न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बागपत में बिहार से आए दो जमातियों में कोरोना पॉजिटिव की पुष्टि होने के बाद हड़कंप मच गया है। दोनों जमातियों को क्वारंटाइन कर दिया गया है, लेकिन बागपत पुलिस और प्रशासन ने जिले के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर कोरोनाग्रस्त इस दोनों जमातियों के तस्वीर समेत पोस्टर चस्पा कर दिए हैं।
पोस्टरों में अपील की गई है कि इनके चेहरे पहचान लें और इन दोनों जमातियों के सम्पर्क में आए हैं तो स्वास्थ्य विभाग से सम्पर्क करें। लोगों में इसको लेकर नाराजगी होना लाजिमी है, किसी मुजरिम की तरह इनके पोस्टर लगाए गए है।
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गौरतलब है कि यह पोस्टर ऐसे समय में लगाए गए हैं जब संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में प्रदर्शन में शामिल लोगों के होर्डिंग लगाने को लेकर प्रदेश में विवाद चल रहा है और मामला अदालत में विचाराधीन है।
ऐसे में कोरोना संक्रमित मरीज़ों का पोस्टर लगाने पर नागरिक समाज सवाल उठा रहा है। नागरिक समाज यह प्रश्न कर रहा है कि क्या यह कोरोना वायरस के रोगियों के निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है? क्या तस्वीर लगाने से तबलीग़ी जमात के इन मरीजों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा नहीं होता है?
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आपको बता दें कि पुलिस ने पोस्टर में बताया है कि दोनों मरीज़ तबलीग़ी जमात से हैं। दोनों निज़ामुद्दीन (दिल्ली) से आकर बागपत के क्षेत्र बड़ौत में स्थित फूसवाली मस्जिद में एक रात के लिए रुके थे। इस दौरान मस्जिद में उनकी बहुत लोगों से मुलाकात भी हुई थी। इसके बाद दोनों बड़ौत क्षेत्र के ओसिक्का गांव में जाकर ठहरे थे।
इसे लेकर प्रशासन ने सर्तकता दिखाई है और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने ओसिक्का गांव में जाकर निरीक्षण किया है। इस दौरान गांव को सेनिटाइज भी किया गया है। हालांकि नागरिक समाज ने पोस्टर लगाने पर आपत्ति जताई है।
मानव अधिकार जन निगरानी समिति के लेनिन रघुवंशी कहते हैं, ‘तबलीग़ी जमात के नाम पर धर्म विशेष के लोगों की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ किया जा रहा है। इस तरह के कृत्य से लगता है कि सरकार कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में गम्भीर नहीं है।’
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पुलिस से जुड़े लोग भी रोगियों की तस्वीर लगाने को निजता के अधिकार का उल्लंघन मानते हैं। पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘बागपत पुलिस ने तबलीग़ी जमात के रोगियों के तस्वीर वाले पोस्टर प्रकाशित करके उनके जीवन को खतरे में डाल दिया है। यह निजता के अधिकार के विरुद्ध है और मॉब लिंचिंग की सम्भावना को भी बढ़ाता है। देश में कई जगहों से जमात के लोगों पर हमले की खबरें भी आई हैं।’
वहीं सामाजिक संगठन रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव के अनुसार तबलीग़ी जमात के लोगों के पोस्टर लगाकर यह दिखाया गया है कि विशेष धर्म के लोग दूसरे दर्जे के नागरिक है। वो आगे कहते हैं कि क्या केवल इन लोगों से ही कोरोना का संक्रमण फैलेगा? अगर लगाना है तो सभी कोरोना पॉजिटिव रोगियों के पोस्टर और तस्वीरें लगाई जाना चाहिए।
दूसरी ओर कानून के जानकार भी इसको भारतीय संविधान और कानून के खिलाफ मानते हैं। अधिवक्ता अमित सूर्यवंशी कहते हैं कि तस्वीर वाले पोस्टर भारतीय दण्ड संहिता और दण्ड प्रक्रिया संहिता दोनों के विरुद्ध हैं। यह सब राजनीति है। संविधान-क़ानून सभी नागरिकों को बराबर से देखता है।
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हालांकि बागपत पुलिस का कहना है कि पोस्टर इसलिए लगाए हैं ताकि लोगों को मालूम हो कि कौन कोरोना का रोगी है और उनसे मिलने वाले स्वयं अपने उपचार के लिए सामने आयें। जब पोस्टर पर लिखे बड़ौत कोरोना प्रभारी के मोबाइल नंबर पर सम्पर्क किया तो उप निरीक्षक कैलाश नाथ से बातचीत हुई।
उन्होंने बताया, ‘जिन दोनों की तस्वीर प्रकाशित की है वह किसी मामले में अभियुक्त नहीं है। दोनों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। पोस्टर का मकसद इनके संपर्क में आने वालों को उपचार के लिए सतर्क करना है।’
इस मामले पर बड़ौत थानाध्यक्ष अजय शर्मा ने कहा है कि पोस्टर में छपे लोग अभी क्वारंटाइन में हैं। सार्वजनिक स्थानों पर पोस्टर इसलिए ताकि लोगों को बताया जा सके कि इन दोनों के संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति अपनी बीमारी को नहीं छिपाए।
उन्होंने कहा कि हमने पोस्टर के माध्यम यह संदेश दिया है कि अगर इनसे मिलने वाला कोई बीमारी को छिपाएगा तो उसके विरुद्ध क़ानूनी करवाई की जाएगी। इन दोनों से बड़ी संख्या में लोग मिले थे।
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