष से अधिक की है और इसलिए उसने उसकी सहमति से यौन संबंध स्थापित किया, लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने पाया कि फेसबुक अकाउंट बनाने के लिए न्यूनतम उम्र 13 वर्ष है।
हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए ये भी कहा कि लोग अपनी उम्र के बारे में सबकुछ नहीं बताते हैं और यह असामान्य भी नहीं है। क्योंकि फेसबुक एक पब्लिक प्लेटफॉर्म है। अगर बच्ची ने फेसबुक पर गलत उम्र दर्ज की हो तो उसे बिल्कुल सही नहीं समझना चाहिए। ऐसे में यह नहीं मानना चाहिए कि लड़की नाबालिग नहीं, बल्कि बालिग है।
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कोर्ट ने यह भी कहा कि जब आरोपी ने पीड़िता को देखा होगा तो यह उसकी समझ में आ गया होगा कि वह 18 साल की नहीं है, क्योंकि पीड़िता केवल 13 वर्ष तीन महीने की ही थी।कोर्ट ने आरोपी के इस बचाव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि चूंकि लड़की नाबालिग थी, ऐसे में उसकी सहमति कोई मायने नहीं रखती।