जुबिली न्यूज डेस्क
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि दो बालिग शादी या लिव इन रिलेशनशिप के जरिये साथ रहना चाहते हैं तो किसी को भी मॉरल पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती।
जस्टिस नंदिता दुबे की एकल पीठ ने बीते शुक्रवार को जबलपुर निवासी गुलजार खान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की।
अपनी याचिका में खान ने कहा था कि उन्होंने महाराष्ट्र में आरती साहू (19) से शादी की थी और आरती ने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपना लिया है।
खान ने यह भी आरोप लगाया है कि ‘आरती को उनके माता-पिता जबरन वाराणसी ले गए और कैद में रखा।’
वहीं 28 जनवरी को आरती साहू को महाधिवक्ता कार्यालय से वीडियो काॉन्फ्रेसिंग के जरिये कोर्ट में पेश किया गया।
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कोर्ट ने इस तथ्य का जिक्र किया कि राज्य ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 के प्रावधानों के मद्देनजर आपत्ति जताई है।
सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार ने पुरजोर दलील दी कि मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून की धारा तीन का उल्लंघन कर संपन्न हुआ कोई भी विवाह अमान्य और शून्य माना जायेगा। बल का उपयोग कर अनुचित प्रभाव, जबरन विवाह या धोखाधड़ी कर किसी अन्य व्यक्ति के धर्मांतरण का प्रयास नहीं करेगा।
हाईकोर्ट ने कहा, ‘ऐसे मामलों में किसी भी नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती है जिसमें बगैर किसी दबाव के अपनी मर्जी से दो वयस्क शादी के माध्यम से या लिव इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने के इच्छुक हैं।’
कोर्ट ने कहा कि महिला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्होंने याचिकाकर्ता से शादी की है और वह उनके साथ रहना चाहती है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘आरती बालिग है और उनकी उम्र को लेकर कोई विवाद नहीं है।’
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कोर्ट ने कहा, ‘संविधान इस देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने का अधिकार देता है।’
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘इन परिस्थितियों के मद्देनजर सरकारी वकील की आपत्तियां और इस युवती को नारी निकेतन भेजने की अपील खारिज की जाती है। महिला को उसके पति को सौंपने और यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया जाता है कि दोनों सुरक्षित अपने घर पहुंचे।’
कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि भविष्य में भी महिला और उसके पति को उसके माता-पिता से किसी तरह का कोई खतरा नहीं हो।