जुबिली न्यूज डेस्क
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने अपने पुराने वक्तव्य को दोहराते हुए एक याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा है कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, प्रियांशी उर्फ़ समरीन और उनके पति ने एक याचिका दायर करते हुए हाई कोर्ट से मांग की थी कि वह पुलिस और लड़की के पिता को निर्देश दे कि वे उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में दख़ल न दें.
हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा है, “कोर्ट ने पाया है कि पहले याचिकाकर्ता (महिला) ने 29 जून 2020 को अपना धर्म परिवर्तन किया और 31 जुलाई को शादी की जो यह साफ़ बताता है कि धर्म परिवर्तन शादी के लिए किया गया.”
याचिका में शादीशुदा जोड़े ने कहा था कि उन दोनों ने इस साल जुलाई में शादी कर ली थी लेकिन लड़की के परिवार के सदस्य उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में दख़ल दे रहे हैं.
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शादी के लिए धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य
हाई कोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि वह इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 226 (रिट ज्यूरिस्डिक्शन) के तहत कोई दख़ल नहीं दे सकता. जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी ने इसी कोर्ट द्वारा 2014 में नूर जहां बेगम मामले में दिए गए फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य है.