अरमान आसिफ
पूरी दुनिया में शांति, प्रेम, अहिंसा का संदेश देने वाली भगवान बुद्ध की धरती के लोग सिर्फ जिंदा रह कर ही साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिशाल नहीं पेश करते हैं बल्कि मर कर भी एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। जी हां! यह सोलह आना सच है। सिद्धार्थनगर में एक ऐसा स्थान है जहां एक ही बाउंड्री के अंदर हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग दफन होते हैं।
शहर के अशोक मार्ग पर साम्प्रदायिक सौहार्द पेश करता कब्रिस्तान उन देशों व लोगों के लिए नजीर हो सकता है जो मजहब के नाम पर कुछ भी करने को आमादा नजर आते हैं। इस कब्रिस्तान की बाउंड्री एक है फिर भी दो समुदाय के लोगों को दफन किया जाता है। बाउंड्री के पश्चिम ओर में मुस्लिम व पूर्वी ओर हिन्दुओं के शव दफन किए जाते हैं।
एक ही परिसर मेंं दो समुदाय का अंतिम संस्कार होने के बावजूद आज तक किसी प्रकार का विवाद नहीं हुआ। इस कब्रिस्तान में आसपास के कई मोहल्लों के लोगों को दफन किया जाता है। खास बात यह भी है कि दफन दोनों समुदाय के लोग भले ही होते हों पर कब्रिस्तान की देखरेख व साफ-सफाई मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं।
देखरेख का जिम्मा हाजी अली अहमद के पास
हाजी अली अहमद ही कब्रिस्तान की देखभाल करते हैं। मुख्य गेट की चाभी से लेकर साफ-सफाई इन्हीं के जिम्मे है। कहते हैं कि समूचे विश्व के लिए यह कब्रिस्तान अनोखी मिशाल है जहां एक ही बाउंड्री के अंदर हिन्दू-मुस्लिम दोनों दफन होते हैं। एक-दूसरे के अंतिम संस्कार में दोनों समुदाय के लोग शामिल होते हैं। कभी न कोई विवाद रहा और न ही इंशाअल्लाह आगे होगा।
एक ही बाउंड्री में कराने का श्रेय नईम खान को
हिन्दू-मुस्लिम कब्रिस्तान को एक ही बाउंड्री के अंदर कराने का श्रेय समाजसेवी नईम खान को जाता है। उन्होंने अपने खर्च पर पूरी बाउंड्री कराई थी। वह कहते हैं कि सभी इंसान हैं। अगर जिंदा रह कर साथ रहने में परहेज नहीं तो मरने के बाद दूरी क्यों?