न्यूज डेस्क
सूबे की योगी सरकार भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारियों-कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई करने का चेतावनी दे चुकी हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में अभी भी कई ऐसे अधिकारी और कर्मचारी ऐसे है जिन्हें न तो प्रशासन का डर है और न तो कानून का खौफ है, जिस विभाग पर प्रदेश की जनता को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी है, वहीं स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार जैसी गंभीर बीमारी से जुझ रहा है।
यूपी के संभल में स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के खेल का खुलासा हुआ है। यहां लाखों रुपए के गबन के आरोपी को स्वास्थ्य विभाग की बड़े अफसर बचाने में लगे हुए हैं।
दरअसल, मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में कनिष्ठ लिपिक के पद पर तैनात विनय कुमार शर्मा पर जनता के पैसे का गबन करने का आरोप लगा है। बताया जा रहा है कि लिपिक ने कोषागार में ई-पेमेंट के माध्यम से प्राप्त भुगतान को संबंधित के खाते में न डालकर व्यक्तिगत खातों एवं अन्य खातों में ट्रांसफर कर लाखों रुपए का गबन कर डाला है।
जब इस हेराफेरी और गबन का मामला वर्तमान मुख्य चिकित्सा अधिकारी संभल के प्रकाश में आया तो उन्होंने एक विभागीय कमेटी बनाकर जांच कराई, जिसमें लाखों रुपए की हेरा-फेरी का खुलासा हुआ। जिसमें तत्कालीन सीएमओ (डीडीओ), अपलोडर एवं अप्रुवर की वित्तीय व्यवहार की प्रकृति भी संदेहास्पद नजर आ रही है।
वर्तमान सीएमओ डॉ अनीता सिंह ने स्वास्थ्य महानिदेशक में तैनात निदेशक प्रशासन के संज्ञान में ला दिया, परंतु निदेशक प्रशासन ने कनिष्ठ लिपिक शर्मा का तत्काल निलंबन अथवा ट्रांसफर की कार्यवाही न करके मामले को दबाने और विलंबित करने के मकसद से आरोप पत्र जारी कर दिनांक 26 1018 को विभागीय जांच हेतु निर्देशित कर दिया और जांच अब तक पूरी नहीं हुई।
ट्रांसफर सत्र में निदेशक प्रशासन द्वारा बड़ी संख्या में लिपिकों का ट्रांसफर किया जा रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री के आदेशों के विपरीत दागी कर्मचारी विनय कुमार शर्मा को जनपद से बाहर ट्रांसफर तक नहीं किया गया, जो निदेशक प्रशासन की मंशा और कार्यकाल प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है। जनपद से बाहर ट्रांसफर ना होने के कारण विनय शर्मा ने मामले को वहीं रहकर दबाने और जांच प्रकिया पर दबाव बनाने का काम शुरू कर दिया है। कार्यालय सूत्रों की माने तो प्रकरण से जुडी कई फाइलें गायब भी की जा रही हैं।
चर्चा है कि मामले को उजागर करने वाली मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अनीता सिंह और जांच करने वाले विभागीय अधिकारियों पर मनगढ़ंत आरोप लगाए जा रहे हैं। साथ ही इससे जुड़ी कई पत्रावली और साक्ष्य को गायब करा दिया गया है या फिर जांच टीम को दिया नहीं जा रहा है, जबकि विधान मंडल सदस्य दुर्गा प्रसाद यादव ने 14-02-2019 को विधानसभा के प्रथम सत्र में सीएमओ संभल के कार्यालय के प्रकरण को दबाए जाने का मामला उठाया था उत्तर प्रदेश विधान परिषद प्रक्रिया निमावली तथा कार्य संचालन 1956 के नियम 115(3) के अनुसार इस प्रकार पर कार्यवाही करके एक महीने के अंदर अधिकतम उपलब्ध करा दिया जाता है।
क्या है मामला
गौरतलब है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी संभल के अधीन कनिष्ठ लिपिक के पद पर सीएससी मनौटा में तैनात विनय शर्मा अपने राजनैतिक प्रभाव के वजह से पिछले लंबे समय से सीएमओ कार्यालय में तैनात है। सीएमओ कार्यालय के अधिकारी कर्मचारी के वेतन आदि की राशि लगभग दस लाख रुपए संबंधित कर्मियों के खाते में न डाल कर स्वयं के खातें में ट्रांसफर करवा लिया। इसी प्रकार कई फर्मों के बिलों की धनराशि को भी फर्मों के खातें भुगतान न कर उनकी धनराशि को अपने स्वयं के खातों में ट्रांसफर कर दिया है।
इस प्रकरण में तत्कालीन सीएमओ डीडीओ अप्रूवल अपलोडर की भूमिका भी थी। वर्तमान सीएमओ डॉ अनीता सिंह द्वारा जब इस खेल का खुलासा हुआ तो विनय शर्मा द्वारा कूट रचित ढंग से फर्जी चालान से लगभग 6,71,500 रुपए जमा के चालान कार्यालय में प्रस्तुत कर दिए गए और जमा चालान संख्या 4 द्वारा 3,75,910 रुपए लेखा शीर्षक 2211 परिवार कल्याण के खाते में जमा कराए गए जो सही था जिससे यह गबन एवं धोखाधड़ी का मामला बनता है।
इस तरह से लगभग लाखों रुपए के गबन करने का मामला प्रकाश में आने पर भी जांच कमेटी को पूरे दस्तावेज नहीं दिए हैं यदि पूरे दस्तावेज खंगाले जाएं तो संभावना है कि गबन करोड़ों में हो सकता है क्योंकि यह लगभग तीन वर्षों से लगातार जारी था और यह पारदर्शी और निष्पक्ष जांच कराने पर ही पता चल सकता है।
गबन और धोखाधड़ी का मामला प्रकाश आने पर भी विनय शर्मा कनिष्ठ लिपिक के विरुद्ध प्रशासनिक और विधिक कार्रवाई नहीं की गई और न ही उनका जनपद से ट्रांसफर किया गया। सूत्रों से पता चला है कि जांच अधिकारी पर फर्जी शिकायत करके दबाव बनाने का प्रयास भी विनय शर्मा कर रहा है और गबन से जुडे साक्ष्य मिटाए जा रहे हैं।
विधानसभा में प्रश्न होने के बाद भी कनिष्ठ लिपिक विनय शर्मा के विरूद्ध कोई कार्रवाई न करना निदेशक प्रशासन द्वारा आरोपी का साथ देने के तौर पर देखा जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ राजवीर सिंह (जो वर्तमान में सीएमओ हापुड़ में मुख्य अधिकारी के पद पर हैं वह दो बार वहां कार्यवाहक सीएमओ रह चुके हैं) और पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एके मिश्रा इस कर्मचारी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार पर योगी सरकार के कड़े रुख के बाद स्वास्थ्य विभाग के कई बड़े अधिकारी एक्शन में आ गए हैं। इस दौरान कई कर्मचारियों और अधिकारियों पर जांच भी हुई। लेकिन विनय शर्मा के विरूद्ध न तो कोई कार्रवाई की गई और नहीं उनका ट्रांसफर किया गया है।
जीपीएफ में भी घोटाला
मामला विभाग के पूर्व कर्मचारी स्वर्गीय गंभीर सिंह से जुडा हुआ है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मनौटा में ही तैनात गंभीर सिंह स्वास्थ्य पर्वेक्षक के जीपीएफ की दस प्रतिशत की धनराशि दो 2, 24, 842 रुपये का भुगतान दिखाया गया है। लेकिन आजतक उनके खाते में यह धनराशि नहीं गई है।
दरअसल, गंभीर सिंह ने संभल चिकित्सा विभाग में कई वर्षों अपनी सेवा दी, लेकिन जब वे रिटायर हो गए तो उन्हें रिटायरमेंट के बाद मिलनी वाली धनराशि को लेकर परेशान किया गया। यहीं नहीं उनके जीपीएफ की मिलने वाली 10 फीसदी रकम को विभाग द्वारा धांधली की गई। ये सिलसिला उनके मौत के बाद भी जारी है और आज भी उनके परिवार को उस रकम को पाने के लिए विभाग के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
जबकि महालेखाकार उत्तर प्रदेश इलाहाबाद द्वारा अवगत कराया गया है कि दस प्रतिशत की रकम का भुगतान दिनांक 12/11/2018 को ही किया जा चुका है। इसी तरह से कई कर्मचारियों के जीपीएफ के भुगतान ना किए जाने की सूचना है।
भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने का एलान कर चुकी योगी सरकार को इस पर अविलंब कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले और जांच करने वाले अधिकारी कर्मचारी का मनोबल ना टूटे और सरकार की छवि बनी रहे। चर्चा है कि निदेशक प्रशासन के कार्यालय से संबंधित कर्मचारी अधिकारियों को गुमराह कर इस कर्मचारी को बचाने में लगे हैं। संभल के जिला चिकित्सालय में भ्रष्टाचार के एक नहीं कई मामले चर्चा में रहे हैं।