- कैग की ताजा रिपोर्ट में ऊंचाई वाले ठन्डे क्षेत्रों में फौजियों के राशन और उपकरणों की कमी उजागर
- रक्षा बजट का सदुपयोग जरूरी, राशन और उपकरणों की कमी से तैयारियों पर पड़ सकता है असर
राजीव ओझा
यह सच है की वर्ष 2020-21 के रक्षा बजट में 6 फीसद का इजाफा किया गया है। लेकिन यह भी सच है कि सियाचिन और लद्दाख में सैनिकों को बर्फ के चश्मे, बहुउद्देशीय जूते, कपड़े और ऊंचाई पर अत्यंत ठन्डे क्षेत्रों के लिए जरूरी आवश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार और आर्मी के उच्च अधिकारियों का इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
चौंकिए नहीं, यह टिप्पणी किसी विपक्षी नेता की नहीं है। यह तथ्य सीएजी की ताजा रिपोर्ट में सामने आया है। वैसे तो सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए हर साल प्रतिरक्षा बजट में इजाफा किया जाता है। लेकिन कैग की रिपोर्ट सतर्क करने वाली है।
देश की सुरक्षा के मद्देनजर, खासकर पकिस्तान और चीन की सीमा से लगे ऊंचाई वाले दुर्गम इलाकों में सेना के पास सबसे अच्छे हथियार, उपकरण, ड्रेस और राशन का होना अत्यंत जरूरी है। इसमें कोई शक नहीं कि लद्दाख और सियाचिन में तैनात भातीय सैनिकों का मनोबल बहुत ऊंचा है और उनके जज्बे कोई कमी नहीं है। पाकिस्तान तो पिद्दी है, चीन की सेना भी भारतीय फ़ौज से पंगा नहीं लेती। लेकिन वहां तैनात भारतीय फ़ौज अगर राशन और उपकरणों की कमी का सामना कर रहें हैं तो इस पर तत्काल ध्यान देना अत्यंत जरूरी है। निसंदेह भारतीय फ़ौज की गिनती दुनिया की सबसे ट्रेंड, जांबाज, अनुशासित और दक्ष सेनाओं में होती है। लेकिन रणनीतिक दृष्टि से सेना के पास पर्याप्त राशन और साजो-सामान होना अत्यंत जरूरी है।
यह सही है कि जंग जीतने के लिए हथियारों से कहीं ज्यादा जरूरी है जज्बे का होना लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है लम्बे समय तक अगर राशन और जरूरी पोषाक और उपकरण समय से नहीं मिलते तो फौजियों के मनोबल पर विपरीत असर पड़ता है।
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ऐसे में 1997 में फीर्ल्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ का टीवी को दिया गया एक इंटरव्यू याद आ रहा है। इंटरव्यू में मानेकशॉ ने 1962 में चीन के हाथों हुई पराजय के लिए टॉप लीडरशिप को जम्मेदार ठहराया था। उनका कहना था कि उस समय कृष्णा मेनन रक्षा मंत्री थे। हिन्दुस्तान में 1962 में पहली बार उन्होंने सेना के जनरल की नियुक्ति में राजनितिक हस्तक्षेप किया। उस समय जनरल प्राण नाथ थापर सेनाध्यक्ष थे और जब प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन को खदेड़ने को कहा तो उनमें पीएम को यह बताने की हिम्मत नहीं थी कि भारतीय फ़ौज उस समय तैयारी से नहीं थी क्योंकि उसके पास पर्याप्त उपकरण और हथियारों की कमी थी। ऐसी ही स्थिति अप्रेल 1971 में आई थी जब प्रधानमंत्री इंदिरागांधी ने सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ से कहा था कि पूर्वी पाकिस्तान पर हमला बोल दो। तब जनरल मानेकशॉ ने साफ़ मन कर दिया था कि उनकी फ़ौज अभी तैयार नहीं है। दिसंबर में जब भारतीय सेना पूरी तरह तैयार हो गई तो महज 13 में भारत ने युद्ध जीत लिया। इस लिए जज्बे के साथ पूरी तैयारी भी जरूरी है।
कैग ने पिछले सप्ताह संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सियाचिन, लद्दाख आदि ऊंचाई वाले स्थानों में तैनात जवानों को जरूरी उपकरण के साथ ही राशन की भी कमी हुई है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सैन्य दलों को राशन, दैनिक ऊर्जा की जरूरत के आधार पर नहीं बल्कि वहां लागत के आधार पर दिया जा रहा है। वहां राशन की लागत ज्यादा है और ज्यादा लागत में जवानों को कम राशन मिल पाता है जिसकी वजह से उन्हें ऊर्जा की उपलब्धता 82 फीसदी तक कम हुई। यह अत्यंत चिंताजनक है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि जवानों को जरूरी उपकरण उपलब्ध कराने में देरी के चलते या तो जवानों ने पुराने उपकरणों से काम चलाया या बिना उपकरण के रहे। कुछ उपकरणों के मामले में कमी 62 से 98 फीसदी तक दर्ज की गई। सैन्य बलों को नवंबर 2015 से सितंबर 2016 के दौरान बहुउद्देश्यीय जूते नहीं दिए गए, जिसके चलते उन्होंने अपने पुराने जूतों की मरम्मत कर काम चलाया। इसके अतिरिक्त जवानों के लिए पुराने किस्म के फेस मास्क, जैकेट, स्लीपिंग बैग्स आदि खरीदे गए जबकि नवीनीकृत उत्पाद बाजार में उपलब्ध थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ उपकरणों के मामले में कमी बहुत ज्यादा थी। स्नो-गॉगल्स की कमी जांच की अवधि के दौरान 62 से 98 फीसदी तक पाई गई जबकि सियाचिन आदि में जवानों के लिए ये बेहद जरूरी हैं।
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हालांकि वित्तमंत्री ने 2020-21 के बजट में देश की सुरक्षा को मजबूत बनाने के मकसद से रक्षा क्षेत्र को मिलने वाले बजट में 6 फीसद का इजाफा किया है। बीते कुछ वर्षों में भारत ने लगातार अपने रक्षा बजट में इजाफा किया है। यह इस लिहाज से भी खास है क्योंकि भारत अपनी सुरक्षा नीतियों के साथ-साथ अपनी सेना के आधुनिकीकरण को लेकर काफी सजग हुआ है। लेकिन कैग की ताजा रिपोर्ट के मद्देनजर यह जरूरी है प्रतिरक्षा बजट राशि के बड़े हिस्से का इस्तेमान वहां सबसे ज्यादा और सबसे पहले किया जाना चाहिए जो सामरिक दृष्टि अधिक संवेदनशील हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)