जुबिली न्यूज डेस्क
हमारे जीवन में व्रत-त्योहार का बहुत महत्व है। हर त्योहार का धार्मिक पहलू के साथ-साथ वैज्ञानिक पहलू भी होता है। दीपावली का पर्व करीब है और लोग तैयारियों में जुटे हुए हैं। दीपावली से पहले पडऩे वाला धनतेरस का धार्मिक रूप से बहुत महत्व है।
कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहा जाता है। धनतेरस के साथ ही दीपावली पर्व की शुरुआत हो जाती है।
धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धनवंतरि की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन धन लाभ के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन पूजा करने से धन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। इस दिन राजा बलि की कथा सुनने की परंपरा है।
धनतेरस के मौके पर जब शुभ मुहूर्त पर पूजा की जाती है तो उस समय राजा बलि और वामन अवतार की कथा पढ़ी जाती है। यह धनतेरस से जुड़ी एक प्रचलित कथा है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए।
शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे तो उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
यह भी पढ़ें : धनतेरस : भूलकर भी न खरीदें ये चीजें नहीं तो तो चली जाएगी घर से बरकत
यह भी पढ़ें :भूलकर भी खाली पेट न पिएं कॉफी
यह भी पढ़ें : सर्दियों में सनबर्न से बचने के लिए इस्तेमाल करें ये घरेलू नुस्खे
बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि,दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
यह भी पढ़ें : बिहार : प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनने की ओर बढ़ी बीजेपी
यह भी पढ़ें : बिहार विधानसभा चुनाव: रुझानों में बड़ा उलटफेर, महागठबंधन और NDA में कांटे की टक्कर
वामन भगवान शुक्राचार्य की चाल को समझ गए। उन्होंने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया।
तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान न होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।