न्यूज डेस्क
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई। हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण में विपक्षी एकता की ताकत देखने को मिली। इस कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, तमिलनाडु की विपक्षी पार्टी डीएमके के अध्यक्ष स्टालिन भी, सांसद टी आर बालू, सांसद कनिमोझी भी पहुंचीं। इसके अलावा तेजस्वी यादव, शरद यादव, आप सांसद संजय सिंह भी रांची पहुंचे थे।
जितना चर्चा में हेमंत सोरेन का शपथ ग्रहण समारोह रहा, उतने ही चर्चा में हेमंत कैबिनेट का पहला बैठक है। दरअसल, शपथ ग्रहण पद संभालते ही हेमंत सोरेन एक्शन में आ गए हैं और चुनाव के दौरान किए गए वादों को एक-एक करके पूरा करना शुरू कर दिया है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी कैबिनेट की पहली बैठक में ही 2017-2018 में पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमे को वापस ले लिया है।
बता दें कि रघुबर दास के कार्यकाल में छोटानागपुर और संथाल परगना काश्तकारी क़ानून में ढील देने की कोशिश की गई थी और इसे लेकर भारी विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया था। इन मामलों में भारतीय दंड विधान की धारा 121 A और 124 A के तहत कई नामज़द लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज हुआ। हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की बैठक में इन मुक़दमों को भी वापस लेने का फ़ैसला किया है।
इसके अलावा कैबिनेट ने अनुबंध कर्मियों, आंगनबाड़ी सेविका, सहायिका, विभिन्न श्रेणियों के पेंशन भोगियों सभी प्रकार की छात्रवृत्तियां और पारा शिक्षकों से संबंधित सभी लंबित भुगतान पूर्ण कराने के लिए शिविर लगाकर कार्रवाई करने का निदेश दिया है।
राज्य सरकार में अलग-अलग विभागों में ख़ाली पदों को जल्दी भरने के साथ यौन उत्पीड़न और अन्य अपराधों को लेकर हर ज़िले में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करते हुए न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति का फ़ैसला लिया गया।
हेमंत सोरेन सरकार के सात अहम फ़ैसले
- अनुबंध कर्मियों, आंगनबाड़ी सेविका, सहायिका, पेंशन भोगियों, सभी प्रकार की छात्रवृत्तियां और पारा शिक्षकों से संबंधित सभी लंबित भुगतान जल्द कराने के निर्देश।
- राज्य में ख़ाली सरकारी पदों को भरने का निर्देश।
- यौन उत्पीड़न और अन्य अपराधों को लेकर हर ज़िले में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करते हुए न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति का फ़ैसला लिया गया।
- मंत्रिपरिषद की बैठक में पाँचवीं झारखंड विधानसभा के पहले सत्र को 06 जनवरी 2020 से 08 जनवरी 2020 तक की मंज़ूरी दी गई।
- स्टीफन मरांडी को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया।
- पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमे होंगे वापस।
- काश्तकारी क़ानून में बदलाव की कोशिश में हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान दर्ज मुकदमे भी होंगे वापस।
क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन
गौरतलब है कि अपने जमीनी हक की मांग को बुलंद करते हुए आदिवासियों ने बीते साल यह आंदोलन शुरू किया था। इसका असर इस बार के चुनाव पर भी काफी देखा गया। माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है क्योंकि पिछले साल मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दबी जुबान पत्थलगड़ी आंदोलन पर निशाना साधा था। उन्होंने यहां तक कहा था कि इस आंदोलन के पीछे देश विरोधी ताकतों का हाथ है।
बता दें, यह आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए गए। जैसा कि नाम से स्पष्ट है-पत्थर गाड़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो एक आंदोलन के रूप में व्यापक होता चला गया। लिहाजा इसे पत्थलगड़ी आंदोलन का नाम दिया गया.
इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए दिए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया। यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ. इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ।
यह आंदोलन अब भले ही शांत पड़ गया है, लेकिन ग्रामीण उस समय के पुलिसिया अत्याचार को नहीं भूले हैं। इसी का असर कहीं न कहीं हाल में बीते विधानसभा चुनाव में भी देखा गया है। माना जा रहा है कि आंदोलन समर्थक आदिवासियों ने हेमंत सोरेन को थोक में वोट दिया, इसलिए सरकार बनते ही सोरेन ने इसमें दर्ज मुकदमे वापस लेने का फौरन ऐलान कर दिया।
खूंटी में दर्ज 19 मामले
खूंटी पुलिस की मानें तो पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया है। अब हेमंत सोरेन के ऐलान के बाद इन आरोपियों पर दर्ज मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे। खूंटी ऐसा जिला है जहां पत्थलड़ी आंदोलन का बड़े पैमाने पर असर देखा गया.
वैसे पत्थलगड़ी यहां की अति पुरातन परंपरा है जिसमें आदिवासी समुदाय के लोग गांवों में विधि-विधान और अपनी प्राचीन रवायतों के अनुसार पत्थलगड़ी करते हैं। पत्थरों पर मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी उकेरी जाती है। पुरखे और वंशों की जानकारी के अलावा मृतकों के बारे में भी पत्थरों पर लिखा-पढ़ी करने की परंपरा रही है।